यूक्रेन के दिए परमाणु हथियारों पर उछल रहा है रूस! अपनी ही गलती की सजा भुगत रहा यूक्रेन
- रूस ने कीव
- लुहान्स्क और दोनेत्स्क में हवाई हमलें किए
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आखिरकार रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हो ही गया और अभी तक यूक्रेन बैकफुट पर ही नजर आ रहा है। हालांकि, नॉटो, अमेरिका के साथ इटली और फ्रांस भी अपना समर्थन यूक्रेन को दे चुके है और रूस से मसले को शांति से सुलझाने का अल्टीमेटम दे चुके है लेकिन अभी तक रूस की तरफ से कोई नरमी नहीं देखी गई है। रूस ने कीव, लुहान्स्क और दोनेत्स्क में हवाई हमलें किए, जहां सैन्य के साथ-साथ आमजन को भी क्षति पहुंची है।
इस युद्ध में अभी तक यूक्रेन रूस के आसपास भी नजर नहीं आ रहा है। लेकिन इसके लिए खुद यूक्रेन ही जिम्मेदार है। यूक्रेन के इस हाल को समझने के लिए हमे 20 साल पहले जाना होगा, जहां इस देश ने शांति बहाल करने के लिए अपनी देश की सुरक्षा को दांव पर रख दिया।
अपने परमाणु हथियार रूस को सौंपे
जब यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा था, तब कोल्ड वॉर के दौरान उसने यूक्रेन में ही एटम बम और उन्हें ढोने वाली मिसाइलें तैनात की थीं। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, उस वक्त यूक्रेन के पास 5000 परमाणु हथियार थे।
लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विलय के बाद सदस्य रहे देश आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो चुके थे। उस समय उन्हें पश्चिम के आर्थिक व कारोबारी सहयोग की आवश्यकता थी। जो सिर्फ शांति और लोकतंत्र से ही संभव था। इस दौरान पश्चिम देशों और रूस में संबंध सुधरने लगे थे। रूस सहित ज्यादातर देशों ने शांति का रास्ता अपनाया।
उसी दौरान यूक्रेन ने परमाणु हथियारों को खत्म करने का मन बनाया और अपने हथियार रूस को सौंप दिए। दोनों देशों को उम्मीद थी कि इस फैसले से आपसी रिश्ते अच्छे बने रहेंगे।
न्यूक्लियर बेस कमांडर ने चेताया था
यूक्रेन के इस फैसले ने जहां विश्व स्तर पर वाह-वाही बटोरी वहीं देश के विशेषज्ञों ने इसे जल्दबाजी भरा फैसला बताया। सोवियत संघ में न्यूक्लियर बेस के कमांडर रह चुके वोलोदिमीर तोबुल्को बाद में यूक्रेन के सांसद बने। 1992 में यूक्रेनी संसद में उन्होंने कहा था कि खुद को परमाणु हथियार मुक्त देश घोषित करना अभी जल्दबाजी होगी।
तोबुल्को ने कहा था कि लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले कुछ परमाणु हथियार होने चाहिए, ये विदेशी आक्रमण को रोकने के लिए काम आएंगे। लेकिन यूक्रेनी संसद ने उनकी एक ना सुनी।
तोबुल्को के अलावा अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर रह चुके जॉन मेयर्सहाइमर ने 1993 में एक आर्टिकल लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों के बिना यूक्रेन, रूस के आक्रामक रुख का शिकार बन सकता है।
उस दौर में ऐसे लोगों को शांति विरोधी की तरह देखा जाने लगा था।
बुडापेस्ट मेमोरंडम पर हुए हस्ताक्षर
भविष्य में सुरक्षा की गारंटी को लेकर 5 दिसंबर 1994 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के नेता मिले थे। इन सभी नेताओं ने बुडापेस्ट मेमोरंडम ऑन सिक्योरिटी अश्योरेंस पर हस्ताक्षर किए थे।
छह पैराग्राफ के इस मेमोरंडम में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और मौजूदा सीमाओं का सम्मान किया जाएगा। विदेशी शक्तियां इन देशों की क्षेत्रीय संप्रुभता या राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए कभी खतरा नहीं बनेंगी।
इसी मेमोरंडम के चौथे प्वाइंट में यह जिक्र किया गया था कि यदि न्यूक्लियर देश यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान पर हमला करता है तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इन देशों की मदद करेगी।
लेकिन इस मेमोरंडम को कभी कानूनी रूप से बाध्य संधि में नहीं बदला गया। यूक्रेन को दिलासा दी गई कि वह बिल्कुल भी चिंता न करे। मई 1996 आते आते यूक्रेन ने सारे परमाणु हथियार रूस को सौंप दिए।
लेकिन, इस मेमोरंडम पर हस्ताक्षर होने के 20 बाद यह मात्र एक कागज का टुकड़ा साबित हुआ। मार्च 2014 में रूस ने क्रीमिया को अपने कब्जे में ले लिया था तब से लेकर अब तक यूक्रेन और रूस का विवाद आए दिन और गहराता जा रहा है।
Created On :   24 Feb 2022 8:58 PM IST