भारत की तरफ से सिंधु जल संधि पर भेजे गए नोटिस पर जवाब देना चाहता है पाकिस्तान

Pakistan wants to reply on notice sent by India on Indus Water Treaty
भारत की तरफ से सिंधु जल संधि पर भेजे गए नोटिस पर जवाब देना चाहता है पाकिस्तान
सिंधु जल संधि भारत की तरफ से सिंधु जल संधि पर भेजे गए नोटिस पर जवाब देना चाहता है पाकिस्तान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजनीतिक और आर्थिक तौर पर परेशान पाकिस्तान की परेशानियां अब सिंधु जल संधि में संशोधन को लेकर भारत की ओर से भेजे गए एक नोटिस से और बढ़ गई है।  पाकिस्तान ने भारत की तरफ से जनवरी में भेजे गए नोटिस का  अकड़ में रहते हुए जवाब नहीं दिया। लेकिन अब पाकिस्तान जवाब के साथ इस मुद्दे पर बातचीत करने को तैयार है। 

पाकिस्तान के विदेश विभाग की प्रवक्ता मुमताज जाहरा बलोच का कहना है कि पाकिस्तान सिंधु जल संधि को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है,और इसकी समीक्षा के लिए भारत को जवाब भी दे चुका है। बलोच ने कहा कि भारत ने 25 जनवरी को सिंधु जल आयुक्त के जरिये पाकिस्तान को संधि के अनुच्छेद 12 के तहत संशोधन के लिए बातचीत का नोटिस भेजा था। भारत ने नोटिस में सिंधु जल की समीक्षा और संसोधन की मांग रखी थी। बलोच ने ये कहा कि पाकिस्तान नेक नीयत से संधि को लागू करने और अपनी जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। जवाब सिंधु जल आयुक्त के जरिये भेजा गया है। 

पाकिस्तान को भेजे गए नोटिस में भारत ने क्या कहा था कि 2017 से 2022 के बीच स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में से पाकिस्तान ने किसी भी बैठक में हिस्सा नहीं लिया। पाकिस्तान लगातार इस मुद्दे पर चर्चा करने का टालता रहा है। पाक की अनदेखी के बाद अब भारत को नोटिस जारी करना पड़ा है। इस नोटिस का मकसद 90 दिनों के अंदर पाकिस्तान को अंतर-सरकारी बातचीत करने का मौका देना है। भारत ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले (चिनाब नदी पर) जलविद्युत परियोजनाओं पर विवादों को हल करने में पाकिस्तान की "हठधर्मिता" का हवाला दिया था। 

बातचीत के लिए क्यों राजी हुआ पाकिस्तान

भारत की ओर से 90 दिनों के लिए मिले अल्टीमेटम के बाद अगर पाकिस्तान जवाब नहीं देता है तो भारत इस मामले में कार्रवाई कर सकता है। पाक को डर इस बात का भी सताने लगा कि भारत संधि तोड़कर पाक को जल देने से साफ मना कर सकता है।  

 क्या भारत इस समझौते को तोड़ सकता है

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट का कहना है कि अगर मूलभूत स्थितियों में परिवर्तन हो तो किसी संधि को रद्द किया जा सकता है। भारत वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 का हवाला देते हुए यह कह कर पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान चरमपंथी गुटों का उसके खिलाफ इस समझौते का उपयोग कर रहा है।

पिछले कुछ सालों से भारत-पाकिस्तान के बीच हुए विवादों में सिंधु जल समझौते को तोड़ने के मामले ने तूल पकड़ी है। पाकिस्तान भारत की बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं पाकल (1,000 मेगावाट), रातले (850 मेगावाट), किशनगंगा (330 मेगावाट), मियार (120 मेगावाट) और लोअर कलनाई (48 मेगावाट) पर आपत्ति उठाता रहा है। 

सिंधु जल संधि को लेकर असली विवाद साल 2015 में शुरू हुआ था। उस दौरान पाकिस्तान ने  भारत की तरफ से शुरू होने वाले भारत की किशनगंगा और रातले जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताई थी।  साल 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किशनगंगा और रतले परियोजना का उद्घाटन किया था।  किशनगंगा झेलम नदी की सहायक नदी है। किशनगंगा और रातले पनबिजली रन-ऑफ-द-रिवर परियोजना को लेकर पाकिस्तान गलत तरीके से डिजाइन की हुई परियोजना बताता है। जिससे पाकिस्तान में प्रवेश करने वाली नदी के बहाव पर असर पड़ेगा।

2016 में पाकिस्तान ने इन आपत्तियों को एकतरफा तौर पर मध्यस्थता अदालत में ले जाने का प्रस्ताव भी दिया। पाकिस्तान का इस कदम  को संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिये बनाए गए सिंधु आयोग के उल्लंघन के तौर पर देखा गया। भारत के तरीके को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों के दौरान किशनगंगा और रातले जैसे प्रमुख मुद्दे पर चर्चा करने से साफ मना कर दिया। इन सब के बावजूद भारत ने इस मामले को तटस्थ विशेषज्ञ को भेजने के लिए कहा। साल 2022 में विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच असहमति और मतभेदों को देखते हुए किशनगंगा और रातले जलविद्युत संयंत्रों के संबंध में एक "तटस्थ विशेषज्ञ" और मध्यस्थता अदालत का अध्यक्ष नियुक्त किया है।

सिंधु जल संधि?

ब्रिटिश काल में दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर एक वृह्द नहर का निर्माण करवाया।  ये नहर उस रीजन के लिए बहुत लाभकारी साबित हुई और दक्षिण एशिया का एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया।  लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे हुआ तो पंजाब को विभाजित किया गया और  भारत के पास पूर्वी भाग और पाकिस्तान को पश्चिमी भाग मिल गया। बंटवारे के बाद पाकिस्तान पूरी तरह भारत पर निर्भर था। 

20 दिसंबर 1947 को पानी के बहाव को बनाए रखने के उद्देश्य से पूर्व और पश्चिमी पंजाब के चीफ इंजीनियरों के बीच एक समझौता हुआ।  इस समझौते के तहत भारत को बंटवारे से पहले तय किया गया पानी का निश्चित हिस्सा 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देते रहना तय हुआ।

1 अप्रैल 1948 को समझौते के खत्म हो जाने के बाद भारत ने दो प्रमुख नहरों का पानी पाकिस्तान को देना मना कर दिया। जिससे पाकिस्तान के पंजाब की 17 लाख एकड़ जमीन पर पानी का संकट छा गया। 

1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। लिलियंथल पाकिस्तान भी गए और अमेरिका लौटकर सिंधु नदी घाटी के बंटवारे पर एक विस्तृत लेख लिखा। ये लेख विश्व बैंक प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त डेविड ब्लैक ने भी पढ़ा और ब्लैक ने भारत और पाकिस्तान के प्रमुखों से इस बारे में संपर्क किया।  इसके बाद दोनों देशों के बीच मुद्दे पर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। करीब एक दशक तक चली इन बैठकों के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी घाटी समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

क्या है सिंधु नदी घाटी समझौता?

सिंधु समझौते के तहत सिंधु नदी घाटी की नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया है। इस समझौते के मुताबिक पश्चिमी नदियों  झेलम और चेनाब का पानी पाकिस्तान के लिए और पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलज का पानी भारत के लिए तय हुआ था। इस समझौते से भारत को भारी नुकसान हो रहा था, क्योंकि इस समझौते के तहत जल का 80 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान में चला गया, जबकि बाकी 20 प्रतिशत हिस्सा भारत को मिल रहा था। इस समझौते में ही दोनों देशों के बीच बातचीत करने और साइट के मुआयना करने प्रावधान भी था।  इसके लिए सिंधु आयोग का गठन भी किया गया।  ये आयोग दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने का प्रस्ताव पेश करती है। 

सिंधु आयोग का मकसद
दोनों देशों के सिंधु आयोग के कमिश्नर किसी भी विवादित मुद्दे पर समय-समय पर एक दूसरे से मुलाकत करने और समझौते के लिए मिलेंगे। साथ ही जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे देश को उस  पर कोई आपत्ति है तो पहला देश उसका जवाब देगा, दोनों पक्षों की बैठकें होंगी। बैठकों से हल न निकलने पर दोनों देशों की सरकारें विवादित मुद्दे को सुलझाएंगी। आयोग में तटस्थ विशेषज्ञ की राय लेने और कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन में जाने का भी प्रावधान रखा गया है।

कुछ जानकारों का मानना है कि संधि को लेकर दोनों देशों के रूख से कुछ गलत नतीजे पनप सकते है। दोनों पक्षों के बीच विरोधाभासी परिणाम भी देखने को मिल सकते है। कानूनी रूप से अस्थिरता की स्थिति पैदा होती है तब सिंधु जल संधि भी खतरे में पड़ सकती है। 

 

Created On :   7 April 2023 9:07 AM GMT

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