सेंसरशिप के कारण चीनी कार्यकर्ताओं ने निजी तौर पर मनाई नोबेल पुरस्कार विजेता की पुण्यतिथि

Chinese activists privately celebrate Nobel laureates death anniversary due to censorship
सेंसरशिप के कारण चीनी कार्यकर्ताओं ने निजी तौर पर मनाई नोबेल पुरस्कार विजेता की पुण्यतिथि
चीन सेंसरशिप के कारण चीनी कार्यकर्ताओं ने निजी तौर पर मनाई नोबेल पुरस्कार विजेता की पुण्यतिथि

डिजिटल डेस्क, बीजिंग। नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लियू शियाओबो की हिरासत में मौत के पांच साल बाद, चीन में सामाजिक कार्यकर्ताओं को सेंसरशिप के कारण मजबूरी में उनकी पुण्यतिथि को निजी तौर पर ही मनाना पड़ा।

कार्यकर्ताओं को यह विशेष दिन निजी तौर पर मनाने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उनके बारे में सार्वजनिक तौर पर किसी भी आयोजन पर कड़े प्रतिबंध हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में यह जानकारी दी गई है।

आरएफए ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि लियू के एक दोस्त, जिसने केवल छद्म नाम गु तियान दिया गया है, ने कहा कि कुछ लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस विषय पर प्रतिबंध के बावजूद सालगिरह को चिह्न्ति करने के तरीके खोजे हैं।

गु ने आरएफए को बताया, शियाओबो का पांच साल पहले निधन हो गया था। वह एक बहुत अच्छे और ईमानदार व्यक्ति थे, जो चीनी राष्ट्र और चीन की मूल अवधारणा से परे देख सकते थे। उन्होंने कहा, उन्होंने एक निरंकुश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

कुछ लोगों ने ट्विटर का सहारा लिया, जिसे मुख्य भूमि चीन से एक्सेस करने के लिए चकमा देने वाले उपकरणों की आवश्यकता होती है। 61 साल की उम्र में लीवर कैंसर से शियाओबो की मृत्यु हो गई थी और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों ने बड़ा रिस्क उठाया और अपने संदेशों के जरिए उन्हें याद किया। आरएफए की रिपोर्ट के अनुसार, उनकी मौत तब हुई थी, जब वह देश की सत्ता को नष्ट करने के लिए उकसाने के लिए 11 साल की जेल की सजा काट रहे थे।

अधिकारों के लिए लड़ने वाले वकील यू वेन्शेंग के नाम पर बनाए गए एक अकाउंट से संदेश लिखा गया कि लियू ने चीन को लोकतंत्र की ओर ले जाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।

संदेश में आगे कहा गया है, आज उनकी वीरता का सम्मान करने के लिए मैंने समुद्र की दिशा में तीन बार नमन किया।

ट्विटर यूजर ली फेंग ने लिखा, कई लोग लियू शियाओबो को भूल गए हैं..जिन्होंने पांच साल पहले जेल में प्राण त्याग दिए थे। लेकिन चीन उन पांच वर्षों में नहीं बदला है, उत्पीड़न और शोषण अभी भी वैसे ही है।

वांग शियाओशान के रूप में पहचाने जाने वाले एक अन्य यूजर ने भी लियू की मृत्यु की पांचवीं वर्षगांठ का उल्लेख किया, जिन्होंने लोकतंत्र और संवैधानिक तौर-तरीकों को बढ़ावा देने पर जोर दिया था।

2017 में पुलिस हिरासत में रहते हुए शियाओबो की लीवर कैंसर से मृत्यु हो गई थी।

उनकी पत्नी लियू जि़या, जो अक्टूबर 2010 में उनके नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद से नजरबंद थीं, को आखिरकार 2018 में देश छोड़ने की अनुमति दी गई, जिसके बाद वह बर्लिन में बस गईं।

आरएफए ने बताया कि तब से वह लाइमलाइट से दूर ही हैं और शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से दिखाई देती हैं।

 

आईएएनएस

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Created On :   14 July 2022 10:30 PM IST

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