चीन का नया लैंड बॉर्डर कानून भारत के लिए नए साल पर नई टेंशन
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन की संसद ने 23 अक्टूबर को एक नए लैंड सीमा लॉ को मंजूरी दे दी। लॉ नए साल की पहली तारीख से लागू हो जाएगा। दरअसल मई 2020 से पहले भारत और चीन के रिश्ते अच्छे बने हुए थे। किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह भारत के साथ संबंधों को खराब करेगा। इसलिए उसके इस कदम से हैरानी हुई। आज भारत और चीन के रिश्ते 1988 के बाद सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। चीन एक बार फिर चाहता है कि भारत सीमा विवाद को भूलकर उसके साथ बाकी क्षेत्रों में रिश्ते सामान्य रखे, लेकिन मोदी सरकार ने इससे पूरी तरह इनकार कर दिया है।
चीन का डर औऱ नया सीमा लॉ
चीन को इस बात का डर है कि शिनजियांग प्रांत के वीगर मुसलमानों से ताल्लुक रखने वाले इस्लामी चरमपंथी सरहद पार कर उसकी तरफ़ आ सकते हैं। हालांकि अभी इस बात को लेकर तस्वीर साफ़ नहीं है कि इस क़ानून का सीमा सुरक्षा के इंतज़ाम के तौर तरीकों पर क्या असर पड़ेगा, लेकिन तमाम जानकार इस नए क़ानून को भारत-चीन सीमा विवाद से जोड़ कर ज़रूर देख रहे हैं।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ चीन का ये नया सीमा क़ानून अगले साल एक जनवरी से लागू होने वाला है। माना जा रहा है कि ये पहला मौका है जब चीन ने सीमा सुरक्षा के प्रबंधन को लेकर कोई क़ानून पारित किया है। 14 देशों के साथ उसकी तकरीबन 22 हज़ार किलोमीटर लंबी सीमा लगती है। इसमें से 12 देशों के साथ भूमि सीमा विवाद का निपटारा चीन कर चुका है। भूटान के साथ लगी 400 किलोमीटर की सीमा पर इसी साल 14 अक्टूबर को चीन ने सीमा विवाद के निपटारे के लिए थ्री-स्टेप रोडमैप के समझौते पर दस्तख़त किया है। ऐसे में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसके साथ चीन का भूमि सीमा विवाद अब तक जारी है।
क्या कहता है नया लॉ ?
ये लॉ ऐसे समय में आया है जब चीन का भारत के साथ पूर्वी लद्दाख और पूर्वोत्तर के राज्यों में लंबे समय से सीमा विवाद चल रहा है। कमांडर स्तर की कई दौर की वार्ता के बावजूद पूर्वी लद्दाख में एक साल से भी ज़्यादा समय से बने गतिरोध का हल नहीं निकल पाया है।
चीन ने नए भूमि सीमा क़ानून में सीमा की रक्षा को "चीन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता" से जोड़ दिया है। हालांकि जानकारों का कहना है कि ज़रूरी नहीं है कि भूमि सीमा क़ानून, के बाद सीमा सुरक्षा के तरीक़ों में बदलाव करे, लेकिन ये अपनी सीमाओं को संभालने के चीन के बढ़ते आत्मविश्वास को दिखाता है।
लॉ कहता है कि सीमा सुरक्षा को ख़तरा पैदा करने वाले किसी सैन्य टकराव या युद्ध की स्थिति में चीन अपनी सीमाएं बंद कर सकता है। इस क़ानून में सीमा से जुड़े इलाक़ों में "निर्माण कार्यों" को बेहतर करने पर भी ध्यान दिया गया है नए क़ानून में सीमा के साथ साथ "सीमावर्ती इलाकों" में निर्माण, कार्य संचालन में सुधार और निर्माण के लिए सहायक क्षमता में मज़बूती को भी शामिल किया गया है क़ानून कहता है कि सीमा से जुड़े इलाक़ों में चीन, सीमा सुरक्षा मज़बूत करने, आर्थिक और सामाजिक विकास में सहयोग, सार्वजनिक सेवाओं और आधारभूत ढांचे में सुधार के लिए क़दम उठा सकता है।
भारत को चिंतित होना चाहिए?
बीबीसी से बातचीत करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडी के प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं। चीन का पाकिस्तान के साथ सीमा को लेकर 1963 में समझौता हुआ था। वो समझौता "अस्थायी" था। लेकिन चीन और पाकिस्तान के बीच दोस्ती है जो किसी से छुपी नहीं है। इसलिए आज के संदर्भ में चीन का सीमा विवाद केवल भारत और भूटान से है। भूटान से भी बातचीत के जरिए इसे हल करने की कोशिशें जारी है। ऐसे में भारत की मुश्किलें नए क़ानून से सबसे ज़्यादा बढ़ सकती हैं।"
वो कहते हैं, "चीन के नए क़ानून में समुद्री सीमाओं की बात नहीं की गई है। ये क़ानून केवल भूमि सीमा पर लागू है। इसके साथ ही क़ानून में दो शब्दों पर ज़ोर है। पहला "प्रोटेक्शन" यानी सीमा की सुरक्षा और दूसरा है "एक्सप्लॉयटेशन"। यहाँ इस शब्द का मतलब "विकास" से है।"पिछले सप्ताह ग्लोबल टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, 2020 के अंत तक सीमा सुरक्षा सुदृढ़ करने के लिहाज से चीन ने तिब्बत सीमा पर 600 अच्छे स्तर के सीमावर्ती गाँवों का निर्माण किया था। उन गाँवों को जोड़ने वाली सड़क भी बहुत बेहतर हैं। कम से कम 130 सड़कें नई बनी हैं या उनकी मरम्मत की गई हैं। ये पूरा काम 3080 किलोमीटर इलाके में किया गया है।
शी चिनपिंग सरकार ने तोड़ी राजीव नीति
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी दिसंबर 1988 में चीन की यात्रा पर गए थे। उस यात्रा में दोनों देश सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत को राजी हुए। राजीव गांधी की यात्रा के बाद से तीन दशकों तक भारत और चीन के बीच जो सहमति चली आ रही थी, उसे शी चिनपिंग सरकार ने तोड़ दिया। चीन ने पूर्वी लद्दाख में भारतीय सीमा पर फौज की तैनाती बढ़ा दी। भारत के साथ चले आ रहे सीमा विवाद के मद्देनजर चीन ने ऐसा किया था। लेकिन ऐसा करके उसने भारत के साथ सभी समझौते तोड़ दिए।
चीन ऐसे विवादों में ‘सलामी स्लाइसिंग’ की रणनीति अपनाता है। इसमें पहले वह थोड़ा आक्रामक रुख अपनाकर सामने वाले का रिएक्शन देखता है और बाद में विवादित क्षेत्र पर दावा कर देता है। दक्षिण चीन सागर में वह पहले ऐसा कर चुका था। तब दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की ओर से उसे रोकने की कोशिश नहीं हुई थी। लेकिन पूर्वी लद्दाख में जब चीन ने यही चाल अपनाई तो भारत ने सैन्य और कूटनीतिक दोनों ही स्तरों पर उसे मुंहतोड़ जवाब दिया।
दरअसल 1949 से ही चीन यह दलील देता आया है कि भारत और उसके बीच सीमा की कभी पहचान नहीं की गई। इस पर भारत का कहना रहा है कि कुछ इलाकों के लिए भले यह बात सही हो, लेकिन समूची सीमा के लिए नहीं। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक आधार पर हमेशा से एक पारंपरिक सीमा रही है। यानी एक देश जिसे सीमा मानता है, उससे दूसरा देश इत्तेफाक नहीं रखता। इसी वजह से वह मसला खड़ा हुआ है, जिसे भारत ‘बाउंड्री प्रॉब्लम’ कहता आया है।
Created On :   29 Oct 2021 5:51 PM IST