अक्सर टी-शर्ट पर दिखने वाले इस क्रांतिकारी को जानते हैं आप ?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। क्रांति जब-जब आएगी, तब-तब चे ग्वेरा का नाम लिया जाएगा। 9 अक्टूबर 1967 का दिन, ये तारीख कोई आम तारीख या दिन ही नहीं है, बल्कि जब-जब 9 अक्टूबर आता है, तो पूरी दुनिया को महान क्रांतिकारी "अर्नेस्तो चे ग्वेरा" की याद आ जाती है। चे ग्वेरा को हिरासत में लेकर आज से 50 साल पहले मार दिया गया था। मरने से पहले चे का कहना था कि, "तुम एक इंसान को मार रहे हो, लेकिन उसके विचारों को नहीं मार सकते"। 14 जून 1928 को अर्जेंटीना में जन्मे चे ग्वेरा का नाम ही आज भी दुनिया के छात्रों और युवाओं को प्रेरणा देने के लिए काफी है। भारत में जिस तरह से भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों को प्रमुखता से जाना जाता है, उसी तरह से चे ग्वेरा लैटिन अमेरिका, क्यूबा और कई देशों में जाने जाते हैं। भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो चे ग्वेरा के विचारों से प्रेरित हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं। चे ग्वेरा जब 39 साल के थे, तब उन्हें मार दिया गया था, लेकिन आज भी चे ग्वेरा और उनके विचार लोगों के दिलों में जिंदा है। आज उनकी 50वीं पुण्यतिथी है और इसी अवसर पर आज हम आपको उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिसे जानने के बाद आपके दिलों में भी "चे ग्वेरा" जिंदा हो जाएंगे।
अमेरिका को हिलाकर रख दिया था "चे" ने
डॉक्टर से क्रांतिकारी बने चे ग्वेरा को क्यूबा के बच्चे-बच्चे भी पूजते हैं। वो अपनी मौत के 50 साल बाद भी क्यूबा के लोगों के बीच जिंदा है। इसका कारण है कि उन्होंने क्यूबा को आजाद कराया था। चे ग्वेरा क्रांति के नायक माने जाने वाले फिदेल कास्त्रो के सबसे भरोसेमंद थे। फिदेल और चे ने मिलकर ही 100 "गुरिल्ला लड़ाकों" की एक फौज बनाई और मिलकर तानाशाह बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंका था। बतिस्ता को अमेरिका का सपोर्ट हासिल था और इस तरह से बतिस्ता के शासन को उखाड़ फेंकने से अमेरिका भी पूरी तरह से हिल गया था। 1959 में क्यूबा को आजाद कराया। इसके बाद फिदेल कास्त्रो आजाद क्यूबा के पहले प्रधानमंत्री बने, जबकि चे ग्वेरा को महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार सौंपा गया। करीब 17 सालों तक क्यूबा के प्रधानमंत्री रहने के बाद फिदेल कास्त्रो राष्ट्रपति बने और 2008 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
हत्या कर हाथ काटकर दफना दिया गया
14 अक्टूबर को चे ग्वेरा का जन्म अर्जेंटिना में हुआ था। उन्हें हमेशा से ही मार्क्सवादी नेता माना जाता था, हालांकि वो इस बात से इनकार करते थे। चे ग्वेरा का क्यूबा की आजादी में बहुत बड़ा योगदान था, लेकिन उन्होंने बाद में क्यूबा को छोड़ दिया। चे ग्वेरा को 8 अक्टूबर 1967 को बोलिविया से गिरफ्तार किया गया और गिरफ्तारी के अगले ही दिन उन्हें मार दिया गया। मरते वक्त चे ने कहा था, "तुम एक इंसान को मार रहे हो, लेकिन उसके विचार को नहीं मार सकते।" बोलिविया को अमेरिका का सपोर्ट था और चे को गिरफ्तार करने के बाद बोलिवियाई सरकार ने चे के दोनों हाथ काट दिए और उनके शव को एक अनजान जगह पर दफना दिया था। चे ग्वेरा के शरीर के अवशेष का पता उनकी मौत के 40 साल बाद यानी 1997 में चला।
आजादी की लड़ाई लोगों की भूख से जन्म लेती है
अक्सर जब भी कोई क्रांतिकारी शक्तिशाली लोगों से लड़ने के लिए हिंसा का सहारा लेता है, तो उसे कम्युनिस्ट या नक्सली करार दे दिया जाता है। चे ग्वेरा के साथ भी यही हुआ था, लेकिन चे ग्वेरा इस बात से इनकार करते हैं। एक इंटरव्यू में चे ग्वेरा ने कहा था कि, वो एक सोशलिस्ट हैं, कोई कम्युनिस्ट नहीं हैं। हालांकि क्यूबा के क्रांतिकारी नेता चे ग्वेरा वामपंथियों और कम्युनिस्टों के हीरो थे। एक इंटरव्यू में चे ग्वेरा ने कहा था कि, "मैं अपने आप को कम्युनिस्ट नहीं कहूंगा। मैं एक कैथोलिक होकर जन्मा और एक सोशलिस्ट हूं। मैंने बचपन से ही भूख को देखा है, कष्ट, भयंकर गरीबी, बीमारी और बेरोजगारी को भी देखा है। क्यूबा, अफ्रीका और वियतनाम में यही हालात रहे हैं"। चे का मानना था कि, "आजादी की लड़ाई लोगों की भूख से जन्म लेती है।"
चे की भारत यात्रा
1959 में क्यूबा के आजाद होने के बाद चे ग्वेरा कई देशों से संबंध बनाने के लिए उनकी यात्रा पर निकले। कारण था कि अमेरिका ने क्यूबा पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए और ऐसे में क्यूबा ने विकासशील देशों और हालिया आजाद हुए देशों से संबंध बनाने की कोशिश की। इसी कड़ी में चे ग्वेरा ने भारत की तरफ भी रुख किया और क्यूबा की आजादी के 6 महीने बाद ही वो भारत यात्रा पर आए। अपनी भारत यात्रा पर चे ने एक रिपोर्ट भी लिखी थी, जिसे उन्होंने फिदेल कास्त्रो को सौंपा था। इस रिपोर्ट में चे ने लिखा था कि, "भारत यात्रा से हमें काफी सीखने और जानने को मिला। सबसे जरूरी बात हमने ये जानी कि किसी देश का आर्थिक विकास उसके तकनीकी विकास पर निर्भर करता है और इसके लिए साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट का निर्माण बहुत जरूरी है।" अपनी रिपोर्ट में चे ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की तारीफ भी की थी।
मोटरसाइकिल से की लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा
चे ने भूख और गरीबी को काफी करीब से देखा था। उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल से लैटिन अमेरिकी देशों की यात्रा की थी, जहां उन्होंने गरीबी और भूख को काफी करीब से महसूस किया था। अपनी इस यात्रा पर चे ने एक डायरी भी लिखी थी, जिसे उनकी मौत के बाद "द मोटरसाइकिल डायरी" के नाम से छापा गया। इसके अलावा 2004 में "द मोटरसाइकिल डायरीज" के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। चे ग्वेरा को हमेशा से एक हिंसक हत्यारे के रुप में बताया गया, लेकिन वास्तव में चे गरीबी और भूख के खिलाफ थे।
Created On :   9 Oct 2017 10:12 AM IST