भास्कर एक्सक्लूसिव: नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना कितना प्रैक्टिकल, राजतंत्र की वापसी में जनता कितना बड़ा एक्स-फैक्टर, समझें पूरी कहानी

नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाना कितना प्रैक्टिकल, राजतंत्र की वापसी में जनता कितना बड़ा एक्स-फैक्टर, समझें पूरी कहानी
  • नेपाल में हिंदू राष्ट्र की मांग तेज
  • राजशाही को लेकर भी दिख रहा है अंडर करंट
  • राजा ज्ञानेंद्र शाह दिख रहे हैं काफी एक्टिव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नेपाल की राजधानी काठमांडु में शुक्रवार के दिन त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अचानक 10 हजार लोगों की भीड़ जमा हो गई थी। इन लोगों ने देश को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने और राजतंत्र को वापस लाने की मांग की। एयरपोर्ट पर जमा हुए लोगों ने नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का स्वागत किया। इस दौरान कई लोगों ने 'राजा का महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं' नारा लगाया। शुक्रवार के दिन कई विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ राजधानी काठमांडु में जमकर उत्पात मचाया। इस दौरान सभी लोगों की मांग केवल नेपाल को हिंदू राष्ट्र बनाने और राजशाही की वापसी को लेकर थी। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि क्या नेपाल दोबारा हिंदू राष्ट्र बन सकता है? साथ ही, क्या नेपाल में राजतंत्र की वापसी होगी?

जनता लोकतंत्र और राजतंत्र को बनाए रखने में अहम योगदान निभाती है। लेकिन जनता का मन ऊबता है, तो फिर कुछ संभव है। हालांकि, नेपाल में राजतंत्र की वापसी और हिंदू राष्ट्र की मांग को काफी प्रैक्टिकल तौर पर देखा जा रहा है। समझते हैं पूरा मामला...

पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के प्रर्यटन स्थल पोखरा में दो महीने के प्रवास के बाद काठमांडू वापस लौटे थे। पोखरा में रहने के दौरान राजा ज्ञानेंद्र ने कई मंदिरों और तीर्थ स्थलों का दौरा किया। इस दौरान राजा ज्ञानेंद्र ने जनता का मिजाज भांपने की कोशिश की। इधर, नेपाल में बीते कुछ महीनों से लोगों में राजशाही की वापसी को लेकर अंडर करंट दिख रहा है। बता दें कि, 16 साल पहले नेपाल दुनिया का इकलौता हिंदू राष्ट्र हुआ करता था। साल 2008 तक ज्ञानेंद्र शाह राजा हुआ करते थे।

नेपाल करीब 240 सालों तक था हिंदू राष्ट्र

नेपाल करीब 240 सालों तक हिंदू राष्ट्र था। यहां राजशाही चलती थी। साल 2001 में राजा वीरेंद्र विक्रम शाह की परिवार सहित हत्या कर दी गई। इसके बाद फिर उनके भाई ज्ञानेंद्र शाह राजा बन गए थे। वहीं, चीन समर्थक कम्युनिस्ट पार्टी ने साल 2008 में राजशाही को खत्म कर दिया। इसके बाद नेपाल में कम्युनिस्टों का शासन आ गया। बता दें कि, पुष्प कमल दल प्रचंड ने राजतंत्र के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध तक चला दिया था।

उग्र हो रहे प्रदर्शन के पीछे का राज

नेपाल ने 2008 में संसदीय घोषणा के जरिए 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म कर दिया था। इससे देश राज्य एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल गया। 19 फरवरी को लोकतंत्र दिवस पर प्रसारित एक वीडियो संदेश में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की ओर से जनता से समर्थन की अपील के बाद राजशाही की बहाली की मांग फिर से उठने लगी ।

राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि नेपाल में राजशाही के पक्ष में इस भावना के पीछे एक प्रमुख कारण व्यापक भ्रष्टाचार और आर्थिक गिरावट से जनता हताशा है। इसकी एक वजह शासन की स्थिरता भी है। राजा को कभी शक्ति और स्थिरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। नेपाल ने 2008 में गणतंत्र में परिवर्तन के बाद से उस स्थिरता को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया। लेकिन, पिछले 16 वर्षों में देश ने 13 अलग-अलग सरकारें देखी हैं।

राजनीतिक अस्थिरता भी राजशाही वापसी की मांग को दे रहा बल!

नेपाल में लोकतंत्र बहाली के बाद राजनीतिक अस्थिरता लगातार देखने को मिली है। 2008 के बाद यानी पिछले 16 साल में 13 सरकारें बदल चुकी है। हालांकि, नेपाल के लोगों ने राजशाही खत्म करने के लिए 240 वर्ष में कई कुर्बानियां दी हैं। इस दौरान हिंसा में 16000 लोगों की जान गई हैं। इधर, आंदोलन की वजह से देश की पर्यटन अर्थव्यवस्था ठप हुई हैं।

देश में 2022 की जनगणना के अनुसार, नेपाल की जनसंख्या 30.55 मिलियन यानी लगभग 3.5 करोड़ है और यहां की 81.19 फीसदी आबादी हिन्दू है। इस आधार पर भी यहां के लोग देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं।

राजा ज्ञानेंद्र को मिल रहा बड़ी राजनीतिक पार्टी का समर्थन

नेपाल में राजशाही की मांग का समर्थन राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी भी कर रही है। यह पार्टी अपनी स्थापना के बाद से ही नेपाल में हिन्दू राष्ट्र और राजशाही का समर्थन करती आ रही है। राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजशाही की मांग के पूरक के तौर भी देखी जाती है।

बता दें कि 2008 में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने 575 सीटों वाली संसद में से 8 सीटें हासिल कीं। यह पार्टी 2013 के चुनाव में 13 और 2017 में यह 1 सीट पर आ गई। हालांकि, 2022 के चुनाव में 14 सीटों के साथ वापस भी की है।

नेपाल में राजशाही क्यों चाहते हैं? इस सवाल पर आरपीपी के सीनियर उपाध्यक्ष रविंद्र मिश्रा ने बीबीसी न्यूज चैनल को कहा, "नेपाल में अभी जो व्यवस्था चल रही है, उससे लोगों का मोहभंग हो गया है। अब लोग पुराने दिन याद कर रहे हैं। 2008 में सत्ता बदलाव के बाद से 17 सालों बाद अब किंग ज्ञानेंद्र नेपाल में कोई विलेन नहीं हैं।"

Created On :   31 March 2025 8:33 PM IST

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