Chernobyl Disaster: 1986 की वो रात...चेर्नोबिल के धमाके से दहल उठी थी दुनिया, जाने पूरी कहानी
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- 26 अप्रैल 1986 को हुआ था चेर्नोबिल के पावर प्लांट में भयानक हादसा
- हादसे में 31 लोगों ने गंवाई थी जान
- दुर्घटना के एक दिन पहले हुई थी टेस्ट की शुरुआत
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। यूक्रेन ने शुक्रवार 14 फरवरी को रूस पर बड़ा आरोप लगाया है, जिसकी वजह से पूरी दुनिया को एक बड़ा डर सताने लगा है। दरअसल, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडमिर जेलेंस्की ने रूस पर चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट पर हमला करने का आरोप जड़ा है। लेकिन इस जेलेंस्की के इस दावे की वजह से आखिर पूरी दुनिया क्यों सहम उठी? आखिर इतिहास में चेर्नोबिल में ऐसा क्या हुआ क्या था जिसकी वजह से आज भी इसका नाम सुन सभी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आइए जानते हैं चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट के इतिहास के बारे में।
26 अप्रैल 1986, इतिहास की वो काली रात जिसे कोई शख्स भूल नहीं सकता। दरअसल, इसी दिन चेर्नोबिल के परमाणु प्लांट में एक ऐसा हादसा हुआ था जिसकी वजह से आज भी लोगों के दिलों में दहशत है। इसी दिन ऊर्जा स्टेशन में इतिहास का सबसे बड़ा परमाणु विस्फोट हुआ था जिसके काफी भयावह परिणाम सामने आए थे।
साल 1972 में बिजली अपूर्ती के लिए की गई थी स्थापना
साल 1972 में यूक्रेन में बिजली अपूर्ती के लिए चेर्नोबिल परमाणु ऊर्जा स्टेशन की स्थापना की गई थी। 1986 तक यहां चार 1000 मेगावॉट के रिएक्टर बनाए जा चुके थे। वहीं, दो रिएक्टर निर्माणाधीन थे। 26 अप्रैल को स्टेशन में एक सुरक्षा परीक्षण किया गया था। लेकिन समय के साथ ये टेस्ट आउट ऑफ कंट्रोल हो गया। इस दौरान असामान्य तौर पर बिजली और भाप बनने की वजह से कई धमाके हुए। इन विस्फोट की वजह से परमाणु रिएक्टर तक फट गए थे।
हादसे में 31 लोगों ने गंवाई थी जान
इस भयानक हादसे में रेडियेशन की वजह से 31 लोगों की मौके पर ही मारे गए थे। इनमें 28 प्लांट के कर्मचारी और फायर ब्रिगेड के लोग शामिल थे। वहीं, विस्फोट की वजह से फैले रेडियेशन की वजह से कई लोग कैंसर से पीड़ित होकर असमय मृत्यु का शिकार हो गए।
दुर्घटना के एक दिन पहले हुई थी टेस्ट की शुरुआत
दरअसल, हादसे के एक दिन पहले यानी 25 अप्रैल को प्लांट के संचालकों ने यहां के टेस्ट की शुरुआत की थी। इस दौरान परमाणु रिएक्टर की एक स्टीम टर्बाइन में एक परीक्षण की जा रही थी। टेस्ट के मुताबिक संचालक पावर में कमी लाना चाहते थे। लेकिन ये उलटा हो गया और पावर आउटपुट अचानक शून्य हो गया। जिसके बाद इसे उपर ले जाने के लिए काफी प्रयास किए गए। लेकिन उनके ये तमाम प्रयास विफल रहे थे।
फेल हो गए थे काबू पाने के प्रयास
संचालक दल के इन तमाम प्रयासों के विफल होने की वजह से रिएक्टर अजीबोगरीब तरीके से बरताव करने लगा था, जो कि टेस्टिंग प्रोसेस के बिलकुल अलग था। लेकिन इसके बावजूद टेस्टिंग प्रोसेस को आगे बढ़ाया गया। हालांकि, बाद में किए गए प्रयासों में भी फेल होने के बाद अंत में इसे रोकने का फैसला किया गया। लेकिन खेल तो इस दौरान शुरु हुआ जब रिएक्टर बंद होने के बजाय अतिरिक्त ऊर्जा बनाने लगा।
ज्यादा ऊर्जा की वजह से पिघलने लगी थीं दीवारें
अतिरिक्त ऊर्जा की वजह से रिएक्टर के दीवार पिघलने शुरु हो गए थे। अंत में ज्यादा दवाब की वजह से रिएक्टर और रिएक्टर बिल्डिंग, दोनों एक विस्फोट से तबाह हो गया। इसके बाद अगले 9 दिनों तक रिएक्टर से निकल रही रेडियोएक्टिव गैस की वजह से आस पास के जगहों पर सांस लेना मुश्किल हो गया था।
विस्फोट की थी एक और अन्य वजह
इस विस्फोट के पीछे एक अन्य वजह ये भी रही थी कि उस दौरान सुरक्षा नियमों को ना मानते हुए रिएक्टर बिल्डिंग के दीवार और टर्बाइन हॉल के छत 'ऐस्फाल्ट' मेटेरियल से तैयार किए गए थे जो कि काफी ज्वलनशील होती है। जिसकी वजह से फायर ब्रिगेड की टीम भी धमाके की वजह से लगी आग पर काबू पाने में असफल रहे थे।
Created On :   14 Feb 2025 6:41 PM IST