कुछ विशेषज्ञ कहते हैं हिंदी नहीं दिला पाती है रोजगार, कुछ का कहना है विदेशी भी कर रहे हैं हिंदी से प्यार

Some experts say that Hindi does not provide employment, some say that foreigners are also in love with Hindi
कुछ विशेषज्ञ कहते हैं हिंदी नहीं दिला पाती है रोजगार, कुछ का कहना है विदेशी भी कर रहे हैं हिंदी से प्यार
हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में टक्कर कुछ विशेषज्ञ कहते हैं हिंदी नहीं दिला पाती है रोजगार, कुछ का कहना है विदेशी भी कर रहे हैं हिंदी से प्यार
हाईलाइट
  • कुछ विशेषज्ञ कहते हैं हिंदी नहीं दिला पाती है रोजगार
  • कुछ का कहना है विदेशी भी कर रहे हैं हिंदी से प्यार

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदी व क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर देश के कई भाषा विशेषज्ञ व शिक्षाविद् आशावान है। शिक्षाविदों का कहना है कि जब पश्चिम के कई देशों में हिंदी का महत्व बढ़ रहा है तो फिर भारत को अपनी मातृभाषा को कामकाज की भाषा बनाने से नहीं चूकना चाहिए। जबकि कई शिक्षाविदों का कहना है कि हिंदी को रोजगार परक भाषा बनाने की आवश्यकता है न कि इसे जबरन लोगों पर थोपना चाहिए। शिक्षाविदों का मानना है कि अभी भी रोजगार के क्षेत्र में हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी कहीं ज्यादा सफल है। इसलिए हिंदी को रोजगार एवं कामकाज से जोड़ने की आवश्यकता है।

देश के जाने-माने शिक्षाविद एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में निर्णय लेने वाली सबसे बड़ी संस्था एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अशोक अग्रवाल का कहना है कि भाषा के दो महत्वपूर्ण आयाम होते हैं पहला उसकी आवश्यकता और दूसरा भाषा से जुड़ी लोगों की भावनाएं।

अशोक अग्रवाल के मुताबिक, हमारे देश में आवश्यकता की भाषा तो अंग्रेजी बन चुकी है जबकि लोगों की भावनाएं अभी भी हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़ी हैं। अब अगर ऐसी स्थिति में हमें हिंदी को आगे बढ़ाना है तो उसे लोगों पर जबरन थोपा नहीं जाना चाहिए बल्कि हिंदी की वैल्यू बढ़ानी होगी।

उनका कहना है कि हिंदी हम सब बोलते हैं, हिंदी जानते हैं लेकिन इसका इस्तेमाल हर जगह नहीं हो पाता है। हमारे देश में आज भी रूलिंग लैंग्वेज अंग्रेजी ही है। अच्छी नौकरी व पांच सितारा संस्कृति में अंग्रेजी को प्रमुखता दी जाती है। ऐसी स्थिति में हिंदी का महत्व स्वयं ही घट जाता है।

अशोक अग्रवाल के मुताबिक इस स्थिति में यदि आप हिंदी को लोगों पर जबरन थोपेंगे तब भी इसका कोई खास नतीजा देखने को नहीं मिलेगा। इसलिए जरूरी है कि हिंदी की उपयोगिता बढ़ाई जाए खासतौर पर व्यवसाय क्षेत्र में, सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरियों के क्षेत्र में, ज्ञान, विज्ञान, अदालत, स्कूल, कॉलेजों एवं सरकारी महकमों में हिंदी को महत्व दिया जाए तब जाकर इसकी उपयोगिता और हिंदी भाषा के चलन में विस्तार होगा।

प्रसिद्ध शिक्षाविद सीएस कांडपाल के मुताबिक अंग्रेजी भाषा का चलन अधिक होने के पीछे एक ठोस कारण है। यह ठोस कारण छात्रों को मिलने वाली स्कूली शिक्षा है। दरअसल हमारा स्कूली शिक्षा का तंत्र अभी भी अंग्रेजी भाषा पर आधारित है। यही कारण है कि स्कूली सिस्टम से बाहर निकलने के उपरांत छात्र जब अपने करियर या फिर उच्च शिक्षा की ओर जाता है तो वह अगली परीक्षाओं के लिए अंग्रेजी भाषा का ही चयन करता है क्योंकि स्कूल में पढ़ाई के दौरान वह विभिन्न विषयों को अंग्रेजी भाषा में ही पढ़ते आए हैं।

हालांकि दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष व दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रोफेसर हंसराज सुमन का कहना है कि हिंदी भाषा न केवल भारत बल्कि पश्चिमी देशों खाड़ी देशों एशियाई देशों एवं यहां तक कि अफ्रीकी देशों में भी लोकप्रिय हो रही है। विश्व के कई देशों में भारतीय सिनेमा कला एवं संस्कृति को पसंद किया जाता है। प्रोफेसर सुमन के मुताबिक करीब 95 विदेशी विश्वविद्यालयों में कबीर को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया हैं। कबीर के अलावा टैगोर और निराला भी विदेशी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं। गौतम बुद्ध को पहले से ही दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है।

प्रोफेसर सुमन का कहना है कि जहां-जहां कबीर पहुंचे जहां-जहां निराला पहुंचे समझ लीजिए कि वहां हिंदी पहुंची है। हिंदी के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ी हैं सुरीनाम, वियतनाम, कंबोडिया, फिजी, त्रिनाड जैसे देशों में भी हिंदी को महत्व दिया जा रहा है।

प्रोफेसर सुमन के मुताबिक पश्चिम के देशों में हिंदी बोलने, समझने एवं अनुवाद करने वालों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। ऐसी स्थिति में जब पूरा विश्व में हिंदी का स्वागत कर रहा है तो हम कैसे पीछे रह सकते हैं। हिंदी न केवल भारत की राजभाषा है बल्कि यह कामकाज की भी भाषा है हिंदी का सिनेमा हिंदी का रंगमंच भारत के घर-घर में पहुंचा है। अब ऐसे में यदि सरकार हिंदी को कामकाज की भाषा बनाती है तो यह एक अच्छी पहल है। हिंदी को कक्षा 10 तक अनिवार्य विषय के रूप में देशभर में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही सरकार को ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी का दबदबा बढ़ सके।

आईएएनएस

Created On :   17 April 2022 12:31 PM IST

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