आओ संकल्प लें कि - 10 फरवरी से शुरू हो रहे एमडीए राउंड के दौरान हम फाइलेरिया से बचाव की दवा खाएंगे भी खिलाएंगे भी -प्रो. डॉ. संजय द्विवेदी

Lets take a pledge that during the MDA round starting from 10th February, we will feed and eat medicine to prevent filariasis -Prof. Dr. Sanjay Dwivedi
आओ संकल्प लें कि - 10 फरवरी से शुरू हो रहे एमडीए राउंड के दौरान हम फाइलेरिया से बचाव की दवा खाएंगे भी खिलाएंगे भी -प्रो. डॉ. संजय द्विवेदी
नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज डे (30 जनवरी) पर विशेष लेख आओ संकल्प लें कि - 10 फरवरी से शुरू हो रहे एमडीए राउंड के दौरान हम फाइलेरिया से बचाव की दवा खाएंगे भी खिलाएंगे भी -प्रो. डॉ. संजय द्विवेदी
हाईलाइट
  • सामाजिक सहभागिता
  • उपेक्षित नहीं प्राथमिकता वाली बीमारी मानने से पाएंगे पार

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। विश्व स्तर पर आज भी कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जो जानलेवा तो नहीं किन्तु जीवन के हर पल को कष्टप्रद अवश्य बना देती हैं। इन्हीं में शामिल हैं फाइलेरिया (हाथीपाँव), कालाजाजार, कुष्ठ रोग जैसी 16 उपेक्षित किन्तु गंभीर बीमारियां। इन बीमारियों के प्रति जागरूकता लाने के लिए ही हर साल 30 जनवरी को वर्ल्ड नेग्लेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज डे मनाया जाता है।

केंद्र सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति

इस दिवस को मनाने का मूल उद्देश्य इन उपेक्षित बीमारियों पर पूर्ण विराम लगाना है। यह ऐसी बीमारियाँ हैं जो व्यक्ति को आर्थिक ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी कमजोर बनाती हैं, लेकिन केंद्र सरकार की प्रबल इच्छा शक्ति के आगे यह बीमारियाँ आने वाले वर्षों में दम तोड़ती नजर अवश्य आएँगी क्योंकि इस दिशा में केंद्र सरकार मिशन मोड में काम शुरू कर चुकी है। अब जरूरी यह है कि इन बीमारियों को उपेक्षित न मानकर प्राथमिकता वाली बीमारी मानकर सामाजिक सहभागिता के साथ काम किया जाए तभी जल्द से जल्द पार पाया जा सकता है।                      

फाइलेरिया उन्मूलन  
इन बीमारियों में फाइलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति को जीवन भर के लिए दिव्यांग तक बना देती है। मच्छर के काटने से फैलने वाली इस बीमारी के लक्षण आने में पांच से 15 साल भी लग सकते हैं। यह शरीर की लसिका तंत्र (लिम्फैटिक सिस्टम) को सीधे प्रभावित करती है। इसका कोई कारगर इलाज भी नहीं है, इसलिए बचाव में ही हर किसी की सुरक्षा निहित है। इसीलिए फाइलेरिया उन्मूलन के दो प्रमुख बिन्दुओं पर खासतौर पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, पहला-सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम (एमडीए राउंड) और दूसरा रुग्णता प्रबन्धन और दिव्यांगता निवारण (एमएमडीपी) ।

एमडीए राउंड के तहत साल में एक बार घर-घर जाकर फाइलेरिया से बचाव की दवा खिलाई जाती है। अब हमारी बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि जब इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है तो साल में एक बार दवा सेवन कर खुद को और आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित बनाया जाए। अभी 10 फरवरी को राष्ट्रव्यापी एमडीए राउंड शुरू होगा, इसलिए घर पर जब भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता दवा खिलाने आयें तो दवा का सेवन खुद भी करें और आस-पास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें। इसके अलावा मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर व आस-पास साफ-सफाई रखें, जलजमाव न होने दें। सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें। इसके प्रति जागरूकता की अलख जगाने में मीडिया को भी बड़ा मन दिखाना होगा और इस सन्देश को जन-जन तक पहुंचाना होगा। एमएमडीपी के तहत स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से फाइलेरिया मरीजों को घाव के समुचित देखभाल और जरूरी व्यायाम के बारे में अभ्यास कराया जाता है, जिससे उनकी तकलीफ कम होती है व जीवन सरल बनता है। 

आजीविका के साथ काम करने की क्षमता होती है प्रभावित

आंकड़ों के मुताबिक़ भारत में 20 राज्यों/संघीय क्षेत्रों के 328 जिलों में करीब 68 करोड़ लोगों को फाइलेरिया की बीमारी से खतरा है। इनमें उत्तर प्रदेश के करीब 50, बिहार के 38, झारखण्ड के 17, पश्चिम बंगाल के 12, महाराष्ट्र के 17, ओडिशा के 20, मध्य प्रदेश के 11 और छत्तीसगढ़ के नौ जिले शामिल हैं। देश के कुल फाइलेरिया मामलों में करीब 90 प्रतिशत इन्हीं आठ राज्यों में हैं। फाइलेरिया से जुड़ी दिव्यांगता जैसे- लिम्फेडिमा (पैरों में सूजन) और हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन) के कारण पीड़ित लोगों को अक्सर सामाजिक बोझ सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका और काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। भारत में लिम्फेडिमा के 5.27 लाख मामले और हाइड्रोसील के करीब 1.78 लाख मामले प्रभावित जिलों में पाए गए हैं। भारत में लिम्फैटिक फाइलेरियासिस के आर्थिक बोझ के मुताबिक़ देश में फाइलेरिया से प्रभावित मरीजों और उनके परिवारों को हर साल करीब 5900 करोड़ रुपये की हानि होती है। इसमें बीमारी के इलाज पर खर्च होने वाली धनराशि और कार्य अवधि में आई कमी के कारण आर्थिक हानि शामिल है।  

 उन्मूलन का लक्ष्य वर्ष 2030                
इसे केंद्र सरकार की मजबूत इच्छा शक्ति ही कहेंगे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ गंभीर बीमारियों के उन्मूलन का जो लक्ष्य वर्ष तय किया है भारत उस समय सीमा से पहले ही देश को उस बीमारी से मुक्त बनाने का संकल्प ठाना है। सरकार ने महज संकल्प ही नहीं लिया है बल्कि उस दिशा में गंभीरता से काम भी हो रहा है। डब्ल्यूएचओ ने फाइलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य वर्ष 2030 तय किया है किन्तु अभी हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने दिल्ली में आयोजित नेशनल सिम्पोजियम के दौरान इसे वर्ष 2027 तक ही ख़त्म करने का संकल्प लिया है। इसके लिए समाज के हर वर्ग को आगे आने का आह्वान किया गया है। इसी तरह डब्ल्यूएचओ ने क्षय उन्मूलन का वर्ष 2030 तय किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे पांच साल पहले यानि वर्ष 2025 में ही देश से ख़त्म करने का संकल्प लिया। संकल्प को फलीभूत करने के लिए जहाँ युद्ध स्तर पर जांच और इलाज की सुविधाएँ बढ़ाई गयी हैं वहीँ सामजिक सहभागिता को भी पूरी तरजीह दी गयी है। निक्षय मित्र के रूप में समाज के लोग आगे आये हैं और टीबी मरीजों को गोद लेकर मदद पहुंचा रहे हैं ताकि बीमारी को तय समय सीमा में ख़त्म किया जा सके। 

जागरूकता पर जोर देने की जरूरत

इन उपेक्षित बीमारियों के उन्मूलन में सरकार और स्वास्थ्य विभाग के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर कार्य करने में देश की विभिन्न संस्थाएं भी पूरी तत्परता से जुटी हैं, जैसे-डब्ल्यूएचओ, पीसीआई, पाथ, सीफार, जीएचएस, केयर, लिप्रा आदि। इसी क्रम में स्वास्थ्य विभाग के मार्गदर्शन में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) द्वारा लम्बे समय से समाज की मुख्य धारा से अलग-थलग पड़े फाइलेरिया और कालाजार के मरीजों का नेटवर्क और पेशेंट सपोर्ट ग्रुप तैयार किया है। इस पहल से मरीजों को एक प्लेटफार्म मिला है जहाँ पर आपस में मिल बैठकर वह अपना दुःख-दर्द बाँटने के साथ ही इन बीमारियों से समाज को सुरक्षित बनाने के लिए जागरूकता पर भी जोर दे रहे हैं। इसके साथ ही वह अपना अनुभव साझा करते हुए समुदाय को बताते हैं कि इस असहनीय पीड़ा से बचने का एक ही तरीका है कि सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम के दौरान दवाओं का सेवन जरूर करें। 

फाइलेरिया की असहनीय पीड़ा

इसी नेटवर्क से जुड़ीं लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के बक्शी का तालाब ब्लाक के कठवारा गांव की 65 वर्षीया मालती सिंह बताती हैं कि पिछले तीन दशक तक फाइलेरिया की असहनीय पीड़ा के दौर से गुजर चुकी हैं। इस पीड़ा को वह अपने शब्दों में कुछ इस तरह बयां करती हैं - “मैं 30 साल से फाइलेरिया से ग्रसित रही हूँ। पैर और आँचल दोनों ही फाइलेरिया से ग्रसित हैं। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि कभी इससे राहत मिलेगी। बहुत इलाज कराया लेकिन कोई आराम नहीं मिला। वज़न भी बढ़कर 95 किलोग्राम हो गया था, जिससे चलना-फिरना तक दूभर हो गया। साल भर पहले फ़ाइलेरिया नेटवर्क के संपर्क में आई और सरकारी स्वास्थ्य सुविधा से जुड़कर प्रभावित अंगों की सही तरीके से साफ-सफाई और व्यायाम के बारे में जाना। इसे अपनाने से सूजन में लगभग 70 प्रतिशत की कमी आयी और जीवन भी कुछ सरल हो गया। वजन भी घटकर 72 किलोग्राम हो गया है। अब रोज पैदल चलकर मंदिर जाती हूँ और आठ माह से मुझे कोई तीव्र आघात भी नहीं आया है। अब दूसरों को भी जागरूक कर रही हूँ।”

Created On :   28 Jan 2023 5:54 PM IST

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