सरकारी शिक्षक गरीब घरों की लड़कियों को तराश कर बना रहे खिलाड़ी

सरकारी शिक्षक गरीब घरों की लड़कियों को तराश कर बना रहे खिलाड़ी
Bihar govt school teacher spends free time training girls to become champs.
डिजिटल डेस्क, सीवान। बिहार के सीवान जिले के मैरवा में खेतों के बीच बने मैदान में 16 वर्षीय श्रुति कुमारी के साथ कई लड़कियां फुटबॉल के साथ आगे-पीछे दौड़ रही हैं। कभी लड़कियां फुटबॉल को किक मार रही हैं तो दो लड़कियां बारी-बारी से गोल पोस्ट के अंदर फुटबॉल को जाने से रोक रही हैं। कुछ ही दूरी पर बेस बॉल के साथ लडकियां मैदान पर पसीना बहा रही हैं।

खेल के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने के तमन्ना लिए ये निर्धन परिवार की बेटियां सुबह और शाम इसी खेल मैदान में प्रैक्टिस करती हैं। यहां प्रतिदिन करीब 90 से 100 लडकियां आती हैं और अपने सपने को पूरा करने में जुटी हैं।

पटना से करीब 150 किलोमीटर दूर सीवान के मैरवा में रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्टस एकेडमी इन ग्रामीण लड़कियों को न केवल सपना दिखा रहा है बल्कि उनके सपनों को पूरा भी करा रहा है। 2009 से प्रारंभ इस एकेडमी ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए। यहां से निकली कई लडकियों को आज खेल कोटे से सरकारी नौकरी भी मिल गई है।

आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि इस एकेडमी के संस्थापक संजय पाठक खुद इसके कर्ताधर्ता हैं। सबसे गौर करने वाली बात है कि पाठक का खेल से कोई नाता नहीं है, वे आदर्श मध्य विद्यालय में सामाजिक विज्ञान के शिक्षक हैं।

संजय आईएएनएस को बताते हैं कि गुठनी के एक स्कूल से उनका स्थानांतरण 2009 में शिक्षक के तौर पर मैरवा में हुआ। इसी दौरान पंचायत स्तर पर एक खेल प्रतियोगिता का आयोजन होना था। स्कूल के छठी क्लास की दो छात्रा तारा खातून और पुतुल कुमारी दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेना चाहती थीं। इसके लिए मैंने प्रशिक्षण की व्यवस्था की और यह प्रयास रंग लाया।

ये दोनों लड़कियां प्रखंड स्तर पर गोल्ड जीत लाई थीं, फिर दोनों का चयन जिले के लिए हुआ वहां भी उन्होंने खेला और स्टेट लेवल पर सिल्वर और गोल्ड जीता। बाद में ये लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश के लिए खेलीं।

संजय आईएएनएस को बताते हैं कि इसके बाद मुझे महसूस हुआ कि यहां की ग्रामीण परिवेश की लडकियों में उड़ने की क्षमता है, बस उन्हें उत्साहित करने और आसमान दिखाने की जरूरत है। उसी समय मैंने यहां की लड़कियों को प्रशिक्षित करने का बीड़ा उठाया।

शुरू में स्कूल के मैदान से ही इसकी शुरूआत कर दी। उन्होंने कहा कि हालांकि यह इतना आसान नहीं था। ग्रामीण परिवेश में लड़कियों को हाफ पैंट पहनने का विरोध प्रारंभ हुआ। स्कूल के खेल मैदान को छोड़कर खेतों को मैदान बनाया गया और फिर एकेडेमी की शुरूआत कर दी गई। उन्होंने बताया कि जमीन तो अपनी थी लेकिन अन्य व्यवस्था करने में पत्नी के गहने तक बिक गए।

वे कहते हैं कि इसके लिए मैंने भी यूट्यूब से मदद ली और खेल की बारीकियों को सीखा। उन्होंने कहा कि फिलहाल इस एकेडमी में 90 से 100 लड़कियां हैं, जिसमें 45 आवासीय सुविधा के तहत यहीं रहती हैं। वे यहां पढ़ाई भी करती हैं और खेल भी रही हैं।

संजय का दावा है कि उनकी इस एकेडमी से निकलकर एक दर्जन से ज्यादा लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जा चुकी हैं तो 60 से अधिक राष्ट्रीय खिलाड़ी निकल चुकी हैं, जबकि बेहतर प्रदर्शन करने वाली डेढ़ दर्जन से अधिक लड़कियां भारतीय रेलवे, एसएसबी और अन्य विभागों में तथा राज्य सरकारों के भी विभिन्न दफ्तरों में खेल कोटे से नौकरी कर रही हैं।

शिबू कुमारी (15) बिहार टीम की ओर से त्रिपुरा में आयोजित हुए राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता में खेल चुकी हैं। साबरा खातून बिहार जूनियर फुटबॉल टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं जिसकी कप्तानी में बिहार ने रजत पदक प्राप्त किया।

अमृता कुमारी अंडर 14 राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए चुनी गई। इसके अलावा अमृता अंडर 16 में भारतीय टीम की कप्तानी भी की। उन्होंने कहा कि प्रारंभ में तो सबकुछ घर से लगा, लेकिन जब यहां की लडकियां निकलने लगी तब लोगों का ध्यान इस ओर गया। आज आम लोगों के अलावे कई कंपनियां भी मदद देती हैं।

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Created On :   11 Jun 2023 3:12 PM IST

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