Sharad Purnima 2024: ध्रुव योग के साथ बन रहा रेवती नक्षत्र का संयोग, जानिए चंद्रोदय का समय और पूजा विधि

ध्रुव योग के साथ बन रहा रेवती नक्षत्र का संयोग, जानिए चंद्रोदय का समय और पूजा विधि
  • इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं
  • ध्रुव योग के साथ बन रहा रेवती नक्षत्र का संयोग बन रहा है
  • चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात 8:41 मिनट के बाद है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का अत्यधिक महत्व है, वहीं आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के नाम से जाना जाता है। इसे कौमुदी, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, इस बार पूर्णिमा तिथि दो दिन रहने वाली है, ऐसा तिथि के घटने और बढ़ने के कारण हुआ है।

इस साल यह पर्व 16 अक्टूबर, बुधवार को यानि कि आज मनाया जा रहा है। लेकिन, तिथि दो दिन होने के कारण पूर्णिमा का व्रत 16 अक्टूबर रखा गया है, वहीं स्नान दान 17 अक्टूबर को किया जाएगा। इस वर्ष ध्रुव योग के साथ बन रहा रेवती नक्षत्र का संयोग बन रहा है। आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और चंद्रोदय का समय।

शुभ मुहूर्त

तिथि आरंभ: 16 अक्टूबर 2024, बुधवार की शाम करीब 8 बजे से

तिथि समापन: 17 अक्टूबर 2024, गुरुवार की शाम करीब 5 बजे तक

चंद्रोदय का समय

शरद पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय 16 अक्टूबर की शाम 5 बजकर 5 मिनट पर है। वहीं चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय रात में 8 बजकर 41 मिनट के बाद रहेगा।

महत्व

हिन्दू धर्म में शरद पूर्णिमा को अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि माना गया है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इस दिन चन्द्रमा से निकलने वाले अमृत को कोई भी साधारण व्यक्ति ग्रहण कर सकता है। चन्द्रमा से बरसने वाले अमृत को खीर माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने शरीर में ग्रहण किया जा सकता है। इस दिन चांद की रोशनी में बैठने से, चांद की रोशनी में 4 घण्टे रखा भोजन खाने से और चन्द्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति आरोग्यता प्राप्त करता है।

व्रत और पूजा विधि

- घर के उत्तर-पूर्व दिशा में साफ-सफाई कर चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।

- इसके बाद भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देव की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।

- भगवान विष्णु की मूर्ति को दूध, गंगा जल से स्नान कराएं।

- घी का दीपक जलाकर पुष्प आदि से अर्पित करें।

- एक लोटे में जल, चावल और फूल डालकर चंद्र देव को अर्घ्य दें।

- पूजा में अक्षत, गंगा जल, धूप, कपूर, सुपारी और पान के पत्ते आदि शामिल करें।

- चावल और दूध से बनी खीर का भोग जरूर लगाएं।

- इसके बाद पूजा की खीर को रातभर चांद की रोशनी में रखकर अगले दिन प्रसाद के रूप में खाएं और बांटें।

डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग- अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष /वास्तुशास्त्री/अन्य) की सलाह जरूर लें।

Created On :   16 Oct 2024 9:27 AM GMT

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