रवि प्रदोष: साल के अंतिम प्रदोष व्रत पर इस विधि से करें पूजा, मिलेगा उत्तम स्वास्थ्य का वरदान
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू कैडेंलर के अनुसार, कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। दिन के अनुसार, इन्हें अलग अलग नामों से जाना जाता है, जैसे सोमवार को व्रत पड़ने पर सोम प्रदोष कहलाता है। फिलहाल, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन 24 दिसंबर रविवार को रवि प्रदोष व्रत पड़ रहा है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह साल का आखिरी प्रदोष व्रत है।
मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करता है उसे उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यानि कि तमाम तरह की बीमारियों से उसे निजात मिलती है। साथ ही व्रत रखने से भक्त को मनचाहा फल मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि, जो निसंतान दंपति प्रदोष व्रत रखते हैं, उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। आइए जानते हैं पूजा विधि के बारे में...
रवि प्रदोष व्रत सामग्री
एक जल से भरा हुआ कलश, एक थाली (आरती के लिए), बेलपत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद पुष्प व माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री।
पूजा विधि
रवि प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात: काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर शिवजी का पूजन करना चाहिए। उपवास करने वालों को इस पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा दिनभर मन ही मन शिव का प्रिय मंत्र "ॐ नम: शिवाय" का जाप करना चाहिए। इसके बाद सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।
रवि प्रदोष व्रत की पूजा का संध्या समय 4.30 से शाम 7.00 बजे के बीच उत्तम रहता है, इसलिए इस समय पूजा की जानी चाहिए। नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं मिश्री का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। इसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें। शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर से प्रार्थना करें।
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Created On :   22 Dec 2023 11:11 AM GMT