याद करें उन महान गुरुओं को जिनसे स्वयं भगवान ने ली शिक्षा
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुरू का स्थान माता पिता और ईश्वर से भी ऊपर रखा गया है क्योंकि वही है जो मनुष्य को सेवा और भक्ति का अर्थ समझाता है तथा उसे अस्त्र व शस्त्र का ज्ञान देकर उसे महान योद्धा व इंसान बनाता है। कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति और सुखमय जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
स्वयं भगवान ने भी जब पृथ्वी पर अवतार लिया तो गुरू से शिक्षा प्राप्त करने के बाद ही अपनी दायित्व का निर्वाह किया। फिर चाहे बात मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की हो या श्री कृष्ण की। गुरू ने ही मार्ग प्रशस्त किया। तो आइए जानते हैं हम इन गुरुओं के बारे में...
गुरू जिन्होंने दी राम भगवान को शिक्षा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री राम ने सूर्यवंश के राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। श्री राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने गए हैं। पुराणों के अनुसार,
गुरु बृहस्पति को देवताओं के गुरु की संज्ञा मिली है। गुरु बृहस्पति भगवान श्री राम के पहले गुरू थे, जिन्होंने बचपन में उनके पालण पोषण का ध्यान रखा था।
वहीं दूसरे गुरू महर्षि विश्र्वामित्र थे, जिन्होंने त्रेतायुग में जन्मे श्री राम को शास्त्र विघा और धनुर्विघा सिखायी थी। श्री राम के तीसरे गुरू ॠषि वशिष्ठ थे। भगवान श्री राम को वेदों का ज्ञान तथा राज पाठ का ज्ञान ॠषि वशिष्ठ ने ही कराया था और उन्होंने ही श्री राम का राज्याभिषेक भी किया था।
भगवान श्री कृष्ण के गुरू
भगवान श्री कृष्ण के पहले गुरू सांदीपनि थे, उनका आश्रम उज्जैन में था जिसका नाम अवंतिका था। यहां बता दें कि जो गुरू देवताओं को शिक्षा देते हैं उनको सांदीपनि कहा गया है। श्री कृष्ण ने उन्हीं के आश्रम से शिक्षा और दीक्षा ली थी।
श्री कृष्ण के दूसरे गुरु घोर अंगिरस थे। पौराणिक कथाओं में ये बताया गया है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान महाभारत के दौरान दिया था वही ज्ञान श्री कृष्ण को गुरू घोर अंगिरस ने दिया था जो बाद में गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्री कृष्ण के तीसरे गुरु परशुराम थे, जिन्होंने भीष्म, गुरू द्रोर्णाचार्य और कर्ण तीनों को शिक्षा दी थी।
श्री कृष्ण को पाशुपतास्त्र चलाना भी गुरु परशुराम ने ही सिखाया था, ये भी कहा जाता है कि परशुराम ने ही उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया था।
Created On :   2 Sept 2021 5:04 PM IST