जानें इस व्रत का महत्व और पूजा​ की विधि 

Skanda Sashti: Know importance of this fast and the method of worship
जानें इस व्रत का महत्व और पूजा​ की विधि 
स्कंद षष्ठी जानें इस व्रत का महत्व और पूजा​ की विधि 

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के अनुसार भादों माह की शुक्ल की षष्ठी तिथि 12 सितंबर रविवार को है। यह दिन भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है। इस दिन स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाएगा। स्कंद षष्ठी का दिन खास होता है, इस दिन व्रत रखने से संतान के कष्ट कम होने के साथ अपने आस- पास की नकारत्मक ऊर्जा समाप्त होती है। दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है। दक्षिण भारत में लोग इस तिथि को एक उत्सव के रूप में बहुत ही श्रध्दा भाव से मनाते हैं। 

माना जाता है कि, इस दिन संसार में हो रहे कुकर्मों को समाप्त करने के लिए कार्तिकेय का जन्म हुआ था। स्कन्द, मुरुगन, सुब्रमण्यम यह सभी नाम भगवान कार्तिकेय के हैं। बताया जाता है कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई थी। इस दिन यह भी बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत के मृत शिशु के प्राण लौट आए थे।

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शुभ मुहूर्त 2021
तिथि प्रारम्भ: 11 सितंबर शनिवार, शाम 07:37 बजे से
तिथि समाप्त: 12 सितंबर, रविवार शाम 05:20 बजे तक
 
महत्व

स्कंद षष्ठी पूजन में तामसिक भोजन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचर्य आवश्यक होता है। इस दिन भगवान कार्तिकेय पर दही में सिंदूर मिलाकर चढ़ाने से व्यवसाय पर आ रहे व्यावसायिक कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। इस दिन पूरे मन से भगवान कार्तिकेय का पूजन करने से जीवन के अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।

पूजा विधि
स्कंद षष्ठी पर कई श्रद्धालू उपवास करते हैं। व्रत करने वाले लोगों को भगवान मुरुगन का पाठ, कांता षष्ठी कवसम और सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ करना चाहिए। भगवान मुरुगन के मंदिर में सुबह जाकर उनकी पूजा करने का विधान है। सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हों और भगवान सूर्य को जल चढ़ाकर व्रत का संकल्प लें। 

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फिर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ भगवान स्कंद की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। सबसे पहले भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। उसके बाद भगवान कार्तिकेय की अक्षत्, धूप, दीप, फूल, गंध, फल आदि से विधिपूर्वक पूजा करें। फिर भगवान कार्तिकेय के मंत्रों का जाप करें। पूजा के अंत में आरती करें। भगवान स्कंद से अपनी संतान की खुशहाली और सुखद जीवन की प्रार्थना करें। फिर प्रसाद लोगों में वितरित करें।

Created On :   11 Sept 2021 5:19 PM IST

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