चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मनाया जाता है सिंघारा दूज पर्व, जानें इसका महत्त्व

Sindhara Dooj is celebrated on the second day of Chaitra Navratri
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मनाया जाता है सिंघारा दूज पर्व, जानें इसका महत्त्व
चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मनाया जाता है सिंघारा दूज पर्व, जानें इसका महत्त्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सिंधारा दूज चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन उत्तरी भारत में महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक जीवंत उत्सव है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार यह पर्व 7 अप्रैल 2019 दिन रविवार को मनाया जाएगा। यह एक ऐसा दिन है जो सभी बहूओं को समर्पित होता है। महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं और अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। उत्तरी भारत में महिलाओं द्वारा सिंधारा दूज को बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से महिलाओं का त्यौहार है। इस दिन सभी सुहागन स्त्रियां और कुंवारी कन्याएं भी अपना श्रंगार करती हैं।

यहां मनाया जाता है उत्सव
इस दिन बेटी के मायके वाले और ससुराल वाले भी अपनी बेटी व बहू को सोलह श्रंगार सामग्री मिठाई और वस्त्र देते है जो कुंवारी कन्याएं होती है उन्हें माता पिता नए वस्त्र कढ़े और मिठाई देते है। यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में आज भी पार्वती जी के मायके से उनके लिए सिंधारा भेजा जाता है। वहीं दक्षिण भारत के विशेषकर तमिलनाडु और केरल में, महेश्वरी सप्तमत्रिका पूजा सिंधारा दूज के दिन की जाती है। इस ​दिन महिलाएं एक सुखी और आनंदित विवाहित जीवन के लिए गौर माता की पूजा करती हैं। 

उपहारों का आदान-प्रदान
ऐसा माना जाता है कि सिंधारा दोज मनाने से बहू बेटी सुहाग व सम्पनता से भरपूर रहती है। सिंधारा दौज को सौभाग्य दूज, प्रीत दुतिया, स्थान वृद्धि और गौरी द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं और पारंपरिक वस्त्र भी धारण करती हैं। इस दिन संध्याकाल में देवी को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा-भाव के साथ मां गौरी की पूजा करती हैं। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है।

सिंधारा दूज के रीति-रिवाज और समारोह
सिंधारा दूज के इस पर्व पर स्त्रियां स्वयं को पारंपरिक वस्त्रों को धारण कर अपने हाथ और पैरों में मेहेंदी लगाती हैं और सोने-चांदी के आभूषण धारण करती हैं। इस दिन नई चूड़ीयां पहनने का विशेष महत्त्व होता है। इस दिन नई चूड़ीयां खरीदना और सुहागन स्त्रियों को चूड़ी भेंट करना भी इस उत्सव की एक परंपरा है। 

बहुओं को उपहार
इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार भेंट करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ जाती हैं। सिंधारा दूज के दिन, बहुएं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए ‘बाया’ लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती हैं। ‘बाया’ में फल, व्यंजन और मिठाई और धन शामिल होता है। संध्याकाल में गौर माता या माता पार्वती की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह ‘बाया’ भेंट करती हैं।

Created On :   3 April 2019 6:14 PM IST

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