जानें इस पर्व का महत्व और पूजा विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह होली पर्व का आखिरी दिन होता है और पांचवा दिन होने के कारण इसे रंग पंचमी कहा गया है। इस दिन अरबी- गुलाल देवी-देवताओं को अर्पित किए जाते हैं। रंग पंचमी के दिन राधा-कृष्ण के पूजन की मान्यता है, उन्हें अबीर और गुलाल अर्पित किए जाते हैं। वहीं इस दिन मां लक्ष्मी और श्री हरि की पूजा का भी विधान है। इसलिए कई जगह पर इसे श्री पंचमी के नाम से भी जानते हैं।
कई स्थानों पर एक-दूसरे के शरीर पर रंग व गुलाल डालकर रंग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि, वातावरण में उड़ने वाले रंग और गुलाल से व्यक्ति में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक गुण प्रवेश करते हैं। इस साल यह पर्व 22 मार्च, मंगलवार को पड़ रहा है। आइए जानते हैं इस पर्व का महत्व और पूजा विधि...
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पूजन विधि
जैसा कि विदित है कि इस दिन राधा कृष्ण या लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। ऐसे में आप इनकी तस्वी को उत्तर दिशा में चौकी पर लगाएं और तांबे का कलश पानी भरकर रखें। इसके बाद रोली, चंदन, अक्षत, गुलाब के पुष्प, खीर, पंचामृत, गुड़ चना आदि का भोग लगाएं। साथ ही भगवान को गुलाल अर्पित करें। पूजन के दौरान ‘ॐ श्रीं श्रीये नमः’ मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजन के बाद आरती करें और प्रार्थना कर कलश में रखें जल से घर में छिड़काव करें।
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यहां है पुरानी परंपरा
रंग पंचमी का पर्व खासतौर पर महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश में धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पकवान, जिसमें मुख्य रूप से पूरनपोली बनाकर इस पर्व को मनाते हैं। विशेष रूप से मध्यप्रदेश में रंग पंचमी खेलने की परंपरा काफी पुरानी है। मध्यप्रदेश के इंदौर में रंग पंचमी के दिन सड़कों पर जुलूस निकाल के हर्बल रंग मिला सुगंधित जल का छिड़काव होता है। वहीं महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन मछुआरों की बस्ती में नाच-गाना होता है।
Created On :   21 March 2022 12:09 PM IST