श्राद्ध पक्ष के दौरान क्यों हैं कौए का इतना महत्व ? जानिए इसका पौराणिक रहस्य
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिंदू धर्म के लोग पितृपक्ष की मान्यताओं के साथ श्राद्ध व तर्पण आदि करते नजर आ रहे हैं। कई लोग दान-पुण्य के साथ ब्राह्मण भोज में भी यकीन करते हैं। लेकिन क्या आप पितृपक्ष में कौए का महत्व जानते हैं? पितृपक्ष में लोग जल व अन्न दान करते हैं साथ ही वह अपनी मान्यता के अनुसार कौए को भी भोजन कराते हैं।
कौए से जुड़ी कई सारी मान्यताएं हैं। पितृपक्ष में कौए को भोजन क्यों कराया जाता है? और यह किस लिए इतना जरुरी है? आइए जानते हैं इसके पौराणिक रहस्य के बारे में...
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गरुड़ पुराण के अनुसार कौवा यमराज का संदेश वाहक है। पितृपक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं, पूजन अनुष्ठान करते हैं और अन्न जल का भोग कौए के माध्यम से लगाते हैं। कहा जाता है कि कौआ यम का यानी यमराज का प्रतीक होता है। कौए को भोजन कराना अपने पितरों तक भोजन पहुंचाने के समान है। कौवे का आना और भोजन ग्रहण करना शुभ प्रतीक माना जाता है।
मान्यता है कि कौवे को निवाला दिए बिना पितृ संतुष्ट नहीं होते। पितृपक्ष में हर परिवार अपने पितरों को खुश करने के अनेक प्रयास करते हैं। जिससे पितर उनके परिवार से खुश होकर उन्हें सफलता का आशीर्वाद दें।
कईं बार हमारे घरों के आस-पास कौए नहीं मिलते उस वक्त किसी अन्य जानवर जैसे कुत्ते व गाय के लिए भी थाली निकाली जा सकती है। पर गरुड़ पुराण में पितृपक्ष के दौरान कौए को भोजन कराना सबसे उत्तम माना गया है। कौए का श्राद्ध पक्ष के दौरान इतना अधिक महत्व होने की एक खास वजह है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यमराज ने कौए को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से ही यह प्रथा चली आ रही है।
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श्राद्ध पक्ष में कौवे को खाना खिलाने से यमलोक में पितर देवताओं को शांति का अनुभव होता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि श्राद्ध के बाद जितना जरुरी ब्राह्मण भोज होता है उतना ही जरुरी कौए को भोजन कराना भी होता हैं। यह अनूठा उदाहरण है जो हमें बताता है कि भारत के लोग अपनी संस्कृति के साथ पशुओं के प्रति भी प्रेम और आदर रखते हैं।
Created On :   29 Sept 2021 5:56 PM IST