जानिए कब मनाया जाता है पांडव पंचमी पर्व
डिजिटल डेस्क, भोपाल। कार्तिक मास की पंचमी तिथि को पांडव पंचमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। पांडव पंचमी इस वर्ष 12 नवम्बर 2018 को पड़ रही है। पांडवों का जन्म महाभारत काल की सबसे विचित्र घटना में से एक है। पांडव पांच प्रसिद्ध वीर योद्धा थे, जिन्हें पांडु पुत्रों के नाम से भी जाना जाता है। आज आपको बताते हैं महाबारत काल की पांडवों के जन्म की विचित्र कथा।
पाण्डु पुत्रों के जन्म की पौराणिक कथा
पांचों पांडवों का जन्म पिता के होते हुए भी विचित्र रूप से हुआ था। एक बार राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों कुंती तथा माद्री के साथ आखेट (शिकार) के लिए वन में गए। वहां पर उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दिखाई दिया। राजा पांडु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुए मृग ने पांडु को श्राप दिया कि “राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस विश्व में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है तो जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जाएगी।”
इस श्राप से पांडु राजा अत्यन्त दुःखी हुए और अपनी रानियों से बोले, “हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग कर इस वन में ही रहूंगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ” उनके वचनों को सुनकर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा, “नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिए।” पांडु ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।
इसी समय राजा पांडु ने कार्तिक अमावस्या के दिन कई ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिए जाते हुए देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का निवेदन किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, “राजन्! कोई भी निःसंतान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।”
तब ऋषि-मुनियों की इस बात को सुनकर राजा पांडु अपनी पत्नी से बोले, “हे कुंती मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है क्योंकि संतानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता क्या आप पुत्र प्राप्ति के लिए मेरी सहायता कर सकती हो?”
कुंती बोली, “हे आर्यपुत्र दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मंत्र दिया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा दीजिए मैं किस देवता को बुलाऊं वाह दिन कार्तिक मास की पंचमी थी जिसे आज पांडव पंचमी के नाम से मनाया जाता है। इसी दिन राजा पांडु ने अपनी पत्नी कुंती को आज्ञा दी और सबसे पहले धर्म को आमंत्रित करने को कहा। धर्म ने कुंती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया।
कालान्तर में पांडु ने कुंती को दो बार पवनदेव तथा इंद्रदेव को आमंत्रित करने की आज्ञा दी। पवनदेव से भीम तथा इंद्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात् पांडु की आज्ञा से कुंती ने माद्री को उस मंत्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्वनी कुमारों को आमंत्रित किया और नकुल तथा सहदेव को जन्म दिया।
एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में नदी के किनारे भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुए ही थे कि श्राप के कारण उनकी मृत्यु हो गई। माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिए कुंती हस्तिनापुर लौट आई।
Created On :   9 Nov 2018 2:46 PM IST