महावीर जयंती 2021: जानिए क्यों मनाया जाता है ये पर्व और क्या है इसका महत्व

Mahavir Jayanti 2021: know why this festival is celebrated
महावीर जयंती 2021: जानिए क्यों मनाया जाता है ये पर्व और क्या है इसका महत्व
महावीर जयंती 2021: जानिए क्यों मनाया जाता है ये पर्व और क्या है इसका महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को महावीर जयंती मनाई जाती है, जो कि आज 25 अप्रैल दिन रविवार को है। यह उत्सव जैन समुदाय का सबसे प्रमुख पर्व है। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा के उपदेश एक खुली किताब की भांति है। बचपन में इन्हें वर्धमान के नाम से पुकारा जाता था। इन्होंने जैन धर्म की खोज के साथ ही इसके प्रमुख सिद्धांतों को स्थापित किया।

देशभर में इस पर्व को पूरे जैन मंदिरों में बड़े ही जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भव्य जुलूस, शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। ​हालांकि इस वर्ष कोरोनावायरस के चलते ऐसा नहीं हो सकेगा। ऐसे में धर्मगुरू और राज्य के मुखियाओं ने आमजन से घरों में रहकर जयंती मनाने की अपील की है। 

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24वें और आखिरी तीर्थंकार
महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकार थे। जिन्होंने 540 ईस्वी पूर्व भारत में बिहार के एक राजसी परिवार में जन्म लिया था। यह राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। इनके जन्म के समय सभी लोग खुश और समृद्ध थे, इस वजह से इनका नाम वर्धमान रखा गया। माना जाता है कि, उनके जन्म के समय से ही इनकी माता को इनके बारे में अद्भुत सपने आने शुरु हो गए थे कि, ये सम्राट बनेंगक या फिर तीर्थंकर। इनके जन्म के बाद इन्द्रदेव ने इन्हें स्वर्ग के दूध से तीर्थंकर के रुप में अनुष्ठान पूर्वक स्नान कराया था। 

महावीर स्‍वामी के सिद्धांत
महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का रहा। इसलिए उन्होंने अपने प्रत्‍येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। इन सभी व्रतों में अहिंसा की भावना सम्मिलित है। इसी कारण जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश होता है ‘अहिंसा ही परम धर्म है. अहिंसा ही परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है. यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है।’

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इसलिए कहा गया जैन धर्म का संस्थापक
स्वामी महावीर ने 30 वर्ष की उम्र में धार्मिक जागरुकता की खोज में घर त्याग दिया था और 12 साल 6 महीने के गहरे ध्यान से इन्हें ज्ञान प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई थी। जिसके बाद इन्होंने पूरे भारत वर्ष में यात्रा करना शुरु कर दिया और लोगों को सत्यए असत्यए अहिंसाए ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते हुए 30 वर्षों तक लगातार यात्रा की। 

72 वर्ष की उम्र में इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया और जैन धर्म के महान तीर्थंकरों में से एक बन गएए जिसके कारण इन्हें जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। 
 

Created On :   25 April 2021 10:35 AM IST

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