''कालभैरव'' ऐसे नियुक्त हुए काशी के कोतवाल, पढ़ें पूरी कथा...
डिजिटल डेस्क, काशी। तंत्र-मंत्र, जादू-टोना, भूत-प्रेत को दूर करने और नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को दूर करने के लिए कालभैरव की जाती है। अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को महाकाल के अंश कालभैरव अष्टमी मनाई जाती है। इस वर्ष यह 10 नवंबर 2017 को मनाई जा रही है। भारत देश के प्रसिद्ध काल भैरव मंदिरों की अपनी अलग मान्यता है लेकिन प्रत्येक में एकमात्र समानता है वह है तंत्र पूजा। कालभैरव मंदिरों में पुरातन काल में तांत्रिकों को ही प्रवेश की अनुमति होती थी, हालांकि समय के साथ अब सामान्य भक्तों को भी प्रवेश दिया जाने लगा है।
कोतवाल के रूप में नियुक्त
इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है। इनके दर्शन के बगैर बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूर्ण नहीं माना जाता। कहा जाता है कि भगवान रुद्र ने ही इन्हें यहां ब्रम्ह दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां भेजा था और कोतवाल के रुप में नियुक्त किया।काशी में ये कालभैरव विशेश्वरगंज, आस भैरव नीचीबाग, बटुक भैरव व आदि भैरव कमच्छा, भूत भैरव नखास, लाट भैरव कज्जाकपुरा, संहार भैरव मीरघाट और क्षत्रपाल भैरव मालवीय मार्केट में विराजमान हैं।
वर्णित है ये कथा
शिव पुराण में इनके जन्म के संबंध में कहा गया है कि ब्रम्हदेव ने भगवान शिव ने अपनी प्रधानता प्रकट करने के लिए एक बार विवाद छेड़ा, जिसके बाद वेदशास्त्रों से पूछने पर उन्होंने कहा, जिसमें आदि और अनंत है जिसमें वर्तमान और भविष्य को समाहित करने की क्षमता है वही श्रेष्ठ है, किंतु ब्रम्हदेव ने इसे स्वीकारने से मना कर दिया। तभी एक रुद्र ज्योति प्रकट हुई। ब्रम्हदेव ने उसे कहा कि तुम मुझसे ही प्रकट हुई हो, मैंने ही तुम्हारा नाम रुद्र रखा है। मुझे स्वीकारों और मेरा आदेश मानो। अपमान सुन क्रोध में आए रुद्र ने कालभैरव को प्रकट किया और शिव के पांचवे शीश को काट दिया। उन्हाेंने अपने बाए हाथ की छोटी अंगुली से ही ब्रम्हा का शीश काट दिया था। काशी में इन्हें ब्रम्ह हत्या के दोष से मुक्ति मिलीं और आज भी वे यहां काशी के कोतवाल के रूप में ही पूजे जाते हैं। ये भी मान्यता है कि क्रोध से उत्पन्न होने की वजह से ही ये वाम मार्गी प्रवृत्ति के माने जाते हैं और मांस, मंदिरा का प्रसाद स्वीकार करते हैं।
Created On :   8 Nov 2017 9:24 AM IST