Sanjeevani Booti: रामायण के इस एपिसोड से लोगों को फिर याद आई संजीवनी बूटी, क्या वाकई दुनिया में मौजूद है ये दिव्य औषधी?
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए लॉक डाउन किया गया है। ऐसे में दूरदर्शन पर रामायण का री-टेलीकास्ट किया जा रहा है। लोग रामायण को खूब पंसद कर रहे हैं। हाल ही में रामायण का संजीवनी बूटी वाला एपिसोड टेलीकास्ट हुआ। हिंदू पौराणिक साहित्य में संजीवनी एक जीवन रक्षक जड़ी बूटी है। इस बूटी में चांद की रौशनी में चमकने की शक्ति होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई इस तरह की कोई बूटी थी जो इंसान को ठीक कर देती थी? क्या आज भी हिमालय में इस तरह की कोई बूटी मौजूद है? आइए जानते हैं:
क्या कहा गया है रामायण में?
रामायण में बताया गया है कि जब भगवान राम की पत्नी सीता को राक्षस राजा रावण ने बंदी बना लिया था तो सीता को रावण की कैद से मुक्त करने के लिए भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावण के बड़े बेटे मेघनाद ने श्रीराम के भाई लक्ष्मण की ओर तीर चलाया और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। लक्ष्मण को होश में लाने के लिए लंका से वैद्य सुषेण को लाया गया। वैद्य ने बताया कि हिमालय में द्रोणागिरी पर्वत पर मौजूद मृथासंजीवनी (संजीवनी बूटी) से ही लक्ष्मण को होश में लाया जा सकता है। वैध ने ये भी बताया कि मृथासंजीवनी को सुबह होने से पहले ही लाना होगा। इसके बाद हनुमान इस बूटी को लाने के लिए आकाशमार्ग से हिमालय पहुंचे। जब हिमालय पर वह उस पूटी की पहचान नहीं कर पाए तो वह पूरे पर्वत को उठाकर लंका ले आए। वैध ने इस बूटी की पहचान कर लक्ष्मण को होश में लाए। इसके बाद हनुमान ने इस पर्वत को वापस उसी जगह पर ले जाकर रख दिया गया।
क्या संजीवनी बूटी असली है?
2016 में उत्तराखंड सरकार ने चमत्कारी जड़ी बूटी को खोजने के लिए 25 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, संजीवनी की पहचान में जटिलताओं के कारण इस प्रस्ताव पर संदेह था। इससे पहले 2008 में पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण ने बताया था कि फेन कमल (सोउस्सुरिया गोस्सिपोरा) जो 4,300 मीटर ऊपर उगता है वहीं संजीवनी है। सफेद फोम की तरह खिलने के कारण यह चांदनी में चमकता है। हालांकि इस परिकल्पना की पुष्टि करने के लिए अभी भी अधिक जानकारी का इंतजार है।
संजीवनी बूटी को लेकर 2009 में पब्लिश हुईं थी एक स्टडी
बेंगलुरु के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के डॉ. केएन गणेशैया, डॉ. आर वासुदेवा, डॉ. आर उमा शंकर और सिरसी के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की स्टडी करंट साइंस’ जर्नल में 2009 में एक स्टडी पब्लिश हुईं थी। इस स्टडी में संजीवनी शब्द से मिलते जुलते पौधों के बारे में बताया गया था। इनमें से दो पौधे सेलाजिनेला ब्रायोप्टेरिस और डेस्मोट्रीचम फिम्ब्रिएटम संजीवनी बूटी के बेहद करीबी मानी गई है। ये दोनों पौधे हिमालय में पाए जाते हैं। सेलाजिनेला ब्रायोप्टेरिस मध्य प्रदेश के पचमढ़ी बायोस्फियर रिजर्व में भी मौजूद है। सेलाजिनेला ब्रायोप्टेरिस के बारे में वहां के स्थानीय लोगों ने बताया कि इस पौधे की सूखी पत्तियां पानी के छिड़कने से हरी हो जाती है और उसके औषधीय गुण भी होते हैं। ये बूटी हिमालय में ऊंचाइयों पर भी पाई जाती है।
सेलाजिनेला में कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने की क्षमता
एक रिसर्च में ये सामने आया है कि सेलाजिनेला में कैंसर जैसे बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। इस बूटी पर यह रिसर्च मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के विशेषज्ञों के साथ की गई थी। सेलाजिनेला यह रिसर्च 2009 से 2013 तक चली थी। टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के डॉ. पीके मिश्रा, प्रो. डॉ. उपाध्याय, डॉ. सौरभ तिवारी और डॉ. एसके जैन रिर्सच करने वाली टीम में शामिल थे। डॉ. उपाध्याय ने बताया कि इस रिसर्च के लिए कैंसर युक्त कोशिकाएं भोपाल मेमोरियल अस्पताल से मिली थीं। कोशिकाओं पर जब सेलाजिनेला का अर्क डाला गया तो यह सामान्य में परिवर्तित हो गई।
Created On :   16 April 2020 4:34 PM IST