युगों का रहस्य, 3 दिन के लिए रजस्वला होती हैं ये देवी
डिजिटल डेस्क, गोवाहाटी। आपने कई धार्मिक मेलों के बारे में सुना होगा, उन्हीं में से एक है अम्बुवाची मेला। यह मेला हर साल तीन दिन के लिए असम के गोवाहाटी में स्थित "कामाख्या देवी मंदिर" में आयोजित किया जाता है। कामाख्या मंदिर शक्ति की देवी "सती" का मंदिर है। यहां लगने वाले "अम्बुवाची मेले" में देश-विदेश से श्रद्धालुओं के साथ तांत्रिक भी आते हैं। ये मंदिर भी मुख्य रुप से तंत्र-मंत्र के लिए ही प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि साल में तीन दिन के लिए सती देवी रजस्वला होती हैं, जिस कारण से इस मेले का आयोजन मानसून में किया जाता है। आज हम आपको कामाख्या मंदिर और इस मेले से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिसे आप नहीं जानते होंगे..
कब बना था ये मंदिर?
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण श्राप से मुक्ति पाने कामदेव ने करवाया था। इसिलए इसे कामाख्या नाम दिया गया, लेकिन इसका वर्तमान ढांचा कच्छ वंश के राजा चिलाराय ने 1565 में बनवाया था। बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब ने हमला करके इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। जिसके बाद राजा नर नारायण ने 1656 में इसका पुनर्निर्माण करवाया था।
मंदिर बनने के पीछे हैं कई मान्यताएं
1. कहा जाता है कि जब देवी पार्वती के पिता ने उनके पति भगवान शिव का अपमान कर दिया था, तो इससे नाराज होकर देवी पार्वती ने हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी। भगवान शिव को जैसे ही इस बारे में पता चला तो वो तुरंत वहां पहुंच गए, लेकिन तब तक काफी देर हो गई थी और देवी पार्वती का आधे से ज्यादा शरीर जल चुका था। भगवान शिव ने उनके शरीर को बाहर निकाला और तांडव करना शुरु कर दिया। शिव का तांडव रुप देखकर देवता घबरा गए और वो भगवान विष्णु के पास भगवान शिव का तांडव रुकवाने के लिए मदद मांगने गए। भगवान विष्णु ने सती पार्वती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए और शिव का तांडव रोक दिया। बताया जाता है कि सती की योनि गोवाहाटी में गिरी। जिस कारण इस मंदिर को निर्माण हुआ। देवी सती के अंग जहां-जहां गिरे वो सभी शक्तिपीठ कहलाए।
2. इसके अलावा एक और मान्यता प्रचलित है। माना जाता है कि असुरराज नरकासुर देवी सती से प्रेम कर बैठा और उनसे शादी करना चाहता था। लेकिन सती देवी उससे शादी नहीं करना चाहती थी। जिससे बचने के लिए उन्होंने नरकासुर के सामने एक शर्त रखी और कहा कि तुम्हें एक ही रात में यहां की पहाड़ियों पर देवी के मंदिर का निर्माण करना है। नरकासुर ने उनकी ये शर्त मान ली और उसने एक रात में ही मंदिर का लगभग पूरा काम कर लिया। ये सब देखकर सती भी घबरा गई और उन्होंने मायावी मुर्गे के द्वारा रात की समाप्ति की घोषणा करवा दी। जबकि अभी सुबह हुई भी नहीं थी। इसके बाद गुस्से में नरकासुर ने उस मुर्गे का वध कर दिया था। बाद में देवी सती ने भगवान विष्णु से नरकासुर का वध करवा दिया।
अम्बुवाची पर्व
मानसून के महीने में साल में तीन दिन लगने वाला ये पर्व विश्व के सिद्ध पुरुष, साधु-संत और तांत्रिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये पर्व सतयुग में 16 साल में एक बार, द्वापर युग में 12 साल में एक बार, त्रेता युग में 7 साल में एक बार और कलयुग में हर साल मनाया जाता है। कहा जाता है कि साल के इन तीन दिनों में देवी सती रजस्वला होती है और इस दौरान उनके गर्भ गृह से पानी की बजाय लगातार रक्त बहता है। इन तीनों के लिए ये मंदिर बंद रहता है और सभी श्रद्धालु और भक्त मंदिर के बाहर ही चौथे दिन का इंतजार करते हैं। चौथे दिन में ही इस मंदिर को खोला जाता है और फिर पूजा-पाठ की जाती है। पूजा-पाठ के बाद ही मेले में सामान की खरीदारी और बिक्री होती है।
Created On :   1 Aug 2017 11:18 AM IST