त्याग और बलिदान का अद्भुत रूप हैं थे गुरु गोविंद, समरसता का वातावरण बनाने का उदाहरण किया था पेश
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद सिंह जी के जन्म उत्सव को ‘गुरु गोविंद जयंती’ के रूप में मनाया जाता है। यह हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इस पर्व को प्रकाश पर्व के रूप में भी मनाया जाता है, इस बार 29 दिसंबर 2022 को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती है। प्रकाश प्रर्व पर गुरू गोबिंद सिंह का जन्मदिवस पूरे देश में ही नही विदेशों में भी सिख धर्मावलंबियाें द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर गुरुद्वारों में भव्य कार्यक्रम सहित गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित करते हुए गुरु परंपरा को खत्म किया था। इसके लिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरू गोबिंद सिंह एक संत के साथ ही धर्मरक्षक, महान कर्मप्रेणता और वीर योद्धा के रूप में भी जाने जाते हैं।
इनका जन्म बिहार की राजधानी पटना में 1666 ई. में सिख धर्म के नौवे गुरु तेगबहादुर साहब और माता गुजरी के घर हुआ। ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे और बचपन से ही इनमें विलक्षण और अद्भुत गुण देखने मिले। बचपन में उनका नाम गोविंद राय था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर थे। उन दिनों मुगलों का शासन था।
गुरू गोबिंद सिंह के पिता गुरू तेगबहादुर भी गुरू नानक की ही भांति दुनिया देश की यात्रा पर निकले थे। बताया जाता है कि पटना में पहुंचने पर वहां के लोगों ने उन्हें वहां लंबे समय तक रुकने की प्रार्थना की, किंतु उनके लिए ऐसा करना संभव नही था। अतः वे अपने परिवार को वहीं छोड़कर असम चले गए। इनमें उनकी मां नानकी, पत्नी गुजरी और साले कृपालचंद शामिल थे।
भक्ति और ज्ञान के साथ ही समाज के उत्थान के लिए भी उन्होंने मार्ग बताए। त्याग और बलिदान के साथ ही दृढ़ संकल्प का अद्भुत रूप गुरू गोबिंद सिंह में देखने मिला। गुरू गोबिंद सिंह में गुरू नानक देव जी की दसवीं ज्याेति प्रकाशमयी हुई। जिस वजह से इन्हें दसवीं ज्योति भी कहा जाता है।
Created On :   29 Dec 2022 5:38 PM IST