धनतेरस पर समुद्र मंथन की गाथा का रहस्य, पढ़ें पूरी कहानी
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। धनतेरस अर्थात भगवान धनवंतरी की जयंती। पुराणों के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से अमृत कलश के साथ इनकी उत्पत्ति हुई थी। आज यानी 17 अक्टूबर मंगलवार को हर ओर इसका उत्साह देखने मिल रहा है। यहां हम आपको समुद्र मंथन से जुड़ी ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं जिसका सीधा संबंध भगवान धनवंतरी और धनतेरस से है।
इंद्र को मिला था श्राप
बताया जाता है कि इस काल में देवता धरती पर हिमालय के उत्तर में रहते थे। तब धरती पर निर्माण और आबादी का विस्तार किया जा रहा था। देवताओं के साथ दैत्यों का भी निवास था। इस समय धरती के अधिकांश हिस्से पर पानी ही पानी थी। बहुत छोटे से हिस्सा जल से बाहर था जहों मेरू पर्वत स्थित था। इसी बीच दुर्वासा ऋषि ने अपने अपमान से क्रोधित होकर इंद्र को लक्ष्मी रहित होने का श्राप दे दिया। इस पर भगवान विष्णु ने उन्हें श्राप मुक्त कराने और धरती के विस्तार के लिए समुद्रमंथन का निर्णय लिया। जिसके बाद भगवान विष्णु ने कच्छप का रूप लिया। उन पर मदरांचल पर्वत रखा गया और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर मंथन शुरू हुआ। इसमें सबसे पहले निकला...
हलाहल (विष) : सबसे पहले इससे हलाहल अर्थात कालकूट विष निकला, जो इतना विषैला था कि संसार का नाश करने के लिए पर्याप्त था। इसे भगवान शिव ने ग्रहण किया जिसके बाद उनका नाम नीलकंठ पड़ा। हथेली से पीते समय कुछ विष धरती पर गिर गया था जिसका अंश आज भी हम सांपए बिच्छू और जहरीले कीड़ों में देखते हैं।
कामधेनु: इसके बाद समुंद्र से साक्षात सुरभि कामधेनु गाय का अवतरण हुआ। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गाय घेरे हुई थीं।
उच्चैः श्रवा घोड़ा : इसके बाद अश्वों के राजा उच्चैःश्रवा घोड़े का जन्म हुआ। श्वेत रंग का उच्चैः श्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। यह इंद्र के पास था।
ऐरावत हाथी : ऐरावत हाथियों का राजा था। इसे इंद्र ने प्राप्त किया। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था।
कौस्तुभ मणि : पांचवां रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। यह एक चमत्कारिक मणि मानी जाती है, जो इच्छाधारी नागों के पास ही होती है।
कल्पद्रुम : यह दुनिया का पहला धर्मग्रंथ माना जा सकता है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुआ। इसे ही कल्पवृक्ष कहा गया है। जबकि कुछ का कहना है कि पारिजात को कल्पवृक्ष कहा जाता है।
रंभा : समुद्र मंथन के दौरान एक सुंदर अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया। इसे भी इन्द्र ने अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। रंभ ने ही विश्वामित्र की घोर तपस्या इंद्र के आदेश पर भंग की थी।
लक्ष्मी : समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई। जिसने स्वयं ही भगवान विष्णु का वरण कर लिया था। यह सुख-समृद्धि कारक मानी जाती हैं।
वारुणी (मदिरा): इसके बाद वारुणी अर्थात शराब की उत्पत्ति होती है। जिसे असुरों ने लिया। कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को भी वारुणी कहते हैं।
चन्द्रमा : इसके बाद चंद्रमा की उत्पत्ति हुई। जिसे ऋषि अत्रि और अनुसुईया की संतान बताया गया है। इनका नाम सोम भी ह। दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से हुआ था। जिनके नाम पर ही नक्षत्रों के नाम हैं।
पारिजात वृक्ष : पारिजात या हरसिंगार उन प्रमुख वृक्षों में से एक है जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है। धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं।
शंख : समुद्र मंथन के दौरान पांचजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। 14 रत्नों में से एक इसे विजय, सुख, शांति और लक्ष्मी व कीर्ति का प्रतीक माना गया है।
धनवंतरी: जिस अमृत के लिए मंथन किया जा रहा था आखिरकार वह वक्त आ ही गया जब भगवान धनवंतरी अमृत कलश के साथ उत्पन्न हुए। उनके बाहर आते ही अमृत कलश के लिए छीना-छपटी मच गई। और भगवान विष्णु को मोहिनी रूप धारण करना पड़ा। उनके साथ ही कई प्रकार की औषधियों का भी जन्म हुआ जिनका प्रयोग आयुर्वेद में किया जाता है। धनवंतरी के अनेक ग्रंथों में अब सिर्फ धनवंतरी संहिता ही शेष है। इसका उल्लेख अनेक पुराणाों व शास्त्रों में मिलता हैं। यही वजह है कि कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का पूजन किया जाता है। चिकित्सालयों में मुख्य रूप से इनका पूजन का विधान है। साथ ही चांदी व पीतल के बर्तनों व सिक्के खरीदने की भी परंपरा है।
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Created On :   17 Oct 2017 9:09 AM IST