ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का रूप हैं भगवान दत्तात्रेय, स्मरण मात्र से दूर होंगे कष्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि का खासा महत्व है। वहीं मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इसे दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, जो कि इस वर्ष आज 18 दिसंबर, शनिवार को मनाई जा रही है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप हैं। साथ ही ईश्वर और गुरु दोनों के रूप में समाहित होने के चलते उन्हें "परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु"और "श्रीगुरुदेवदत्त"भी कहा जाता है।
दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। माना जाता है कि, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने व दर्शन-पूजन करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा से व्रती या जातक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।
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मान्यता और स्वरूप
मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हीं के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। भगवान दत्तात्रेय, अत्रि और अनुसूया के पुत्र हैं। उनका जन्म प्रदोष काल में हुआ। भगवान दत्तात्रेय को स्मृतगामी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि वह स्मरणमात्र से ही अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं।
स्वरूप की बात करें तो, इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएं हैं। इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रूप से अंश मौजूद है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं-सत्व, रजस और तमस एवं उनके छह हाथ यम(नियंत्रण),नियम (नियम),साम (समानता),दम (शक्ति) और दया का प्रतिनिधित्व करते हैं।
गुरु पाठ और जाप
दत्तात्रेय जी का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर दो ग्रंथ लिखे गए हैं "अवतार-चरित्र" और "गुरुचरित्र", जिन्हें वेद समान माना गया है।
मार्गशीर्ष(अगहन) 7 से मार्गशीर्ष(अगहन) पूर्णिमा अर्थार्थ दत्त जयंती तक दत्त अनुयाई द्वारा गुरुचरित्र का पाठ किया जाता है। गुरुचरित्र में कुल 52 अध्याय में कुल 7491 पंक्तियां हैं। इसमें श्रीपाद, श्रीवल्लभ और श्रीनरसिंह सरस्वती की अद्भुत लीलाओं व चमत्कारों का वर्णन है।
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पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ आसन बिछाएं।
- भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें।
- इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करें।
- भगवान की धूप व दीप से विधिवत पूजा करें।
- अंत में आरती गाएं और फिर प्रसाद वितरण करें।
Created On :   18 Dec 2021 4:49 AM GMT