दत्तात्रेय जयंती : 6 भुजाआें से सुसज्जित इनमें समाहित हैं त्रिदेव

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भगवान दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरू दोनों के रूप समाहित माने गए हैं। इन्हें भगवान ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। इसे लेकर माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय का इस दिन पूजन करने से सभी दोषों का नाश होता है और पुण्य में वृद्धि होती है। इन्हें श्रीगुरुदेवदत्त भी कहा जाता है। इस बार दत्तात्रेय जयंती साल 2017 में 3 दिसंबर को मनाई जा रही है।
दक्षिण भारत में इनके पूजन की भव्यता
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय का जन्म प्रदोषकाल में पूर्णिमा को हुआ था। दक्षिण भारत में इनके पूजन की भव्यता देखने मिलती है। यहां इनके अनेक मंदिर हैं। जहां भक्त अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं। दत्त संप्रदाय का उदय भी भगवान दत्तात्रेय से ही माना जाता है। इन्होंने 24 गुरूओं से शिक्षा प्राप्त की थी। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रचलित है ये कथा
तीन शीश और 6 भुजाओं से सुसज्जित हैं और इनके बाल रूप का पूजन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी, पार्वती एवं सावित्री को अपने पतिव्रत धर्म पर घमंड होता हैै। वे देवी अनुसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने ब्रम्हा, विष्णु, महेश को भेजती हैं। तीनों देव भिक्षुक के रूप में जाकर उनसे भिक्षा मांगते हैं और बाद में भोजन की इच्छा प्रकट करते हैं। जब देवी अनुसूइया उन्हें भोजन कराने लगती हैं तो वे उनसे निर्वस्त्र होकर भोजन परोसने की मंशा प्रकट करते हैं। देवी अनुसूइया उनका मन पढ़ लेती हैं और तीनों पर जल छिड़कर उन्हें नन्हा बालक बना देती हैं और पुत्र स्वरूप मानकर उन्हें भोजन कराती हैं। इसके बाद तीनों देवियों को अपनी गलती का एहसास होता है और वे देवी अनुसूइया से क्षमा मांगती हैं। इसी नियति के परिणामस्वरूप भगवान दत्तात्रेय का जन्म होता है।

Created On :   28 Nov 2017 10:59 AM IST