अटल जी की कुंडली, इन ग्रहों की वजह से खास रहा वाजपेयी जी का पूरा जीवन
डिजिटल डेस्क । अटल जी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा रहा कि वो हमेशा हर किसी के चहेते रहे। सार्वजनिक जीवन में भी उनके विपक्षी तो रहे, लेकिन विरोधी नहीं। यही वजह है कि 1952 से 2005 तक, जब तक वो राजनीतिक जीवन में सक्रिय रहे, सबके चहेते रहे। 50 वर्षों तक लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करना कोई मामूली बात नहीं, इससे पता चलता है कि अटल जी किस तरह नेतृत्व क्षमता के धनी थे। उनके भाग्य में देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचना लिखा था, लिहाजा वो तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। लेखन, पठन-पाठन में भी उनकी विशेष रुचि थी, इसी कारण अटल जी की पहचान एक प्रखर कवि के तौर पर भी है। कुल मिलाकर अटल जी का जीवन कई मिश्रित प्रतिभाओं, गुणों का मेल है। आइए देखते हैं कैसी थी अटल जी की कुंडली, जो उन्हें विशिष्ट बनाती है।
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इनकी कुण्डली में राहू की स्थिति के कारण राजनीति में ये दिग्गज राजनेता बने तथा विदेश नीति में संसार भर में समाहित कूटनीतिज्ञ, लोकप्रिय जननायक और कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ ये एक अत्यंत सक्षम और संवेदनशील कवि, लेखक, ज्योतिष और पत्रकार भी रहे। शनि सप्तम में अपनी उच्च राशि तुला में और गुरु,बुद्ध,सूर्य का नवम भाव में होने के कारण विभिन्न संसदीय प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य और विदेश मंत्री तथा प्रधानमंत्री के रूप में इन्होंने विश्व के अनेक देशों की यात्राएं की हैं और भारतीय कुटनीति तथा वासुदेवकुटुम्बकमं एवं विश्वबंधुत्व का घ्वज लहराया एवं केतु और मंगल के कारण ये राष्ट्र धर्म (मासिक), पाञ्चजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक), और वीर अर्जुन (दैनिक), पत्र-पत्रिकाओं के संपादक बने और उस कार्य को सहजता से सम्हाल भी पाए।
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गुरु देव और राहु की कृपा के कारण अटल जी को भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति की गहरी समझ रही। बदलते राजनैतिक पटल पर गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक बनाने,चलाने और देश को विश्व में एक शक्तिशाली गणतंत्र के रूप में प्रस्तुत कर सकने की बात सिर्फ अटल जी जैसे चमत्कारिक नेता के बलबूते की ही बात थी। गुरु ग्रह के कारण ही प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में जहां इन्होंने पाकिस्तान और चीन से संबंध सुधारने हेतु अभूतपूर्व कदम उठाए वहीं अंतरराष्ट्रीय दवाबों के बाद भी गहरी कूटनीति तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए इन्होने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर दिया तथा कारगिल का युद्ध भी जीता गया।
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सन् 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए प्रथम बार निर्वाचित हुए तब से 2004 में 14वीं लोकसभा हेतु हुए संसदीय आम चुनाव तक ये उत्तर प्रदेश में लखनऊ से प्रत्याशी होकर निर्वाचित होते रहे। इस समय में सूर्य, राहु, बुध और गुरु के योग संयोग के कारण सम्भव हुआ। सन् 1962-1967 और 1986-1991 के समय में ये राज्य सभा के सम्मानित सदस्य थे और सन् 1988 से 1989 तक सार्वजनिक प्रयोजन समिति के सदस्य ये सन् 1988-1990 में संसद की सदन समिति तथा व्यापारिक परामर्श समिति के सदस्य रहे। यहां भी राहु की कृपा मिली।
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सन् 1975-1977 के आपातकाल के समय में जब बंदी रहे तब मंगल में सूर्य,चन्द्र का अंतर चल रहा था और मंगल इनकी कुण्डली में बारहवें भाव में मीन राशी के रहे, जिस कारण यातना झेलनी पड़ी। 1977 से 1979 तक भारत के विदेश मंत्री रहे तब राहु में गुरु का अंतर रहा जिसने चंडाल योग होने के बाद भी मान कम नहीं होने दिया और फिर सन् 1977 से 1980 बीच जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे तब भी यही चंडाल योग चल रहा था जो अटलजी के लिए ये शुभकारी था।
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जब चन्द्र में केतु का अंतर आया सन् 1966-1967 में तब सरकारी प्रत्याभूतियों की समिति के अध्यक्ष बने। चन्द्र इनकी कुण्डली में शुक्र के साथ अष्टम भाव में वृश्चिक के हैं, जिसके चलते अध्यक्ष पद से सम्मानित हुए। सन् 1967 से 1970 में लोक लेखा समिति के अध्यक्ष रहे तब चन्द्र में शुक्र और सूर्य का अंतर चल रहा था, सूर्य इनकी कुण्डली में नवम भाव में धनु राशि के हैं, जिसने इन्हें और चमकाया। सन् 1968 से 1973 तक वो भारतीय जनसंघ के अघ्यक्ष रहे तब भी सूर्य की दशा ही रही।
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जब शुक्र की दशा में राहु का अंतर आया तब भारतीय स्वातंत्र्य-आंदोलन में सक्रिय योगदान कर 1942 में जेल जाना हुआ। वाजपेयी जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय सदस्य और सन् 1951 में गठित राजनैतिक दल ‘भारतीय जनसंघ’ के संस्थापक सदस्य भी बने। शुक्र इनकी कुण्डली में अष्टम भाव में है जिसने ये योग बनाए।
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जब इनकी कुण्डली में राहू की महादशा चल रही थी, तब उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब लक्ष्मीबाई कॉलेज) से और कानपुर उ.प्र. के डी. ए. व्ही. कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और राजनीति विज्ञान में M.A.की उपाधि प्राप्त की। सन् 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय के जरिए दर्शन शास्त्र में P.H.D. की मानद उपाधि से सम्मानित किए गए तब भी राहु की दशा थी। राहु कुण्डली में चतुर्थ भाव में कर्क राशि के होने के कारण साहित्य और मान-सम्मान प्राप्त हुआ ।
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स्व.पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे सपूत रहे, जिन्होंने स्वतंत्रता से पूर्व और उसके पश्चात भी अपना जीवन देश और देशवासियों के उत्थान एवं कल्याण हेतु जिया और जिनकी वाणी से असाधारण शब्दों को सुनकर आम जन उल्लासित होते रहे, जिनके कार्यों से देश का मस्तक ऊंचा हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर, 1924 को दिन में 2 बजे हुआ। पुत्र प्राप्ति से हर्षित माता कृष्णा देवी, पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी को तब शायद ही कभी अनुमान रहा होगा कि आगे चलकर उनका ये नन्हा बालक पूरे देश एवं सारी दुनिया में नाम रोशन करेगा।
वाजपेयीजी का जन्म क्रिसमस के दिन दोपहर 2 बजे मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। कुंडली के अनुसार उनके जीवन को देखा जाए तो उनकी कुंडली मेष लग्न की है। कुंडली में लग्नेश मंगल का स्थान बारहवें भाव में है। लग्न से दसवें में केतु है और लग्नेश से दसवें सूर्य गुरु वक्री बुध है। उनकी कुंडली में लग्नेश से नवे भाव में शुक्र चन्द्र है, लग्नेश से अष्टम में शनि है। कुंडली के हिसाब से भी उनके भाइयों और बहनों की संख्या मेल खाती है। उनकी कुंडली में शुक्र चन्द्र राहु की हैसियत को प्रदर्शित करती है और दशाएं इनके जीवन में घटी तमाम घटनाओं को बताती है।
Created On :   17 Aug 2018 12:56 PM IST