अगहन मास: इस माह में लक्ष्मी जी को ऐसे करें प्रसन्न, जानें क्या हैं उपाय
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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू पंचांग का 9वां महीना अगहन (मार्गशीर्ष) धर्म कर्म की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना गया है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार सभी माह में मार्गशीर्ष को विशेष महत्व प्रदान दिया गया है। मार्गशीर्ष में किए गए धार्मिक अनुष्ठानों, जप, तप और योग का जीवन में बहुत ही शुभ फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष मास में अन्न का दान करना सर्वश्रेष्ठ पुण्य कर्म माना गया है। ऐसा करने पर हमारे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं।
वहीं इस माह में नियमपूर्वक रहने से अच्छा स्वास्थ्य तो मिलता ही है, साथ में धार्मिक लाभ भी मिलता है। यही नहीं इस माह में आप धन की देवी मां लक्ष्मी को भी प्रसन्न कर सकते हैं इसके लिए आपको इस माह के हर गुरुवार को खास पूजा करनी होगी। क्या करना होगा इस दिन, आइए जानते हैं...
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व्रत करें
पदमपुराण में यह व्रत गृहस्तजनों के लिए बताया गया है। इस पूजा को पति पत्नी मिलकर कर सकते हैं। अगर किसी कारण पूजा में बाधा आए तो औरों से पूजा करवा लेनी चाहिए पर खुद उपवास अवश्य करें। उस गुरुवार को गिनती में न लें। अगर किसी दूसरी पूजा का उपवास गुरुवार को आए तो भी यह पूजा की जा सकती है। दिन या रात में भी पूजा की जा सकती है। दिन में उपवास करें तथा रात में पूजा के बाद भोजन किया जा सकता है। इस व्रत कथा को सुनने के लिए अपने आसपड़ोस के लोगों को, रिश्तेदारो को तथा घर के लोगों को बुलाएं व्रत कथा को पढ़ते समय शान्ति तथा एकाग्रता रखें।
गुरुवार को सुबह ब्रह्म मुहूर्त से ही माता लक्ष्मी की भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद उन्हें विशेष प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगहन महीने के गुरुवारी पूजा में माता लक्ष्मी को प्रत्येक गुरुवार को अलग-अलग व्यंजनों का भोग लगाने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्थापना, विसर्जन व पूजा विधि
- एक दिन पूर्व ही घर को गोबर से लेप कर लें या फिर गीले कपड़े से पोछ लें।
- इसके बाद एक ऊँचे पीढ़े या चौकी पर या छोटे मेज पर बीच में थोड़े गेहूँ या चावल रख का एक साफ सुथरे ताँबे या पीतल के लोटे को पानी से भर कर चावल या गेहूँ पर रखें।
- पानी में सुपारी, कुछ पैसे और दुब (दूर्वा घास) डाले। ऊपर से लोटे में चारों तरफ पाँच तरह के पेड़ के पांच या सात पत्ते डाल कर बीचों बीच एक नारियल रखें।
- उस नारियल पर बाजार में उपलब्ध देवी के मुखोटे या चहरे को बांध या चिपका दें।
- लोटे पर हल्दी- कुमकुम लगाएं और साथ ही उस लोटे के गले में लोटे के हिसाब से लहंगा बाँध दें और नारियल के ऊपर एक छोटी चुनरी भी चढ़ा देवें।
- देवी की प्रतिमा या फोटो को पूर्व दिशा में मुँह करके या उत्तर दिशा में मुँह करके स्थापना करनी चाहिए।
- इस व्रत कथा की पुस्तक में जो फोटो हैं उसे भी सामने रखें तथा पूजा प्रारंभ करें।
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ऐसे करें पूजा
अगहन मास के गुरुवार के दिन आठ सुहागनों या कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें सम्मान के साथ पीढा या आसान पर बिठाकर श्री महालक्ष्मी का रूप समझ कर हल्दी कुमकुम लगाएं। पूजा की समाप्ति पर फल प्रसाद वितरण किया जाता है तथा इस कथा की एक प्रति उन्हें दी जाती है। केवल स्त्री ही नहीं अपितु पुरष भी यह पूजा कर सकते हैं। वे सुहागन या कुमारिका को आमंत्रित कर उन्हें हाथ में हल्दी कुंकुं प्रदान करें तथा व्रत कथा की एक प्रति देकर उन्हें प्रणाम करें। पुरुषों को भी इस व्रत कथा को पढ़ना चाहिए। जिस दिन व्रत हो, उपवास करे, दूध, फलाहार करें। खाली पेट न रहे, रात को भोजन से पहले देवी को भोग लगाएं एवं परिवार के साथ भोजन करें।
रात को फिर देवी की पूजा करें मिष्ठान का भोग लगाएं तथा गो माता के लिए भी अन्न रखें और दूसरे दिन सुबह गो माता को उनका भाग अर्पित करें। इसके बाद परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर भोजन करें। दूसरे दिन सुबह स्नान कर के पेड़ के पत्तों को निकले और घर मे अलग अलग जगह रखें पानी को समुद्र, नदी, तालाब, कुँए या तुलसी की क्यारी में डाल दें। जिस जगह पूजा की हो वहाँ हल्दी कुमकुम छिड़क कर तीन बार प्रणाम करें।
इसी प्रकार महीने के हर गुरुवार को करें मार्गशीर्ष (अगहन) मास के चारों गुरुवार को इसी प्रकार पूजन करें। पद्मपुराण में कहा गया कि जो कोई जातक हर वर्ष श्री महालक्ष्मी जी का यह व्रत करेगा उसे सुख सम्पदा और धन आदि का लाभ होगा।
Created On :   5 Dec 2020 3:38 PM IST