अजा एकादशी व्रत: इस व्रत से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल, जानें पूजा विधि

Aaja Ekadashi fast: This fast will yield fruit like Ashwamedh Yagya
अजा एकादशी व्रत: इस व्रत से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल, जानें पूजा विधि
अजा एकादशी व्रत: इस व्रत से मिलेगा अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल, जानें पूजा विधि

डिजिटल डेस्क। भाद्रपद मास (भादों) के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी कहा जाता है इसे अन्नदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस बार यह एकादशी 26 अगस्त सोमवार यानी कि आज है। भगवान विष्णु को समर्पित एकादशी के इस व्रत में भगवान के "उपेंद्र" स्वरूप की पूजा की जाती है। मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत करने से अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल मिलता है और तमाम समस्याएं दूर होने के साथ ही  सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

महत्व
इस दिन भगवान श्री कृष्ण को प्रिय गाय और बछड़ों का पूजन करना चाहिए तथा उन्हें गुड़ और हरी घास खिलानी चाहिए। मान्यता है कि इस व्रत करने से एक हजार गोदान करने के समान फल मिलते हैं। कहते हैं कि इस व्रत को करने से ही राजा हरिशचंद्र को अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया था और मृत पुत्र भी फिर से जीवित हो गया था। 

पूजा करने की विधि
घर में पूजा की जगह पर या पूर्व दिशा में किसी साफ जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें। फिर उस पर तांबे का लोटा यानी कि कलश रखें। लोटे को जल से भरें और उसपर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें और उसपर नारियल रख दें। इसके बाद कलश पर या उसके पास भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और भगवान विष्णु की पूजा करें। और दीपक लगाएं लेकिन कलश अगले दिन हटाएं।

कलश को हटाने के बाद उसमें रखा हुआ पानी को पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ पानी तुलसी में डाल दें। अजा एकादशी पर जो कोई भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करता है। उसके पाप खत्म हो जाते हैं। व्रत और पूजा के प्रभाव से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। 

फलाहार करने का विधान 
एकादशी व्रत में अन्न का सेवन नहीं करते हैं। कई जातक तो इस व्रत में केवल जल ही ग्रहण करते हैं। वैसे इस व्रत में एक समय में फलाहार करने का विधान है। व्रत का पारण अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को विधिवत पूजन करने के पश्चात किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन तथा अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर इस व्रत का पारण किया जाता है।

व्रत कथा
सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरीशचन्द्र हुए जो बड़े ही सत्यव्रतधारी थे। एक बार उन्होंने अपने स्वप्न में भी दिये वचन के कारण अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया था एवं दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रुप में एक चण्डाल को बेच दिया था।

अनेक कष्ट सहन करते हुए भी वह कभी सत्य से विचलित नहीं हुए तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले उन्होंने तब अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत राजा हरिशचंद्र को करने के लिए कहा। राजा हरीश्चन्द्र ने उस समय के अपने सामर्थ्यानुसार इस व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ अपितु वह परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में प्रभु के बैकुंठधाम को प्राप्त हुए। अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनके सभी पाप नष्ट हो गए तथा उनको अपना खोया हुआ राज्य एवं परिवार भी प्राप्त हो गया था।

 

Created On :   26 Aug 2019 11:29 AM IST

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