मोक्षदा एकादशी 2023: साल की आखिरी एकादशी पर इस विधि से करें पूजा, पढ़ें कथा
- इस दिन दान करने से कई गुना फल मिलता है
- व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में एकादशी का काफी महत्व है, वहीं मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि, जो व्यक्ति मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन दान करने से भी कई गुना फल की प्राप्ति होती है। वहीं इस एकादशी की कथा को पढ़ने या सुनने से भी वायपेय यज्ञ करने के तुल्य फल मिलता है। इस साल यह एकादशी 22 दिसंबर को पड़ रही है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह साल की आखिरी एकादशी है। आइए जानते हैं पूजा विधि और व्रत कथा...
मोक्षदा एकादशी व्रत विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नानादि से निवृत्त हों।
- भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और व्रत का संकल्प लें।
- घर के मंदिर की सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।
- पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं, उन्हें वस्त्र अर्पित करें।
- इसके बाद रोली और अक्षत से तिलक करें।
- फूलों से भगवान का श्रृंगार करें।
- भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं।
- सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें।
- भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
पुराणों के अनुसार, जब महाभारत का युद्ध चल रहा था और महाराज युधिष्ठिर के अनुज अर्जुन सामने अपने बुजुर्गों पर शस्त्र उठाने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। यह दिन मागशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। भगवान कृष्ण ने इस एकादशी की कथा को खुद युधिष्ठिर को सुनाया था।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि, इस इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। उन्होंने इस विषय में पुराणों की कथा सुनाते हुए कहा कि, गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। तब उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।
प्रात: काल ज्ञानी ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया उसने कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने उनके वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी ही अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख का अनुभव नहीं होता। कृपया कर बताएं क्या करूं?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओ! इस दु:ख के कारण मेरी सारी देह जल रही है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय या युक्ति बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हो जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, किन्तु असंख्य तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहां पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। वहीं पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशलता पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूतकाल विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसीजि पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता को अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है। इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है। यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला है।
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Created On :   20 Dec 2023 8:13 AM GMT