Dhumavati Jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है धूमावती जयंती? जानें तिथि और पूजा मुहूर्त
- 10 महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या हैं धूमावती
- मां धूमावती की जयंती 14 जून, शुक्रवार को है
- पूजा से रोगों और विपत्ति से छुटकारा मिलता है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती (Dhumavati Jayanti) मनाई जाती है। माना जाता है कि इस तिथि को मां धूमावती की उत्पत्ति हुई थी। मां धूमावती पार्वती माता का उग्र स्वरूप माना जाता है। कौए पर सवार मां धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश हमेशा खुले रहते हैं। मां धूमावती को विधवा स्वरूप में पूजा जाता है। इस वर्ष मां धूमावती की जयंती का पर्व 14 जून, दिन शुक्रवार को आने वाला है।
पुराणों के अनुसार, मां धूमावती भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई 10 महाविद्याओं में से सातवीं महाविद्या हैं। ऐसी मान्यता है कि, माता धूमावती की पूजा विपत्ति से छुटकारा पाने, रोग नाश करने, युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। आइए जानते हैं धूमावती जयंती की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और स्वरूप के बारे में...
कैसे हुई उत्पत्ति?
पुराणों के अनुसार, एक बार माता पार्वती को बहुत तेज भूख लगी थी, जिसके बाद उन्होंने शिवजी से भोजन मांगा। लेकिन, वे समाधि में लीन थे। कई बार अनुरोध के बाद भी जब भगवान शिव की समाधि नहीं टूटी तो भूख से आतुर माता पार्वती ने भगवान शिव को ही निगल लिया। लेकिन शिव जी के कंठ में विष होने की वजह से माता के शरीर में जहर पहुंच गया और इससे उनका रूप अत्यंत भयंकर हो गया। शिवजी को निगलने के बाद माता विधवा स्वरूप धारण करती हैं।
बाद में वे शिवजी को अपने पेट से बाहर निकालती हैं। लेकिन घटना से क्रोधित शिव जी माता को विधवा स्परूप में रहने का श्राप दे देते हैं। वे कहते हैं कि, तुम्हें ये रूप पति को निगलने के बाद मिला है, इसलिए तुम्हारे इस रूप को विधवा के तौर पर पूजा जाएगा। साथ ही शिव जी ने इस रूप को धूमावती नाम दिया।
कैसे करें पूजा?
धूमावती जयंती के दिन सुबह उठ कर स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र, केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन, नारियल पंचमेवा आदि सामग्री से माता की विधि विधान से पूजा करें।
Created On :   13 Jun 2024 1:25 PM IST