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Shahdol News: कोयले के काले खेल ने तबाह की एक हंसते खेलते परिवार की जिंदगी
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- ओंकार-पार्वती की दूसरे नंबर की बेटी ने किया पढ़ाई छोडऩे का फैसला
- बड़ी बेटी ममता और रजनी बोलीं- तीनों छोटी बहनों की परवरिश ही अब हमारा मकसद
- पंचायत ने खाद्यान्न से और जनपद अध्यक्ष ने 51 हजार रुपए की राशि देकर हमारा संबल बढ़ाया है।
राघवेन्द्र चतुर्वेदी, शहडोल। पांच दिन पहले धनगवां के ओंकार और पार्वती यादव ने अपनी पांचों बेटियों के साथ रात को एक साथ मिल-बांट कर खाना खाने का सपना संजोया था वह तो तीन घंटे भीतर टूटा ही, अब दूसरे नंबर की बेटी रजनी को अपनी पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ रही है। ग्राम देवरी के सरकारी स्कूल में 9वीं कक्षा में पढऩे वाली 15 साल की रजनी ने घर में ओंकार और पार्वती की मौत का शोक मनाने और शुद्धि आदि के संस्कार पूरे कराने आए रिश्तेदारों के सामने जब अपना यह फैसला सुनाया तो सब स्तब्ध रह गए। रजनी का कहना था कि तीनों छोटी बहनों शशि (11), उर्मिला (9) और शिवानी (2) की अच्छेे से परवरिश हो सके।
तीनों अच्छे से पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो सकें बहुत जरूरी है कि पढ़ाई छोड़ कर अपनी बड़ी बहन ममता का हाथ बंटाया जाए। 18 वर्षीय ममता दसवीं के बाद अपनी पढ़ाई पहले ही छोड़ चुकी है। रजनी को भी अपने माता-पिता की मौत के बाद आय का कोई साधन न होने के चलते स्कूल जाने रोज दस रुपये खर्च करना बड़ा खर्चा लग रहा है। रजनी ने कहा, ‘रविवार (16 फरवरी) की रात कोयला खदान में हुए हादसे में मम्मी-पापा की मौत होने की वजह से , मेरा सोमवार का पेपर छूट चुका है।
पहले भी देवरी तक स्कूल जाने में आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ती थी। आने-जाने में बस का किराया ही दस रुपए है। इसका भी इंतजाम मुश्किल था। अब तो दोहरा संकट आ गया है। मैं खुद की पढ़ाई देखूं या अपनी तीनों छोटी बहनों की, इसलिए यह फैसला करना पड़ा है। मैं अपनी बड़ी बहन और अब परिवार में सबसे बड़ी सदस्य ममता दीदी का घर चलाने और कामकाज में हाथ बटाऊंगी। दोनों बहनें काम करेंगी तो अपनी तीनों छोटी बहनों की परवरिश कर ही लेंगे। इस समय शशि कक्षा छठवीं और उर्मिला चौथी कक्षा में पढ़ रही है। सबसे छोटी 2 साल की शिवानी तो अभी गोद में ही खेलती हैे।
पापा-मम्मी के वह शब्द नहीं भूल सकती
ओंकार-पार्वती की अनाथ पांचों बेटियों में सबसे बड़ी बेटी 18 साल की ममता यादव, उस पल को याद कर भावुक हो जाती हैं जब मजदूर दंपति बीते रविवार की शाम काम पर गए थे। ममता ने बताया काम पर जाते समय पापा-मम्मी बोलकर गए थे कि ‘घर पर सभी बहनें आराम से रहना। जल्दी आते हैं तो साथ में खाना खाएंगे और आराम करेंगे।’ ममता रुंधे गले से बाली की क्या पता था कि उस दिन पापा-मम्मी हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चले जाएंगे। वे दोनों नहीं बल्कि उनकी मौत की खबर आएगी।
अभी सोचा नहीं क्या करूंगी
पहले नंबर की ममता और दूसरे नंबर की रजनी ने साथ में मिलकर काम करने और तीनों छोटी बहनों की परवरिश का फैसला तो कर लिया है लेकिन वे करेंगी क्या, यह तय नहीं कर पाई हैं। ममता ने कहा कि परिवार में आर्थिक संकट शुरू से रहा इसीलिए मैं दसवीं के आगे नहीं पढ़ी। अब रजनी ने भी पढ़ाई छोडऩे का फैसला कर लिया है, क्योंकि हम दोनों के लिए तीनों छोटी बहनों की परवरिश और पढ़ाई जरूरी है। ममता ने कहा जैसे मम्मी-पापा रोज कमाने व खाने के दौर से गुजरे, ऐसे ही अब हमारा जीवन चलेगा।
सामाजिक रिवाजों से फुर्सत होने के बाद हम दोनों बहनें यह तय करेंगे कि आग परिवार की गाड़ी कैसे चले। ऊपर वाले का शुक्र है कि मम्मी-पापा हम लोगों को छत दे गए। अगर हमारा घर न होता तो पहले यही सोचना पड़ता कि कहां रहेंगे? फिलहाल तो पंचायत ने खाद्यान्न से और जनपद अध्यक्ष ने 51 हजार रुपए की राशि देकर हमारा संबल बढ़ाया है। सरकार और प्रशासन आगे क्या मदद करता है, हम कह नहीं सकते, पर उम्मीद जरुर है।
Created On :   22 Feb 2025 2:34 PM IST