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Shahdol News: कैसे हो इलाज, मरीज के लिए 3 मिनट का समय नहीं
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- जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमी का असर मरीजों के डायग्नोस पर पड़ रहा, समस्या बता पाना भी चुनौती
- तीन मिनट का समय देंगे तो पांच डॉक्टर 6 सौ मरीज ही देख सकेंगे।
- डॉक्टर ने सीधे दवा लिखकर ड्रेसर के पास पट्टी बांधने भेज दिया।
Shahdol News: जिला अस्पताल में सोमवार सुबह की ओपीडी 722 और शाम को मिलाकर कुल मरीजों की संख्या 871 तो मंगलवार को सुबह और शाम ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या 767 रही। इन दोनों ही दिनों में मरीजों के परीक्षण के लिए 5 डॉक्टर ही उपलब्ध रहे। ओपीडी में मरीजों की संख्या और डॉक्टर के अनुपात पर नजर डालें तो एक डॉक्टर एक मरीज को तीन मिनट का भी समय नहीं दे सकते हैं।
क्योंकि तीन मिनट का समय देंगे तो पांच डॉक्टर 6 सौ मरीज ही देख सकेंगे। जबकि इस सप्ताह दोनों ही दिन ओपीडी में मरीजों की संख्या 6 सौ से अधिक रही। जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमीं का असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। परीक्षण के लिए आने वाले मरीजों का कहना है कि डॉक्टर के पास इतना समय ही नहीं होता है कि बात भी अच्छे से सुन सकें। ऐसे में बेहतर इलाज कैसे मिलेगा।
जमीन पर गद्दे बिछाकर इलाज को विवश प्रसूताएं
जिला अस्पताल के प्रसूति वार्ड की क्षमता 80 बिस्तरों की है, यानी एक माह में अधिकतम 240 प्रसव हो सकते हैं। यहां जनवरी माह में 650 प्रसव हुए। क्षमता से अधिक मरीजों का असर यह हो रहा है कि वार्ड में बिस्तर कम पड़ जा रहे हैं और प्रसूताओं को जमीन पर ही गद्दे बिछाकर इलाज के लिए विवश होना पड़ रहा है। मरीजों की अत्याधिक संख्या का आलम अन्य वार्ड में भी है। जिला अस्पताल में सर्जिकल व मेडिकल सहित अन्य वार्ड मिलाकर तीन सौ बिस्तर की क्षमता में भर्ती मरीजों की संख्या पांच सौ से अधिक होती है।
डॉक्टरों की उपलब्धता इसलिए जरूरी- जिला अस्पताल में बेहोशी (एनिस्थिसिया) के एक ही डॉक्टर हैं। सोमवार सुबह 9 बजे से उन्होंने ड्यूटी प्रारंभ की तो रात के 10.30 बजे तक ड्यूटी पर रहे। ऐसा पूरे सप्ताह होता है। जिला अस्पताल में डॉक्टरों की कमीं के कारण जो डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं, उन पर भी काम का बोझ ज्यादा होने से इसका असर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। यहां विशेषज्ञ के 38 स्वीकृत पद में 18 और डॉक्टरों के 23 स्वीकृत पद में 13 पद खाली हैं।
विशेषज्ञ के 18 और डॉक्टरों के 13 पद खाली होने के बाद भी 6 डॉक्टरों के छोडक़र चले जाने के बाद भी पद रिक्त नहीं बता रहा है। इसके अलावा अस्पताल में कई डॉक्टरों के अवकाश पर रहने के बाद जो डॉक्टर शेष बचते हैं, उन्ही में काम चलाना पड़ रहा है। इमरजेंसी में ड्यूटी के बाद ओपीडी के लिए 4 से 5 डॉक्टर ही शेष बचते हैं। यह बात सही है कि ओपीडी में मरीजों की संख्या अधिक होने के बाद डॉक्टरों की संख्या बढऩी चाहिए। हमने भोपाल में डिमांड भेजी है। नई पदस्थापना के बाद समस्या दूर होगी।
डॉ. राजेश मिश्रा सिविल सर्जन जिला अस्पताल शहडोल
मरीजों की पीड़ा
भीड़ इतनी थी कि डॉक्टर दो मिनट का भी समय नहीं दे पाए। एक कार्यक्रम में डिनर बनाने के दौरान पत्थर लग गया था। डॉक्टर ने सीधे दवा लिखकर ड्रेसर के पास पट्टी बांधने भेज दिया।
श्याम सिंह चौहान शहडोल मरीज
डॉक्टर के पास गए तो समस्या अच्छे से बता भी नहीं पाए और उन्होंने सीधे भर्ती करने के लिए लिख दिया। जबकि हमे सिर्फ बुखार है, हो सकता है ओपीडी में ही डॉक्टर अच्छे से देख लेते तो दवा से बीमारी ठीक हो जाती।
मुन्नी गड़ारी हर्राटोला मरीज
25 दिन बाद आया सोनोग्राफी का नंबर
जयसिंहनगर के चोरमार से सोनोग्राफी करवाने आईं संगीता चौधरी ने बताया कि उनके पेट और सिर में दर्द की समस्या के बाद डॉक्टर ने सोनोग्राफी लिखी थी तो 17 जनवरी को नंबर लगाए थे और 11 फरवरी की तारीख मिली थी। मंगलवार को सोनोग्राफी करवाने पहुंचे हैं। संगीता ने बताया कि इतना विलंब किसी बीमारी के इलाज में क्या उचित है।
Created On :   12 Feb 2025 1:55 PM IST