Shahdol News: प्रोफेसर-डॉक्टरों के 35 प्रतिशत पद खाली, यूट्यूब से पढ़ाई

प्रोफेसर-डॉक्टरों के 35 प्रतिशत पद खाली, यूट्यूब से पढ़ाई
  • प्रोफेसर-डॉक्टरों के 35 प्रतिशत पद खाली, यूट्यूब से पढ़ाई
  • भर्ती के विज्ञापन निकालने के डेढ़ माह में नहीं हुआ इंटरव्यू,
  • जिला अस्पताल से रैफर मरीज को वापस भेजने का बनाते हैं माहौल

Shahdol News: शासकीय बिरसामुंडा मेडिकल कॉलेज शहडोल में प्राध्यापक, सह प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक से लेकर प्रदर्शक/ट्यूटर के 35 प्रतिशत से ज्यादा पद खाली हैं। इन पदों पर भर्ती के लिए 27 दिसंबर को विज्ञापन निकालने के डेढ़ माह बाद भी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इसका सीधा नुकसान यहां मेडिकल की पढ़ाई पर पड़ रहा है। कक्षाएं कम लगने से अधिकांश छात्र यूट्यूब से पढ़ाई करने विवश हैं। इलाज के लिए जिला अस्पताल से मरीजों को मेडिकल कॉलेज रैफर किया जाता है तो सबसे पहले तो यह माहौल बनाया जाता है कि डॉक्टर नहीं हैं इसलिए मरीज को स्वेच्छा से कहीं और ले जाएं। प्रसव के केस तक जिला अस्पताल भेजने की कोशिश हो रही है। मेडिकल कॉलेज में प्राध्यापकों के खाली पद भर्ती पर डीन डॉ. जीबी रामटेके ने बताया कि सोमवार को इन हाउस स्तर पर खाली पदों को प्रमोशन से भरा जाएगा। 27 दिसंबर को निकाले गए विज्ञापन पर भर्ती का इंटरव्यू डीएमई (डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन) से चर्चा के बाद तय होगी। बतादें कि इन हाउस पदों की पूर्ति से व्यवस्थाओं में ज्यादा अंतर नहीं आएगा, क्योंकि अधिकारी चाहे सहायक प्राध्यापक रहते सेवाएं दें या फिर प्राध्यापक रहते। काम में ज्यादा अंतर नहीं आएगा। जानकार बताते हैं कि जब तक खाली पद नहीं भरे जाएंगे मेडिकल कॉलेज में व्यवस्थाएं नहीं सुधरेगी।

मरीजों के इलाज से लेकर डॉक्टरों को रोक पानेमें लापरवाही

>> ब्यौहारी के पपौढ़ से पत्नी श्वेता तिवारी को प्रसव के लिए आभाष तिवारी जिला अस्पताल पहुंचे तो रविवार सुबह उन्हें मेडिकल कॉलेज रेफर दिया गया। मेडिकल कॉलेज पहुंचने के बाद वहां के स्टॉफ ने तो सबसे पहले यह कहा कि मेडिकल में सोनोग्राफी और ब्लडबैंक की सुविधा नहीं है। डॉक्टर भी नहीं हैं, इसलिए मरीज को वापस जिला अस्पताल ले जाएं। परिजन नहीं माने तो दो घंटे बाद सीजर की तैयारी की गई। दोपहर में सीजर से बच्ची ने जन्म लिया। आभाष ने बताया कि मरीज व परिजनों को लेकर यहां ऐसा माहौल बनाया जा रहा है, जैसे वे इलाज करवाने के बजाए कहीं और चले जाएं। यह व्यवस्था ठीक नहीं है।

>> मेडिकल कॉलेज में एक साल के अंदर 27 से ज्यादा फैकल्टी छोडक़र चले गए। इसमें प्रोफेसर, अस्टिेंट प्रोफेसर, टूर डेमोस्ट्रेटर व सीएमओ शामिल हैं। फैकल्टी की कमी का सीधा असर छात्रों की पढ़ाई से लेकर मरीजों के इलाज पर पड़ रहा है। मेडिकल कॉलेज के डीन पर डॉक्टरों को रोककर व्यवस्था बेहतर नहीं बना पाने के आरोप लग रहे हैं।

>> मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग और शिशु रोग विभाग में 1 प्राध्यापक, 1 सह प्राध्यापक, 2 सहायक प्राध्यापक, 2 सीनियर रेसिडेंट के पद स्वीकृत हैं। इन पदों के विरूद्ध स्त्री रोग विभाग 1 सह प्राध्यापक और 2 सहायक प्राध्यापक और शिशु रोग विभाग 1 सह और 1 सहायक प्राध्यापक के भरोसे ही चल रहा है। शिशु रोग विभाग में दो सीनियर रेसीडेंट डॉक्टरों ने त्यागपत्र दे दिया।

बड़ी समस्या

>> सोनोग्राफी की 18 मशीनें हैं पर चलाने के लिए एक भी रेडियोलाजिस्ट नहीं हैं। मेडिकल कॉलेज शहर से 5 किलोमीटर दूर है। ऐसे में इमरजेंसी में किसी मरीज को सोनोग्राफी की जरूरत पड़ जाए तो एंबुलेंस की मदद से जिला अस्पताल व शहर में निजी सोनोग्राफी सेंटर तक दौड़ लगानी पड़ती है।

>> तमाम दावों के बाद भी मेडिकल कॉलेज में अब तक ब्लड बैंक चालू नहीं हो सका है।

Created On :   11 Feb 2025 5:25 PM IST

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