वंचित: मराठा आरक्षण का सर्वेक्षण करने वाले शिक्षकों को नहीं मिला पारिश्रमिक

मराठा आरक्षण का सर्वेक्षण करने वाले शिक्षकों को नहीं मिला पारिश्रमिक
  • कर्मचारियों के बैंक अकाउंट नंबर तक अभी तक नहीं लिए गए
  • दूर-दूर, घर-घर जाकर किया सर्वे
  • पारिश्रामिक नहीं मिलने से नाराजगी

डिजिटल डेस्क, पुणे। महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया था। यह सर्वेक्षण पूरे महाराष्ट्र में 23 जनवरी से 2 फरवरी तक किया गया। 11 दिनों की छोटी अवधि में मराठों और खुली जाति के लोगों के घरों में जाकर यह मुश्किल काम किया गया। राज्य के करीब ढाई करोड़ परिवारों का सर्वे करने के लिए शिक्षकों सहित 5 लाख सरकारी कर्मचारियों की फौज लगाई गई। पर्यवेक्षक एवं प्रगणक नियुक्त किए गए। राज्य में मराठा समुदाय और सामान्य श्रेणी की संख्या को देखते हुए सरकार के लिए इस सर्वेक्षण को इतने कम समय में पूरा करना बड़ी चुनौती थी। हालांकि, इस चुनौती को पार करते हुए, गणनाकारों ने अपने स्कूल की ज़िम्मेदारियों को भी निभाया। दूर-दराज के इलाकों एवं पहाड़ी तथा घाटियों की बस्तियों में, जहां आना-जाना टेढ़ी खीर होता है, वहां जा कर इन कर्मियों ने यह सर्वेक्षण पूरा किया। लेकिन दु:ख की बात यह है कि सर्वे करने वाले ये शिक्षक आज भी पारिश्रमिक से वंचित हैं।

स्कूल के काम के साथ ही सर्वे किया : जिला परिषद स्कूल के शिक्षक किशोर कदम कहते हैं, "कुछ गांवों में तो सर्वे करने वाले कम थे, इसलिए शिक्षक और अन्य कर्मचारी वाडी, बस्ती, टांडा के घर-घर में गए और देर रात तक काम करते हुए सर्वेक्षण पूरा किया। स्कूल का काम निपटाते हुए हमने यह काम किया। सर्वे के दौरान दूरदराज के गांवों में घूमते हुए मोबाइल चार्जिंग की व्यवस्था न होने के कारण शिक्षकों ने अपने खर्च से पावर बैंक खरीदे। सर्वे हुए डेढ़ महीने से ज्यादा का समय बीत गया है। पर पारिश्रमिक तो दूर कर्मचारियों के बैंक अकाउंट नंबर तक अभी तक नहीं लिए गए हैं।"

मैंने अपनी 5 माह एवं 6 साल की बेटी के साथ गांव-गांव जा कर सर्वे का काम किया। मैं जिस स्कूल में टीचर हूं वहां सिर्फ दो ही टीचर हैं। इसलिए विद्यार्थियों को सुबह पढ़ाना भी पड़ता था। ऊपर से गांव के ज़्यादातर लोग दिन में खेतों में काम करते हैं, इसलिए हमें फॉर्म भरने के लिए शाम को ही जाना पड़ता था। इतनी मेहनत के बाद भी समय पर पारिश्रमिक नहीं मिला। हम लोग डेढ़ माह से पारिश्रमिक का इंतजार कर रहे हैं। - वैशाली बालंदे, शिक्षिका, जिला परिषद स्कूल

कितना पारिश्रमिक था? इस कार्य के लिए नियुक्त कलेक्टरों, नगर निगम आयुक्तों, डिप्टी कलेक्टरों, तहसीलदारों और क्लास 2 या उससे बड़े अधिकारियों को उनके मूल वेतन का 50 प्रतिशत ग्रेच्युटी के रूप में भुगतान करने के लिए कहा गया था। जबकि सर्वेक्षण पर्यवेक्षकों और प्रगणकों को 10,000 रुपये का भुगतान किया जाना था। यदि दिए गए लक्ष्य से अधिक फॉर्म भरे गए, तो मराठा परिवारों के लिए 100 रुपए (प्रति परिवार प्रति फॉर्म), अन्य के लिए 10 रुपए (प्रति परिवार प्रति फॉर्म) मिलने थे।

Created On :   22 March 2024 7:39 PM IST

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