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गांव छोडऩे को तैयार नहीं हैं टाईगर रिजर्व क्षेत्र के ग्रामीण
डिजिटल डेस्क सीधी। संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र में आवाद लोग विस्थापन की कार्यवाही शुरू होने के बाद भी गांव छोडऩे को तैयार नहीं दिख रहे हैं। विस्थापन को लेकर आयोजित हुई ग्रामसभाओं में स्पष्ट रूप से कह दिया गया है कि वे 10 लाख के पैकेज में अन्यंत्र बसने को तैयार नहीं हैं। विस्थापित होने वालों की मनाही के बाद प्रशासन के सामने एक अलग तरह से समस्या खड़ी हो गई है।
उल्लेखनीय है कि जनपद पंचायत कुशमी द्वारा संजय टाईगर रिजर्व सीधी के अन्तर्गत ग्रामों के विस्थापन के संबंध में जिला स्तरीय आयोजित बैठक में लिए गए निर्णय के परिप्रेक्ष्य में उपखण्ड अधिकारी कुशमी ने विशेष ग्रामसभा आयोजित करने के निर्देश दिए गए थे। जिसके लिए नोडल अधिकारियों की भी नियुक्ति की गई थी। अत: उक्त निर्देश के परिपालन में ग्राम पंचायत दुबरीकला के ग्राम दुबरी खुर्द, गोंइदवार, बहेरवार, खरबर ग्राम पंचायत में कंचनपुर, लवाही, बंडिया, डेवा ग्राम पंचायत में देवमठ, पिपराही, बहेराडोल, मगरा, खैरी, पनखोरा, गिजोहर ग्राम में विशेष ग्रामसभा का आयोजन किया गया। किन्तु सूचना उपरांत भी कई ग्रामों के आदिवासी ग्रामीण इस विशेष ग्रामसभा में उपस्थित नहीं हुए। इतना ही नहीं जिन ग्रामों में कुछ ग्रामीण उपस्थित भी हुए तो वह विस्थापन से कतई सहमत नहीं दिखे और विस्थापन में सहमति जताने ग्रामसभा के कार्यवाही रजिस्टर पर हस्ताक्षर करने से भी इंकार कर दिया। इसी कड़ी में गत दिवस शनिवार को खैरी ग्राम पंचायत के ग्राम गिजोहर की विशेष ग्रामसभा में उपस्थित सरपंच गुलाबवती बैगा, जनपद सदस्य रामवती बैगा, सचिव राजकुमार गुप्ता तथा हल्का पटवारी राजीव सिंह के समक्ष ग्रामीणों ने अपना दर्द बयां कर सरकार पर आरोप लगाते हुए बताया कि एक तरफ सरकार द्वारा बैगा जनजाति के उत्थान की बात कह रही है वहीं दूसरी ओर संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र में कई दशकों से निवासरत हम गरीब अनपढ़ बैगा जनजाति के लोगों को सरकार द्वारा 10 लाख रुपए के पैकेज का प्रलोभन देकर विस्थापित करने का काम किया जा रहा है। आज की मंहगाई में 10 लाख रुपए में कैसे जमीन खरीदकर फिर से हम लोग घर गृहस्थी बसायेंगें।
मुआवजा राशि बढ़े तो बने बात
संजय टाईगर रिजर्व में आवाद परिवारो को विस्थापन से कोई समस्या नही किन्तु मुआवजा राशि इतनी कम है कि दूसरे गांव जाकर वे फिर से आवाद हो सकेंगे इसमें संशय दिख रहा है। करीब एक दशक पहले मुआवजा की राशि निर्धारित हुई थी जिसमें अभी तक कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। इस दौरान महंगाई आसमान छूने लगी है। जंगलो में आवाद आदिवासी परिवार अगर किसी तरह से घर बनाने के लिए जमीन खरीद भी लेंगे तो घर बन पाना मुश्किल दिख रहा है। अगर इसके पहले खाने, पीने में राशि खर्च हो गई तो विस्थापितो को घूमंतु जीवन ही व्यतीत करना पड़ेगा। एक तरफ सरकारी निर्देश पर प्रशासन द्वारा संजय टाईगर रिजर्व में आवाद लोगों को विस्थापित करने की प्रक्रिया शुरू तो की गई है किन्तु विस्थापितो की समस्या पर गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है। इसीलिए जगह-जगह विस्थापन के विरोध में स्वर उठने लगे हैं।
Created On :   9 Nov 2020 3:40 PM IST