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मैहर के श्रीसिद्ध में 175 वर्ष से विराजे हैं छठवीं शताब्दी के वाममुखी विनायक महाराज
डिजिटल डेस्क सतना। 6 फीट का मंदिर उस पर महज 4 फीट का द्वार। मैहर के राम जानकी बड़ा अखाड़ा के इसी श्रीसिद्ध मंदिर में 175 वर्ष से वाममुखी विनायक विराजे हैं। अखाड़ा के महंत सीता वल्लभ शरण बताते हैं, पुरातात्विक परीक्षण में यह पाषाण प्रतिमा छठवीं शताब्दी की बताई गई है। जनविश्वास में स्वयं सिद्ध वाममुखी विनायक की प्रतिमा की स्थापना का श्रेय आचार्य संत श्रीराम सुखेन्द्र विद्याजी को है। महंतश्री ने बताया कि वर्षों पूर्व यह प्रतिमा गौसेवा के निमित्त निर्माणाधीन एक तालाब की खुदाई के दौरान मिली थी।
जैसे-जैसे आकार बढ़ा,वैसे-वैसे बढ़ी आस्था
मैहर बड़ा अखाड़ा के महंत सीता वल्लभ शरण ने जनश्रुतियों के हवाले से बताया कि 175 वर्ष पहले जब खुदाई के दौरान यह प्रतिमा मिली थी तब इसकी ऊंचाई महज एक फीट थी। एक फीट की मूर्ति की स्थापना के 4 फीट के द्वार का मंदिर बनाया गया,लेकिन धीरे-धीरे जब वाममुखी श्रीसिद्ध विनायक की प्रतिमा बढऩे लगी वैसे-वैसे जनआस्था बढ़ी और कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। जब प्रतिमा की ऊंचाई 5 फुट सात इंच की हो गई तो स्वप्न में मिली प्रेरणा के कारण आचार्य संत श्रीराम सुखेन्द्र विद्याजी ने एक दिन अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से प्रतिमा के दाहिने पैर के अंगूठे से दबा दिया। मूर्ति का विस्तार रुक गया। कालांतर में मंदिर की ऊंचाई तो बढ़ाकर 6 फीट कर दी गई लेकिन मंदिर के 4 फीट के द्वार से छेडख़ानी नहीं की गई।
क्या है, वाममुखी का धार्मिक महत्व
धर्मशास्त्रों के अनुसार जिस श्रीगणेश की प्रतिमा की संूड का अग्रभाव बाईं ओर मुड़ा होता वह मूर्ति वाममुखी कहलाती है। वाम यानी उत्तर दिशा। बाईं तरफ चंद्र नाड़ी होती है। जो शीतलता प्रदान करती है। उत्तर दिशा अध्यात्म की कारक एवं आनंददायक मानी जाती है। वाममुखी गणपति के पूजन की विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं होती। वाममुखी विनायक का पूजन गृहस्थ जीवन के लिए शुभ माना गया है। यह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। थोड़े में संतुष्ट होते हैं और त्रुटियों को क्षमा करते हैं। मैहर का स्टेट का राजघराना वाममुखी श्रीसिद्ध विनायक का पीढ़ी दर पीढ़ी अनुयायी है।
रोज साढ़े 14 घंटे सुलभ हैं दर्शन
मैहर के बड़ा अखाड़ा स्थित श्रीसिद्ध विनायक मंदिर के पट भक्तों के लिए प्रतिदिन सुबह 6 बजे से रात साढ़े 8 बजे तक खुलते हैं। सुबह 6 बजे स्नान के बाद सिंदूर का चोला चढ़ा कर आभूषण श्रंृगार कर भोग आरती की जाती है। महंत सीता वल्लभ शरण के सानिध्य में ब्रम्हचारी बालयोगी संत नित्य पूजा अर्चना करते हैं। जन विश्वास है कि श्रीगणेश चतुर्थी के दिन मंदिर की 3 परिक्रमा करने से भक्तों के सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
Created On :   10 Sept 2021 2:10 PM IST