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विदर्भ की इकलौती अनोखी बायोलैब, महिलाएं संभाल रही कमान
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डिजिटल डेस्क, यवतमाल। यह तो सच है कि खेतों में यदि रासायनिक दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल किया जाए तो जमीन की उर्वरक क्षमता प्रभावित होती है। ऐसा विदर्भ के कई गांवों में नजर भी आ रहा है। विदर्भ के कई क्षेत्रों में खेती में रासायनिक खाद व कीटनाशक का उपयोग अधिक होने से जमीन की उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है। इस कारण किसानों को अधिक लागत में भी कम फसलोत्पादन का सामना करना पड़ रहा है। कीटनाशक भी अब कीटों के साथ ही किसानों को भी लील रहा है। ऐसे में जैविक खेती के रूप में नया विकल्प उभरकर सामने आया है, जिसमें लागत कम और उत्पादन और मुनाफा अधिक होने के साथ ही विषमुक्त फसल मिल रही है। ऐसी सुगम खेती के लिए आवश्यक बायोलैब का निर्माण यवतमाल की संगीता सव्वालाखे ने किया है। विदर्भ की यह पहली बायोलैब मानी जा रही है जिसमें 500 टन उत्पादन व सालाना करोड़ों का लेन देन हो रहा है।
महिलाएं चला रहीं बायोटेक लैब
यवतमाल के लोहारा एम.आई.डी.सी. क्षेत्र में विदर्भ बायोटेक लैब के नाम से यह लैब चलाई जा रही है जिसमें कार्यरत अधिकांश कर्मचारी महिलाएं ही हैं। संगीता दीपक सव्वालाखे (कहारे) ने वर्ष 1992 में कीटशास्त्र में एम.एस.सी. किया था। इस विषय में अध्ययन करने वाली वे इकलौती महिला थीं। बी.एस.सी. एग्रीकल्चर की स्नातक की पढ़ाई के बाद उन्हें चंद्रपुर के सिंदेवाही में 6 माह खेत पर प्रयोग करने का अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि रासायनिक दवाओं से खेती का नुकसान हो रहा है। फिर क्या था उन्होंने जैविक खेती के लिए इस क्षेत्र में काम करने का निर्णय किया।
बीज से लेकर सस्ती दवा करवा रहे उपलब्ध
वर्ष 1995 में घर के 3 कमरों में से एक कमरे में उन्होंने लैब शुरू की। ट्रायकोकार्ड यह उनकी पहली परियोजना थी। 23 वर्ष से इस क्षेत्र में वे कार्यरत हैं। वर्ष 2009 से यह लैब पृथक यूनिट के रूप में शुरू की गई है। अब इस यूनिट में 11 प्रकार के उत्पादन होते हैं जिसमें बीज प्रक्रिया से लेकर उत्पादन हाथ में आने तक के सभी उत्पादों का निर्माण किया जाता है। ट्रायकोडर्मा 40 से 50 टन व शेष उत्पादन प्रति 20 से 25 टन तैयार हो रहा है। इसके साथ ही 4 से 5 हजार लीटर दवा भी बनाई जा रही है। रासायनिक खाद की तुलना में सस्ते दाम में यह खाद, कीटनाशक पाउडर व द्रव्य रूप में किसानों को उपलब्ध करवाई जा रही है।
एक माह बारिश न होने पर भी फसल सुरक्षित
इस दवा का प्रयोग करने के बाद जिब्रालिक सीड, इन्जाइम आदि का उपयोग नहीं करना पड़ता। खरीफ के मौसम में एक माह तक बारिश ही नहीं हुई तब भी पौधे सूखे नहीं। इसी कारण सव्वालाखे द्वारा निर्मित दवाईयों की मांग बढ़ी है। राज्य के 7 से 8 हजार किसान, टाटा ट्रस्ट, स्वामीनाथन फाउंडेशन, रिलायन्स फाउंडेशन, बजाज फाउंडेशन तथा अर्धशासकीय संस्थाओं में भी इसकी मांग बढ़ रही है। खेती के मौसम में इस यूनिट में 30 से 35 महिलाएं कार्य करती हैं। किसानों के लिए महंगे बीज, खाद, कीटनाशक खरीदना असंभव होता जा रहा है।
फसलों पर किसान निर्भर न रहें
ऐसे में सव्वलाखे द्वारा निर्मित बायो लैब से सस्ते दामों में उपलब्ध जैविक दवाईयां किसानों के लिए लाभप्रद साबित हो रही हैं। यही नहीं घर में ही खाद कैसे बनाएं, कौन से मौसम में कौन सी फसल ली जाए, इस बारे में किसानों को उनके खेतों में जाकर संगीता मार्गदर्शन करती हैं। उनका कहना है कि परंपरागत फसलों पर किसान निर्भर न रहें, ऐसी खेती करें जिससे साल भर पैसा घर में आए। जैविक खेती के संबंध में मार्गदर्शन के लिए वे विभिन्न राज्यों में भी जाती हैं जिसका कोई शुल्क नहीं लेतीं। कृषि संबंधी ज्ञान का उपयोग किसानों को मिल सके इसलिए वे नौकरी के पीछे नहीं लगीं। इस कार्य के लिए उन्हें मायके और ससुराल दोनों पक्षों से अच्छा प्रतिसाद मिला। उनके इस मौलिक कार्य के लिए उन्हें राज्य, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। अंतरराष्ट्रीय महिला उद्योजक कांग्रेस व लंडन ओवरसीज डेवलपमेंट की वे सदस्य भी हैं।
Created On :   10 Nov 2017 11:42 AM IST