रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी का शुभारंभ

Two day Sanskrit seminar on Natya Shastra inaugurated at Rabindranath Tagore University
रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी का शुभारंभ
नाट्यशास्त्र का विश्व कलाओं पर प्रभाव रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय नाट्य शास्त्र पर दो दिवसीय संस्कृत संगोष्ठी का शुभारंभ

डिजिटल डेस्क, भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में ‘नाट्यशास्त्र का विश्व कलाओं पर प्रभाव’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। इस दो दिवसीय वैचारिक अनुष्ठान का संयोजन संस्कृत प्राच्य भाषा शिक्षण एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र कर रहा है। इस संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संस्कृत साहित्य के अध्येता तथा पूर्व कुलाधिपति डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी जी, अध्यक्ष के रूप में आरएनटीयू के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे जी, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के डॉ. रमाकांत पाण्डे जी, विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. ब्रह्म प्रकाश पेठिया जी और प्रति कुलपति डाॅ. संगीता जौहरी विशेष रूप से उपस्थित थीं।

संगोष्ठी में संबोधित करते हुए डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आरएनटीयू ने संस्कृत प्राच्य भाषा शिक्षण एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र की स्थापना अत्यंत ही प्रशंसनीय है। यह संगोष्ठी आगे हमारा मार्ग प्रशस्त करेगी। अच्छे शोधकर्ता अच्छे अनुसंधानकर्ता हमारे बीच इसी तरह पनपते हैं संगोष्ठियों का यही महत्व होता है। नाट्यशास्त्र का विश्वकलाओं पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव पड़ता है। उन्होंने नाट्यशास्त्र की बारीकियों पर चर्चा की।

वहीं श्री संतोष चौबे जी ने संबोधित करते हुए बताया कि नाटक आपके जीवन में रस प्रवाहित करता। नाटक का मैं पैक्टिशनर जरुर हूूं। और किसी ने कहा कि नाटक का एक नशा जैसा होता है। नाटक से मेरा बचपन का संबंध है। हमारी पूरी परंपराओं ने जीवन को और नाटकीयता को और रस को पूरा स्थान दिया गया जिसको छोड़ते-छोड़ते हमने अपने आपको बड़ा रुखा मनुष्य बना लिया। हमारी भाषा रुखी हमारी जीवन पछति रुखी हमारे सारे आचार व्यवहार उसके प्रति हमारा संदेहास्पद दृष्टिकोण और वो सब हम आधुनिकता के नाम पर कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि हम वो सब अब दुबारा अपनाएं। वहीं डॉ. रमाकांत पाण्डे जी ने कहा कि यह संगोष्ठी नाट्य शास्त्र का विश्व कलाओं पर प्रभाव है। वस्तुतः उतनी ही व्यापक है जितनी व्यापकता नाट्यशास्त्र की है नाट्य भारतीय दृष्टिकोण मे तमाशा नहीं है जिसे जो चाहे जहां कर ले। वास्तव में ये हमारे जीवन में सतत चलने वाली प्रक्रिया है। नाट्यशास्त्र से संपूर्ण कलाएं प्रसूत होती हैं और पूरे विश्व में उनका विस्तार होता है।

इस अवसर पर द्वितीय सत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान-मनीषियों, नाट्य विशेषज्ञ डाॅ. नवीन कुमार प्रधान, डाॅ. धर्मेन्द्र सिंह देव, प्रो. सिद्धार्थ सिंह, डाॅ. नागेन्द्र शर्मा ने अपने-अपने विचार साझा किए। संगोष्ठी का समन्वय डॉ. संजय दुबे ने किया। मंच का संचालन श्री विनय उपाध्याय ने किया।

कल डाॅ. शुभा वर्मा, स्मिता नायर, श्राबोनी साहा, कुलदीप कुमार, डाॅ. दीपक कुमार लक्ष्य अरोड़ा, डाॅ. देवेन्द्र पाठक अपने-अपने विचार साझा करेंगे। साथ ही सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के क्रम में 2 सितम्बर शाम 5 बजे संस्कृत नाटक ‘भग्वद्ज्जुकियम’ का मंचन होगा।  

Created On :   1 Sept 2022 9:04 PM IST

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