जंगल में लगी आग के धुएं ने किया सूर्यास्त, चंद पल में बुझ गया परिवार का इकलौता चिराग

The smoke of the fire in the forest sunset, the only lamp of the family extinguished in a few moments
जंगल में लगी आग के धुएं ने किया सूर्यास्त, चंद पल में बुझ गया परिवार का इकलौता चिराग
जंगल में लगी आग के धुएं ने किया सूर्यास्त, चंद पल में बुझ गया परिवार का इकलौता चिराग



डिजिटल डेस्क बालाघाट। इकलौते बेटे को खोने के बाद माता-पिता सदमे में हैं। दोस्त बनकर हर इच्छाओं को पूरा करने वाले भाई को खोने वाली बहन की रो-रोकर आंखें सुर्ख हैं। जिस पत्नी से सात जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वो बदहवास है। डेढ़ साल की मासूम अब पिता की राह देख रही है। ये दास्तां है वारासिवनी के ग्राम लिंगमारा निवासी फॉरेस्ट गार्ड सूर्यप्रकाश ऐड़े के परिवार की। सूर्यप्रकाश, जो फायर फाइटर की तरह अपना फर्ज निभाते हुए बीमार हुए और चंद मिनटों में भरे-पूरे परिवार को छोड़कर चले गए। राज्यमंत्री रामकिशोर कावरे ने सूर्यप्रकाश के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उत्तर वन परिक्षेत्र के सायल बीट के मंडई जंगल में करीब चार दिन से लगी आग बुझाते-बुझाते ऐड़े परिवार का इकलौता चिराग बुझ गया। सायल बीट में तैनात 30 वर्षीय सूर्यप्रकाश ऐड़े का आग बुझाने के दौरान स्वास्थ्य बिगडऩे से रविवार देर रात निधन हो गया। जानकारी के अनुसार, वारासिवनी तहसील क्षेत्र के ग्राम लिंगमारा निवासी सूर्यप्रकाश की मृत्यु फेफड़ों में अधिक मात्रा में धुआं चले जाने से हुई है। जिला अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके लंग्स में इंफेक्शन होना बताया जा रहा है। मृतक के परिवार ने सरकार से मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति देने की मांग की है। मृतक के परिवार में पत्नी पूजा (27), डेढ़ साल की मासूम बेटी अकीरा, बहन दीपाली (24), दादा टेक्कन ऐड़े (85), दादी कासन ऐड़े (83), माता गीता ऐड़े (50) और पिता लिखनलाल ऐड़े (51) हैं।
निभानी थीं बोरिंग, घर की मरम्मत जैसी कई जिम्मेदारी, मगर...
मृतक सूर्यप्रकाश अपने परिवार में एक अकेला सहारा था। उसके ऊपर माता-पिता के साथ बहन की लिखाई-पढ़ाई के साथ शादी, घर की मरम्मत जैसी कई जिम्मेदारियां थीं। सदमे को सहकर परिवार को ढांढस दे रही बहन दीपाली ने बताया कि भैया ने शुरू से परिवार को सबसे ऊपर रखा। कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। घर में लंबे समय से पानी की किल्लत है। दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है। भैया इस गर्मी में बोरिंग का काम करवाने वाले थे। साथ ही मकान की मरम्मत कराने की बात भी कहते थे, मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
दर्द: सुबह घर आए और रातभर में छूट गया साथ
दीपाली ने बताया, भैया वन विभाग में 2013 में बतौर फॉरेस्ट गार्ड भर्ती हुए थे। हमेशा की तरह इस बार भी होली पर घर आए थे। तब हल्की सुर्दी-जुकाम था। दवा लेने पर आराम मिल गया। होली मनाकर ड्यूटी पर लौट भी गए। कुछ दिन पहले मंडई के जंगल में आग लग गई थी। आग पर काबू पाने के लिए भैया ड्यूटी पर रहते थे। 4-5 दिन तक आग बुझाते-बुझाते उन्हें खांसी हो गई। दिनों-दिन स्थिति बिगड़ती चली गई। खांसी बड़ा रूप ले चुकी थी। तकलीफ असहनीय हो गई। आखिरकार 11 अप्रैल को भैया सुबह लिंगमारा आ गए। दोपहर तक खांसी नहीं रुकी तो मैं अकेले भैया को लेकर वारासिवनी स्थित अस्पताल पहुंची। वहां डॉक्टरों ने रात 11 बजे बालाघाट जिला अस्पताल रेफर कर दिया। यहां डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि भैया के फेफड़ों में धुआं चला गया है। ये धुआं जंगल की आग का था। ऑक्सीजन लेवल 36 था। लंग्स में इंफेक्शन फैल चुका था। इलाज के दौरान देर रात भैया जिंदगी से हार गए।
मांग: पत्नी को मिले सरकारी नौकरी
पीडि़त परिवार ने कहा कि उनके परिवार का इकलौता चिराग सरकार की नौकरी करने के दौरान बुझा है। घर की हर जरूरतें सूर्यप्रकाश ही पूरी करते थे। उनके जाने के बाद परिवार के सामने भविष्य की चिंता सताने लगी है। ऐसे में मृतक की पत्नी पूजा को अनुकंपा नियुक्ति देने के साथ मुआवजा देने की मांग की है।
इनका कहना है
परिक्षेत्र अधिकारी द्वारा मिलने वाले विस्तृत जांच प्रतिवेदन के आधार पर जिन कारणों से मृत्यु हुई है, उसकी जानकारी भोपाल कार्यालय में देकर पीडि़त परिवार को यथासंभव मदद कराई जाएगी। विभागीय प्रावधानों के अनुसार जो भी लाभ है, वो परिवार को दिया जाएगा।
नरेंद्र कुमार सनोडिया, मुख्य वन संरक्षक अधिकारी, बालाघाट

मृतक कोरोना संक्रमित नहीं था। इलाज करने वाले डॉक्टरों ने धुएं के कारण लंग्स में इंफेक्शन होना बताया है। सुबह शव को परिजनों को सुपुर्द कर दिया गया था।
डॉ. मनोज पांडेय, जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी

Created On :   12 April 2021 10:07 PM IST

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