मत्स्य विभाग ने जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उठाए कई ठोस कदमभारत में मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत और उत्तरदायी विकास!

मत्स्य विभाग ने जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उठाए कई ठोस कदमभारत में मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत और उत्तरदायी विकास!
मत्स्य विभाग ने जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उठाए कई ठोस कदमभारत में मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत और उत्तरदायी विकास!

The Department of Fisheries has taken several concrete steps to protect the aquatic ecosystem Sustainable and responsible development of the fisheries sector in India! | मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय मत्स्य विभाग ने जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए उठाए कई ठोस कदम भारत में मत्स्य पालन क्षेत्र का सतत और उत्तरदायी विकास| विश्व पर्यावरण दिवस (डब्लूईडी) पर्यावरण के मुद्दों पर जागरुकता पैदा करने के लिए दुनियाभर में मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है। पर्यावरण में मानवीय दखल पर आयोजित स्टॉकहोम सम्मलेन के दौरान इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1972 में की गई थी। हमारा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र विभिन्न प्रकार के ताजा पानी के निवास स्थान तैयार करता है, जिसमें महासागर और समुद्र पृथ्वी के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से को कवर करते हैं। हाल के दिनों में जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता और संरक्षण ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सबका ध्यान खींचा है।

यह मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को भी सहयोग करता है। हालांकि, आज के समय में ये निवास स्थान (आवास) कई वजहों से लगातार भारी खतरों का सामना कर रहे हैं। दुनिया के प्रख्यात वैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने कहा है कि इन निवास स्थानों में छोड़े गए हमारे लाखों टन प्लास्टिक कचरे से समुद्री पक्षियों, कछुओं, केकड़ों और अन्य प्रजातियों सहित जीवों को नुकसान हो रहा है। इन निवास स्थानों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए, यह जरूरी है कि जिम्मेदाराना कार्रवाई हो और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने और मौजूदा संसाधनों के जरिए पृथ्वी को पुरानी स्थिति में वापस लाने के लिए देशों के बीच अधिक जागरूकता पैदा की जाए। हालांकि, ऐसे समय में यह भी समझना चाहिए कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और उसे बहाल करना एक बड़ा काम है और इसे दुनियाभर के देशों के द्वारा सामूहिक रूप से प्राथमिकता के आधार पर तेज गति से करने की आवश्यकता है। मत्स्य पालन विभाग, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार हमारे राष्ट्रीय संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करते हुए जलीय जीवों के आवास स्थलों की रक्षा करने की तात्कालिकता को स्वीकार करता है। इसके मद्देनजर, विभाग की ओर से चलाई जा रही योजनाओं और कार्यक्रमों का उद्देश्य पर्यावरण की स्थिरता को मुख्य रूप से ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन और जलीय कृषि क्षेत्र का विकास करना है।

2015 में शुरू की गई विभाग की प्रमुख योजना ‘नीली क्रांति’ का उद्देश्य देश और मछुआरों व मछली किसानों की आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ भोजन और पोषण सुरक्षा में योगदान करना है। इसके लिए जैव-सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन विकास के लिए जल संसाधनों के सतत और बेहतर इस्तेमाल पर ध्यान दिया जा रहा है। नीली क्रांति के तहत, पर्यावरण के अनुकूल जलीय कृषि को बढ़ावा देने के साथ-साथ मत्स्य पालन और मछुआरों के कल्याण के सतत और समग्र विकास के लिए विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों और कई संगठनों को केंद्रीय सहायता के रूप में कुल 2573 करोड़ रुपये जारी किए गए। नीली क्रांति योजना के हिस्से के रूप में, हमारे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए विभिन्न पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को अपनाया गया। रीसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम्स (आरएएस) शुरू किया गया, जो पर्यावरण के अनुकूल, जल की कम बर्बादी और शून्य पर्यावरणीय प्रभाव वाली एक अत्यधिक उत्पादक गहन कृषि प्रणाली है।

इसी तरह, समुद्र में मछली पालन के लिए समुद्री पिंजरों को बढ़ावा दिया गया और सहयोग किया गया, समुद्री शैवाल की खेती को भी आगे बढ़ाया गया, कई अन्य पहलों के अलावा प्रजनन के मौसम के दौरान फिश लीन/प्रतिबंध अवधि लागू की गई। नीली क्रांति योजना के तहत जल पंपों, एरेटर और मत्स्य पालन से संबंधित अन्य गतिविधियों को संचालित करने के लिए ऊर्जा उत्पादन को सौर पैनल इकाइयों को सहायता प्रदान की गई। मत्स्य पालन के लिए सौर ऊर्जा वाली प्रणाली की खरीद और लगाने के लिए लाभार्थियों को एकमुश्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जा रही। ये और अन्य पहलों ने भूमि के साथ-साथ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। नीली क्रांति योजना के कार्यान्वयन के माध्यम से मछली पालन क्षेत्र में उपलब्धियों को और आगे बढ़ाने और इस क्षेत्र को एक स्थायी और जिम्मेदार तरीके से विकसित करने के लिए भारत सरकार ने मई 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’ (पीएमएमएसवाई) के रूप में एक प्रमुख योजना शुरू की, जिसमें आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत अब तक का सबसे अधिक अनुमानित निवेश 20,050 करोड़ रुपये किया गया।

Created On :   7 Jun 2021 2:01 PM IST

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