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नहीं चल सकता नाबालिग के खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। समाज का जनाक्रोश किसी भी नाबालिग के खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। नाबालिग जघन्य अपराध में आरोपी है और उसके खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा चलाने से जनाक्रोश शांत होगा की धारणा से कुछ नहीं होगा। इससे नाबालिग में सुधार की बजाय बार-बार अपराध करने की प्रवृत्ति पैदा होगी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बाल न्यायालय द्वारा एक नाबालिग के खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा चलाने के आदेश को रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया है।
न्यायमूर्ति डीएस नायडू ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि सजा के बाद नाबालिग को जेल में रखने से वह जेल में सिर्फ एक संख्या बन कर रह जाएगा। किंतु यदि नाबालिग को सुधारगृह में रखा गया तो उसमें बदलाव आएगा और भविष्य में वह समाज का महत्वपूर्ण घटक भी साबित हो सकता है। बाल न्यायालय ने साल 2016 में नागापाडा इलाके में एक तीन वर्षीय बच्ची का फिरौती के लिए अपहरण कर उसकी हत्या के मामले में आरोपी एक 17 वर्षीय लड़के के खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा चलाने का निर्देश दिया था। बाल न्यायालय ने आरोपी के इकबालिया बयान के आधार पर यह फैसला सुनाया था। जिसमे आरोपी ने कबूल किया था कि उसके हाथ से बच्ची की हत्या हुई है लेकिन यह कृत्य उससे दुर्घटनावश हुआ।
बाल न्यायालय के इस फैसले पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के एक आपराधिक कृत्य से उसका हमेशा के लिए नैतिक पतन नहीं हो जाता है। न्यायमूर्ति ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि बाल न्यायालय ने घटना से जुड़ी रिपोर्ट के आधार पर अपना फैसला सुनाया है। जिसमें आरोपी के कृत्य के चलते समाज में जनाक्रोश होने का जिक्र किया गया था। लेकिन समाज का जनाक्रोश नाबालिग के खिलाफ वयस्कों जैसा मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायमूर्ति ने कहा कि बाल न्यायालय ने जैसे इस मामले के दूसरे 16 वर्षीय आरोपी के खिलाफ बाल न्याय कानून के तहत जांच का निर्देश दिया है ऐसे ही इस 17 वर्षीय आरोपी की भी जांच कराई जाए और उनके खिलाफ बाल न्याय कानून के तहत मुकदमा चलाया जाए। इस कानून के तहत आरोपी को तीन साल के कारावास की सजा सुनाने का प्रावधान है।
Created On :   20 July 2019 5:21 PM IST