विश्व लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर विशेष

Special on World Endangered Species Day
विश्व लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर विशेष
सिवनी विश्व लुप्तप्राय प्रजाति दिवस पर विशेष

डिजिटल डेस्क, सिवनी। १७ मई 22- जिले के केवलारी तहसील के उगली क्षेत्र में पिपरिया गांव में तालाब के किनारे बाघ के दो शावक नजर आए। देखते ही देखते लोगों की भीड़ लग गई। इसमें से कोई पत्थर मार रहा था तो कोई लाठी डंडा लेकर आया था। गनीमत रही कि मौके पर पुलिस और वन अमला पहुंच गया और शावकों को बचा लिया गया। हालांकि इस पत्थरबाजी में शावक घायल हो गए।
22 नवबंर 21- उगली के ही घोड़लीटोला पांडीवाड़ा में एक तेदुंए को जलाकर मार दिया गया। इस क्षेत्र में बीते दिनों में इंसानों पर वन्यप्राणियों के हमले बढ़े थे। जिसके बाद से लोग गुस्से में थे।
छह मई 22- छपारा वन अमले ने पेंगोलिन के चार शिकारियों को धर दबोचा। इनसे एक पेंगोलिन भी बरामद किया गया। यह कोई इकलौता मामला नहीं है बल्कि इसके तीन मई को कुरई के खवासा बफर एरिए में तीन लोगों को पेंगोलिन के ढाई किलो शल्क स्केल अवशेषों के साथ धर दबोचा गया था।
ये हाल के ही कुछ उदाहरण हैं जिसमें जिले में लुप्तप्राय प्रजाति के जीवों को नुकसान पहुंचाया गया।  यह प्रदेश के लिए भले सम्मान की बात हो सकती है कि मध्यप्रदेश वुल्फ स्टेट, टाइगर स्टेट और पैंगोलिन स्टेट के रूप में अपनी पहचान बना चुका है लेकिन इन लुप्तप्राय जीवों की रक्षा के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिले में भी इन वन्यजीवों की उपलब्धता है। इक्का-दुक्का कार्रवाई करने के अलावा इन जीवों के सरंक्षण के लिए पर्याप्त कार्य नहीं किए जा रहे हैं जिससे ये लुप्त प्राय जीव खात्मे की कगार पर हैं।
क्यों मनाया जाता है विश्व लुप्तप्राय प्रजाति दिवस
मई माह के तीसरे शुक्रवार को हर साल विश्व लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाता है। इंटरनेशनल यूनियन फ ॉर कंजर्वेशन ऑफ  नेचर रेड लिस्ट खतरे वाली प्रजातियों के आंकड़ों के अनुसार जंगली जीवों और वनस्पतियों की 8400 से अधिक प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। जबकि 30 हजार से अधिक लुप्तप्राय या खतरे में है। इन अनुमानों के आधार पर यह सुझाव दिया जाता है कि दस लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बना हुआ है। यूनाइटेड स्टेट्स ने 2006 में राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस अधिनियम बनाया। इसके बाद से ही हर साल मई के तीसरे शुक्रवार को राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाने लगा।
क्या है खतरा
जिले में टाइगर, तेदुंआ, गिद्ध, रेडसेंड बोआ जिसे आम बोलचाल की भाषा में दो मुंहा सांप कहा जाता है आदि मिलते हैं। जिले में अक्सर शिकारियों के पकड़े जाने के मामले सामने आते रहते हैं। शिकारी जिले के इन विलुप्त जीवों के लिए बड़ा खतरा हैं। इसके अलावा अंधाधुंध तरीके से कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों प्रयोग भी गिद्ध और वुल्फ आदि के लिए बड़ा खतरा है। सड़क हादसों में भी काफी जीवों की मौत होती है।
क्या है शिकार की वजह
जिले में टाइगर और पेंगुलिन के शिकार के मामले अक्सर सामने आती हैं। पेंगुलिन का कथित यौन वर्धक  दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होता है। कुछ ऐसा ही बाघ के साथ है। जिसका तंत्र-मंत्र आदि में प्रयोग होता है। दोमुंहा सांपों को धनवर्षा, गंभीर रोगों के उपचार आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।
जिले में पाई जाने वाली विलुप्त प्रजातियां
जिले में लगभग 75 बाघ हैं। इसके अलावा लगभग इतने ही तेंदुए हैं। वुल्फ भी जिले के पेंच नेशनल पार्क और अन्य स्थानों पर काफी संख्या में पाए जाते हैं। ये अक्सर इंसानी बस्तियों के पास निवास करते हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक आदि के पानी के गड्ढों, मृत मवेशियों के शरीर आदि के कारण इन पर खतरा मंडरा रहा है। पहले बड़ी संख्या में नजर आने वाले गिद्ध भी इसी कारण से विलुप्त की श्रेणी में आ गए हैं। अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण पेंगुलिन विलुप्त होते जा रहे हैं।
क्या हो सकते हैं उपाय
विलुप्त प्रजाति के जीवों के  संरक्षण के लिए जागरूकता सबसे बड़ा उपाय है। नागरिकों को वन्य जीवों का मह्त्व समझाते हुए पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जरूरत और अंधविश्वास उन्मूलन की जरूरत है। इसके अलावा शिकारियों पर शिकंजे के लिए सतत् निगरानी की जानी चाहिए। किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
इनका कहना है,
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बच्चों और बड़ों के बीच समय-समय पर जागरूकता के कार्यक्रम किए जाते हैं। इसके साथ ही नियमित गश्ती की जाती है। शिकारियों को पकडऩे के लिए भी लगातार प्रयास किए जाते हैं। सूचना देने वालों के लिए पुरस्कार जैसी व्यवस्थाएं भी हैं।

Created On :   20 May 2022 5:56 PM IST

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