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8 माह में 756 बच्चों की जान बचाई, मृत्यु दर में 30% कमी
डिजिटल डेस्क,छतरपुर। जिला अस्पताल में न केवल छतरपुर जिले के बल्कि टीकमगढ़ और उप्र के महोबा व हमीरपुर जिले के हजारों मरीज इलाज कराने आते हैं। सबसे अधिक जिला अस्पताल में बच्चे और महिलाएं इलाज के लिए आते हैं। यहां पदस्थ डॉक्टर भरसक प्रयास करते हैं कि बेहतर इलाज हो। इसके बाद भी पर्याप्त संसाधन न होने से कई बार मरीज मौत के मुंह में चले जाते हैं। सबसे खराब स्थिति बच्चों को लेकर बनती थी। 8 माह पहले तक जिला अस्पताल में बाल गहन चिकित्सा इकाई (पीआईसीयू) नहीं थी। इसके चलते बच्चों की मौत का प्रतिशत काफी ज्यादा था। राहत की बात यह है कि अब यहां पीआईसीयू शुरू हो जाने से पिछले 8 माह में 756 बच्चों की जिंदगी बचाई जा चुकी है। ये वे बच्चे हैं जो या तो रैफर किए जाते थे, अथवा उनकी जान बचाना बेहद मुश्किल होता था।
बच्चों के रैफर होने में भी 50 प्रतिशत कमी आई
जिला अस्पताल में 55 लाख की लागत से पीआईसीयू बनने से बच्चों का न सिर्फ बेहतर इलाज हो रहा है, बल्कि शिशु मृत्यु दर में भी कमी आई है। अच्छी बात यह है कि इतने कम समय में 756 बच्चों की जान बचाई जा चुकी है। यहां 28 दिन के बच्चे से लेकर 14 साल के बच्चों का इलाज किया जा रहा है। पीआईसीयू आधुनिक सुविधाओं और उपकरणों से लैस है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पीआईसीयू बच्चों के लिए संजीवनी बनकर उभरा है। यदि आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो वर्ष 2021 में 190 बच्चे बाहर रैफर किए गए। वहीं 84 बच्चों को जान से हाथ धोना पड़ा। इस वर्ष 61 बच्चों की मौत हुई। मतलब साफ है कि बाल मृत्यु दर में कमी आ रही है। हालांकि इसके बनने के बाद बच्चों की संख्या में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। यहां अभी सर्जरी की व्यवस्था नहीं है। बाकी सभी बीमारी का इलाज किया जा रहा है।
एसएनसीयू और पीआईसीयू में क्या है अंतर | जिला अस्पताल में एसएनसीयू पहले से थी। लेकिन पीआईसीयू 9 माह पहले ही शुरू हो सकी है। पीआईसीयू के प्रभारी डॉ. मुकेश प्रजापति बताते हैं कि एसएनसीयू में केवल नवजात शिशुओं को ही इलाज मिल सकता है। जबकि पीआईसीयू में 28 दिन से लेकर 14 साल तक के बच्चों को विभिन्न मशीनों के माध्यम से इलाज किया जाता है। इसमें अविकसित बच्चे, शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों का इलाज किया जाता है।
आधुनिक तकनीकी से लैस है पीआईसीयू
पीआईसीयू में 4 वेंटीलेटर, 2 एचएफएनसी हैं। हाईफ्लो ऑक्सीजन किसी बच्चे को देना है तो यह मशीन काम करती है। 10 आधुनिक तकनीक से लैस पलंग हैं। ऑक्सीजन सप्लाई, एक्सरे मशीन, पलंग साइज, 2 एबीजी मशीन हैं, जो वेंटीलेटर पर पड़े हुए बच्चों को मददगार साबित हो रही है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे अस्पताल से जब रैफर किए जाते थे तो अधिकतर बच्चों की मृत्यु हो जाती थी, लेकिन अस्पताल में पीआईसीयू बनने से बच्चों को तत्काल इलाज मिल जाता है। पीआईसीयू के बनने से बाल मृत्यु दर में भी 30 प्रतिशत की गिरावट आई है और रैफर करने की संख्या आधी हो गई है। बच्चे की सुरक्षा के लिए हर प्रकार के इंतजाम किए गए हैं। बच्चों की परवरिश के लिए नर्सिंग स्टेशन बच्चों की बेहतर परवरिश हो सके, इसके लिए नर्सिंग स्टेशन भी बनाया गया है। जहां से वार्ड में बच्चों पर निगरानी रखी जाती है। वार्ड में 28 लोगों का स्टाफ है। प्रभारी डॉक्टर मुकेश प्रजापति ने बताया कि निमोनिया, स्नैक बाइट, जहरीले कीड़े के काटने, दिमागी बुखार जैसी बीमारियों का इलाज आसानी से किया जा रहा है। हार्ट से जुड़ी हुई बीमारी का इलाज भी होता है। सिविल सर्जन डॉ. जीएल अहिरवार का कहना है कि पीआईसीयू बनने से छतरपुर के अलावा यूपी के सीमावर्ती गांवों के बच्चों को भी सुविधा मिलने लगी है।
स्टाफ द्वारा सेवाभाव से रखा जाता है बच्चों का ख्याल
पीआईसीयू वार्ड में अगर स्टाफ की बात करें तो 8 डॉक्टर सहित 26 लोगों का स्टाफ है, जो वार्ड में बच्चों के इलाज के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। इस वार्ड में एक इंचार्ज सहित 9 नर्स, 3 वार्ड बॉय, 3 वार्ड आया और 3 सफाईकर्मी हैं।
Created On :   19 Sept 2022 3:37 PM IST