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‘‘नक्सलवाद की आग में शहीद वीरों को नमन‘‘ "विशेष लेख" 21 अक्टूबर पुलिस स्मृति दिवस पर विशेष
डिजिटल डेस्क, बालाघाट। नक्सलवाद पर नकेल कसने पुलिस के अब तक 38 शूरवीर दे चुके प्राणों की आहुति। आदिवासियो की सुरक्षा से लेकर शिक्षा और रोजगार तक चलाये जा रहे अनेक कार्यक्रम। दरअसल नक्सलवाद कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों के आंदोलन के साथ शुरू हुआ है। विडम्बना है कि इस समय भारत वर्ष सीमापार तथा अन्दर भी विध्वंसक विचारधारा से जूझ रहा है। सीमापार के आंतकवाद को कुचलने दूसरी वर्दीधारी फौजे लगी है, तो भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए पुलिस अपने प्राणों की आहुति देने पीछे नहीं है। पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों का बड़ा समूह रात-दिन एक कर नक्सलवाद पर नकेल कसने संकल्पित है, और अब तक राष्ट्र धर्म की इस यज्ञ में पुलिस के 38 शूरवीर कर्तव्य पथ पर शहीद हो चुके हैं। शहीदों के खून का एक-एक कतरा पुलिस कर्मियों की ताकत को दोगुना कर रहा है और यही वजह है कि म0प्र0 के सर्वाधिक प्रभावित बालाघाट तथा मंडला जिले में नक्सलवादी पलायन करने को मजबूर हैं। नक्सलियों के खिलाफ लगातार चल रही पुलिस की मुहिम ने उन्हें बैचेन कर रखा है। घबरा कर बडी संख्या में नक्सली प्रदेश को छोडकर छत्तीसगढ़ तथा महाराष्ट्र जा चुके हैं, जबकि एक समूह बौखलाकर अभी अपने दलमों का विस्तार करने के लिये समाज में सेंधमारी कर रहा है । नक्सलियों की हरएक गतिविधियों पर पुलिस खुफिया तंत्र नजर गड़ाये हुये है। दहशत के कारण अपेक्षित जन सहयोग न मिल पाना भी इस दिशा में दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि पुंलिस ने इस बिन्दु पर भी फोकस करते हुये आदिवासी ग्रामीणों में विश्वास पैदा किया हुआ है, और उसी का नतीजा है कि बारह लाख रूपये का ईनामी नक्सली पुलिस की गिरफ्त में आया हुआ है। इस कारण मनाया जाता है पुलिस स्मृति दिवस 60 वर्ष पूर्व 21 अक्टूबर,1959 को लद्दाख में भारत-तिब्बत सीमा की सुरक्षा के लिये हॉटस्प्रिंग में तैनात सीआरपीएफ की तीसरी बटालियन के 21 जवान चीनी फौज के हाथों गस्ती के दौरान शहीद हो गये थे । भारतीय जवानों ने मातृभूमि की रक्षा के लिये जमकर संघर्ष किया लेकिन 10 जवानों को अपने प्राण गवाने पडे, तभी से 21 अक्टूबर से पूरे देश में पुलिस के शूरवीरों को याद करते हुये उन्हें पुलिस स्मृति दिवस के रूप में श्रृद्धांजलि दी जाती है । भारत शासन ने इसी क्रम में 21 अक्टूबर, 2018 को दिल्ली में निर्मित राष्ट्रीय पुलिस स्मारक को राष्ट्र के लिये समर्पित किया था। ये है बालाघाट की शौर्यगाथा :- 16 जुलाई 1991 को बालाघाट जिले में पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों की शौर्यगाथा की पहली ईबारत लिखी गई, जिसमें थाना लांजी अंतर्गत सीतापाला घाघरा के जंगल में 10वी वाहिनी सागर के प्लाटून कमांडर श्री मोहन लाल जखमोला, सेक्शन कमांडर श्री प्रेमसिंह रावत, आरक्षक श्री तारकेश्वर पाण्डे, आरक्षक श्री अमलानंद कोटनाला, आरक्षक श्री जगपाल सिंह, आरक्षक श्री मोतीलाल, आरक्षक श्री रामचरण, आरक्षक श्री रविन्द्रनाथ द्विवेदी, तथा आरक्षक श्रीकृष्ण शहीद हुये थे। 30 मई 1994 को थाना रूपझर के जंगल में मुठभेड के दौरान आरक्षक श्री बंजारीलाल मार्को को अपनी जान देनी पड़ी। 30 जुलाई 1994 थाना रूपझर अंतर्गत एस.ए.एफ. रीवा के सेक्शन कमांडर करण सिंह, बंशबहादुर प्रसाद, प्रधान आरक्षक जागेश्वर प्रसाद पाण्डे, प्रधान आरक्षक श्री कन्हैया लाल, आरक्षक श्री गंगाप्रसाद मिश्रा, आरक्षक देवेन्द्र कुमार, आरक्षक श्री बैजनाथ सिंह परिहार, आरक्षक श्री रमेश कुमार पाण्डे, आरक्षक श्री राजेन्द्र प्रसाद द्विवेदी, आरक्षक श्री लल्लूलाल कोल, आरक्षक श्री शिवकुमार परते, तथा जिला पुलिस बल बालाघाट के प्रधान आरक्षक श्री बिहारी लाल श्रीवास, प्रधान आरक्षक श्री हनुमंत सिंह, आरक्षक फूलसिंह कुमरे, आरक्षक श्री अर्जून सिंह यादव, श्री कृष्णाबाबू ने अपने प्राणों को न्यौछावर किया था। 27 मई 1998 को थाना लांजी की चौकी डाबरी में पदस्थ प्रधान आरक्षक श्री मुन्नालाल बिसेन की जंगल में निर्मतापूर्वक हत्या कर दी गई थी। दिनांक 06 जुलाई 1998 को बालाघाट जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री रूपनारायण बंसल तथा सउनि दगलसिंह ठाकुर मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गये थे। 08 अक्टूबर 1998 को थाना बासागुड़ा अंतर्गत बारूदी सुरंग विस्फोट में आरक्षक श्री जगदीश दवंडे एवं आरक्षक श्री जीतसिंह तेकाम आरक्षक छन्नूलाल बिसेन की शहादत हुई थी। 03 दिसम्बर 1998 को थाना परसवाड़ा अंतर्गत प्रधान आरक्षक श्री सेदनलाल पटले वीरगति को प्राप्त हुये। दिनांक 21 अप्रैल 2000 को थाना लामता अंर्तगत थाना प्रभारी रक्षित शुक्ला, आरक्षक कोमल प्रसाद चौधरी को नक्सलियो की घात का शिकार होना पड़ा।
Created On :   20 Oct 2020 2:22 PM IST