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भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं हिवरा चोंडाला की रेणुका माता
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डिजिटल डेस्क, मुफीद पठान, पैठण । तहसील की हिवरा चोंडाला नामक ऊंची पहाड़ी पर स्थित रेणुका माता का प्राचीन हेमांडपंथी मंदिर है। बताया जाता है कि, यह मंदिर संत ज्ञानेश्वर महाराज के समय में निर्माण किया गया है। चोंडाला पर्वत पर विराजमान देवी, इसलिए यहां रेणुका माता को चोंडाला देवी के नाम से भी पुकारा जाता है। चोंडाला देवी को माहूरगढ़ के उपपीठ की मान्यता भी प्राप्त है। माना जाता है कि, यहां जो भी भक्त माता से जो भी मनोकामना करता है, वह पूर्ण होती है। इसलिए यहां रेणुका माता मनोकामना पूर्ण करनेवाली देवी के रूप में भी विख्यात हैं।
शिलाओं की तटबंदी
मंदिर के चुहंओर पत्थर के भव्य शिलाओं की तटबंदी है। मुख्य प्रवेश द्वार सहित दो उपप्रवेश द्वार हैं। मंदिर के भीतर पत्थर की शिला से बनाया 20 खंभों का सभामंडप है। विशेषकर हेमांडपंथी मंदिर पर कलश नहीं है। सभामंडप की लंबाई 102 फीट है। वहीं, मंदिर का मुख्य हिस्सा चार स्तंभों पर खड़ा है। करीब 30 फीट ऊंची शिला से निर्माण किया गया है। पत्थर की तटबंदी की है। मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही 50 फीट की दीप माला श्रद्धालुओं का लक्ष्य केंद्रित करती है।
गांव में नहीं होती शादियां
चोंडाला गांव में शादियों का आयोजन नहीं होता है। गांव में हनुमान मंदिर नहीं है। इस तरह का एकमात्र गांव चोंडाला है। रेणुकामाता कुमारी होने के कारण गांव की शादियां मंदिर से करीब 2 किमी दूर होती हैं। समूचे गांव और परिसर में दो-मंजिला इमारत नहीं है। इसकी एकमात्र वजह देवी के कदमों के नीचे गांव होने की बात बताई जाती है।
गांव में पलंग का इस्तेमाल नहीं होता
गांव में किसी के भी घर में पलंग, दीवान, बाज का इस्तेमाल नहीं होता, आराम करने के लिए हर घर में चबूतरों का निर्माण किया गया है। यहां तक की गांव की महिला प्रसूत होने के बाद भी पलंग का इस्तेमाल नहीं होता।
भव्य शिलाओं से घिरा है समूचा गांव
चोंडाला गांव शिलाओं से घिरा है। मान्यता है कि एक राक्षस ने देवी से विवाह करने की जिद्द की थी। राक्षस बारातियों के साथ विवाह करने पहुंचा। विवाह के लिए भव्यपंडाल डाला गया, जो आज ‘विहामांडवा’ नाम से जाना जाता है, अपितु देवी को राक्षस संग विवाह मान्य नहीं था। देवी ने राक्षस राजा के समक्ष एक प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव के तहत चोंडाला के बगल से गोदावरी गंगा बहती है। गंगा से सूरज डूबने से पहले राक्षस राजा बरातियों सहित गंगा से पानी ले आने की शर्त रखी, जिसके बाद राक्षस ने हिरडपुरी के पास मौजूद गोदावरी गंगा रोककर चोंडाला की और मोड़ दी। मगर तब तक सूरज डूब चुका था और शर्त के मुताबिक बारातियों को राक्षस ने अवधि पूर्ण होने से पहले पानी नहीं ला सका और बाराती शिला में बदल गए। आज भी रेणुका माता मंदिर परिसर के 10 किमी के बीच 8 लंबी शिलाएं विवाह में आए बाराती माने जाते हैं। यह शिलाएं आज भी देखने को मिलती है
नवरात्र में विविध धार्मिक कार्यक्रम
मनोकामना पूर्ण करने वाली रेणुका माता के दर्शन के लिए दूरदराज से हजारों श्रद्धालु आते हैं। नवरात्रोत्सव में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है। सप्तमी पर मंदिर परिसर में भव्य शोभा यात्रा निकाली जाती है। गांववासी अपना मनमुटाव व मतभेद दूर कर नवरात्रोत्सव धूमधाम से मनाते हैं। नवरात्रि में माता की वििधविधान से पूजा-अर्चाना की जाती है। विहामांडवा स्थित देशमाने परिवार परंपरा अनुसार टीपुर ले जाने की परंपरा चली आ रही है। साथ ही, मंदिर के पुजारी कमलाकर वानोले परिवार है।
Created On :   29 Sept 2022 9:14 PM IST