'होरी हो ब्रजराज' की लय-ताल पर थिरक उठा भोपाल

Rabindranath Tagore University: Bhopal danced to the rhythm of Hori Ho Brajraj
'होरी हो ब्रजराज' की लय-ताल पर थिरक उठा भोपाल
रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय 'होरी हो ब्रजराज' की लय-ताल पर थिरक उठा भोपाल
हाईलाइट
  • टैगोर विश्व कला संस्कृति केन्द्र ने दिया सद्भाव का पैगाम

डिजिटल डेस्क, भोपाल। आसमान से उतरती फागुनी शाम जब रंगों की पुरखुश सौगात समेट लाई तो मन का मौसम भी खिल उठा। रवीन्द्र भवन के खुले मंच पर 'होरी हो ब्रजराज' ने ऐसा ही समां बांधा। मुरली की तान उठी, ढोलक, मृदंग और ढप पर ताल छिड़ी, होरी के गीत गूँजे और नृत्य की अलमस्ती में हुरियारों के पाँव थिरके। रंगपंचमी की पूर्व संध्या लोकरंगों की गागर छलकी तो शहर के रसिकों का रेला भी उसकी आगोश में उमड़ आया।

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय और पुरू कथक अकादेमी की साझा पहल पर बीती शाम प्रेम, सद्भाव और अमन की आरज़ुओं का यह अनूठा पैगाम था। कथक नृत्यांगना क्षमा मालवीय के निर्देशन में पचास से भी ज़्यादा कलाकारों ने मिलकर 'होरी हो ब्रजराज' को अंजाम दिया। कवि-कथाकार संतोष चौबे की परिकल्पना से तैयार हुई लगभग डेढ़ घंटे की इस प्रस्तुति में ब्रज और मैनपुरी के तेरह पारम्परिक होली गीतों को शामिल किया गया। इन गीतों के साथ जुड़े प्रसंगों और संगीत-नृत्य के पहलुओं को कला समीक्षक और उद्घोषक विनय उपाध्याय ने बखूबी पेश किया। प्रकाश परिकल्पना का सुंदर संयोजन वरिष्ठ रंगकर्मी अनूप जोशी बंटी ने किया। संगीत समन्वय और गायन समूह में संतोष कौशिक, राजू राव, कैलाश यादव, उमा कोरवार, आनंद भट्टाचार्य, वीरेन्द्र कोरे आदि कलाकारों की भागीदारी रही। तकनीकी सहयोग आईसेक्ट स्टुडियो और आरएनटीयू स्टुडियो का रहा। प्रस्तुति से पहले टैगोर कला केन्द्र की पुरस्कृत सांस्कृतिक पत्रिका 'रंग संवाद' के विशेषांक का लोकार्पण हुआ। यह अंक कलाओं में परम्परा, प्रयोग और नवाचार पर केन्द्रित है। 

टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे, इलेक्ट्रॉनिकी की संपादक डा. विनीता चौबे, कुलसचिव डा. विजय सिंह, विश्वरंग की सहनिदेशक अदिति चतुर्वेदी वत्स तथा टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक विनय उपाध्याय ने इस मौके पर होली की शुभकामनाएँ दीं।

साहित्य और कलाओं के महोत्सव विश्वरंग के अन्तर्गत आयोजित श्रृंखलाबद्ध गतिविधियों में 'होरी हो ब्रजराज' एक अलहदा सांस्कृतिक प्रस्तुति के रूप में लोकप्रिय है। संगीत, नृत्य और ध्वनि-प्रकाश के अनोखे तालमेल से तैयार हुए भव्य प्रदर्शन की ख़ासियत उसका पारम्परिक स्वरूप है। वृन्दावन और गोकुल के गैल-गलियारों में कृष्ण-राधा तथा ग्वाल-बालों के संग खेली जा रही होली की मनोहारी छवियों के साथ ही यहाँ मिट्टी की सौंधी गंध से सराबोर लोक धुनों और संगीत का आनंद है। सदियों से ब्रज और मैनपुरी के इलाकों में आज भी ये होलियाँ गायी जाती हैं। इन होलियों में भारतीय जीवन और संस्कृति के आदर्श मूल्य हैं। भक्ति और प्रेम के रंग है।

परम्परा के होरी गीतों ने मन मोहा

इस दौरान होरी के पारंपरिक गीतों में “चलो सखी जमुना पे मची आज होरी...”, “यमुना तट श्याम खेलत होरी...”, “बरजोरी करें रंग डारी...”, “बहुत दिनन सों रूठे श्याम...”, “मैं तो तोही को ना छाडूंगी...” और “रंग में बोरो री...” ने उपस्थित दर्शकों का मन मोहा।

Created On :   13 March 2023 10:14 AM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story