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खाद्य-आपूर्ति मंत्री के आदेश को हाईकोर्ट ने किया रद्द , कहा -बार-बार आदेश नहीं बदला जा सकता
डिजिटल डेस्क, मुंबई। मंत्री को लगातार अपने आदेश की समीक्षा करने का अधिकार नहीं है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य के पूर्व खाद्य आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गिरीश बापट के एक आदेश को रद्द करते हुए यह मत व्यक्त किया है। न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि महाराष्ट्र शेड्यूल्ड कॉमिडिटी से जुड़ी नियमावली में मंत्री को लगातार अपने आदेश की समीक्षा करने का अधिकार नहीं दिया गया है। लिहाजा वह ऐसा नहीं कर सकता।
दरअसल, सतारा जिले के खातव तहसील में मुरलीधर भांडुले की राशन की दुकान से जुड़ी कथित गड़बड़ियों की शिकायत मिलने पर खाद्य आपूर्ति विभाग के उपायुक्त ने 16 अगस्त 2014 को उनकी दुकान का लाइसेंस रद्द कर दिया था। उपायुक्त के इस फैसले के खिलाफ भांडुले ने तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री बापट के पास पुनर्विचार आवेदन किया। जिस पर गौर करने के बाद मंत्री ने भांडुले के लाइसेंस रद्द करने के उपायुक्त के आदेश को 11 सितंबर 2014 को खारिज कर दिया। कुछ समय बाद इलाके के सरपंच ने फिर से भांडुले की दुकान में गडबड़ी को लेकर मंत्री के पास शिकायत की। तत्कालीन खाद्य आपूर्ति मंत्री ने इस शिकायत पर सुनवाई की और 5 मई 2015 को अपने पुराने आदेश यानी 11 सितंबर 2014 के निर्णय को वापस ले लिया और लाइसेंस रद्द करने के उपायुक्त के आदेश को बहाल कर दिया। भांडुले ने फिर मंत्री के पास आवेदन किया लेकिन इस बार मंत्री ने सुनवाई से इंकार कर दिया। लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने खंडपीठ के सामने दावा किया कि 5 मई 2015 को मंत्री ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर आदेश दिया है। क्योंकि नियमों के तहत मंत्री ने उपायुक्त के आदेश की समीक्षा करने के अधिकार का पहले ही इस्तेमाल कर लिया था। ऐसे में मंत्री की ओर से दिया गया आदेश नियमों के खिलाफ है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में साफ किया है कि न्यायिक व अर्ध न्यायिक प्राधिकरण अपने आदेश की लगातार समीक्षा नहीं कर सकते। जब तक की इसके लिए कानून में प्रावधान न हो। महाराष्ट्र शेड्यूल्ड कॉमिडिटी से जुड़ी नियमावली की धारा 24 में भी मंत्री को लगातार अपने आदेश की समीक्षा करने का अधिकार नहीं दिया गया है। चूंकि इस मामले में मंत्री ने एक बार अपने अधिकार का प्रयोग कर लिया था जिसके तहत उन्होंने खाद्य आपूर्ति विभाग के उपायुक्त के आदेश को खारिज कर दिया था। इसलिए उनके लिए फिर से अपने आदेश की समीक्षा करने का अधिकार मौजूद नहीं था। मंत्री ने बिना अधिकार के 5 मई 2015 को आदेश जारी किया है, इसलिए इसे रद्द किया जाता है और उनके पुराने आदेश को कायम रखा जाता है।
Created On :   20 July 2019 5:35 PM IST