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कुपोषित बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही एनआरसी
डिजिटल डेस्क,छतरपुर। बुंदेलखंड में कुपोषण बड़ी समस्या है। जागरुकता का अभाव और संसाधनों की कमी न केवल गर्भवती महिलाओं को कमजोर बनाती है बल्कि पैदा होने वाले बच्चे भी कुपोषण का शिकार होते हैं। यह समस्या न केवल मप्र के बुंदेलखंड में बल्कि यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में भी विकराल है। सीमावर्ती उप्र के जिलों से प्रसव के लिए महिलाएं जिला अस्पताल छतरपुर आती हैं। इनके बच्चे कुपोषित होते हैं। जिला अस्पताल में संचालित एनआरसी बुंदेलखंड के कुपोषित बच्चों के लिए वरदान साबित हो रही है। पिछले चार माह में 288 बच्चे कुपोषण से मुक्त हो चुके हैं।
चार माह में 288 बच्चों ने जीती जंग
जिला अस्पताल के एनआरसी में अप्रैल 22 से अगस्त 22 तक 288 बच्चों को भर्ती किया गया। इनमें से अधिकांश बच्चे कुपोषण की जंग जीत चुके हैं। जिन बच्चों ने कुपोषण को मात दी इनमें चितैया जिला महोबा निवासी देवकुंवर 11 माह के बेटा हिमांशु को जब भर्ती कराया गया था तो उसक वजन मात्र 5 किलो 900 ग्राम था। 14 दिन में ही वह स्वस्थ हो गया। इसी प्रकार कुर्रा निवासी मानकुंवर का एक साल का बेटा गौरव, सुनीता साहू की 3 साल की बेटी जान्हवी, निवरिया निवासी आरती का 9 माह का बेटा विकास कुपोषण को मात दे चुका है। डॉ. दीपेश खुराना ने बताया कि 14 दिन के बाद बच्चों की लगातारी काउंसिलिंग की जाती है। उन्हें 120 दिन आव्जर्वेशन में रखा जाता है।
आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण |बच्चों को एनआरसी तक भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ऊषा और आशा कार्यकर्ता की है। केंद्र तक कुपोषित बच्चे को पहुंचाने पर कार्यकर्ता को 100 रुपए प्रतिदिन के अनुसार मानदेय देता है। ऐसे में एक बच्चा अगर 14 दिन केंद्र में भर्ती रहता है तो कार्यकर्ता को 1400 रुपए मिल जाते हैं। तो कार्यकर्ता भी केंद्र तक बच्चों को पहुंचाने में रुचि लेती हैं।
एनआरसी में 9 लोगों का स्टाफ लड़ रहा कुपोषण के खिलाफ जंग
जिला अस्पताल में संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में न केवल छतरपुर जिले के बल्कि टीकमगढ़, महोबा, हमीरपुर जिले तक से कुपोषित बच्चे आ रहे हैं। इनमें से अधिकांश कुपोषण की जंग जीतकर जाते हैं। यह इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि यहां पदस्थ स्टाफ अथक मेहनत कर रहा है। एनआरसी में डॉ. दीपेश खुराना, डॉ. आरके वर्मा, प्रीति पांडेय सहित 9 लोग पदस्थ हैं। डॉ. खुराना बताते हैं कि बच्चों को कुपोषण से बाहर निकालने में उनके परिवार की मन:स्थिति महत्वपूर्ण होती है। 14 दिन तक कुपोषित बच्चों को केंद्र में रखा जाता है। इनके साथ उनकी मां भी रहती हैं। इन 14 दिनों तक शासन द्वारा तय डाइट दी जाती है और 24 घंटे में एकबार वजन लिया जाता है। प्रत्येक बच्चे की प्रतिदिन डाइट के लिए 120 रुपए शासन देता है।
Created On :   5 Sept 2022 12:48 PM IST