पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत के लिए नीली अर्थव्यवस्था नीति के प्रारूप पर हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किया!
डिजिटल डेस्क | पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने भारत के लिए नीली अर्थव्यवस्था नीति के प्रारूप पर हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किया पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने सार्वजनिक रूप से नीली अर्थव्यवस्था नीति के प्रारूप को जारी करते हुए उद्योग, स्वयंसेवी संगठनों, शिक्षा जगत तथा नागरिकों सहित विभिन्न हितधारकों से सुझाव आमंत्रित किया है। नीली अर्थव्यवस्था नीति दस्तावेज के प्रारूप में देश में उपलब्ध समुद्री संसाधनों के उपयोग के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले विजन और रणनीति को बताया गया है। विभिन्न प्लेटफॉर्मों पर नीति दस्तावेज को सार्वजनिक विमर्श के लिए प्रसारित किया गया है। इसमें वेबसाइटें तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तथा इसके संस्थानों के सोशल मीडिया हैंडल शामिल हैं।
हितधारकों से अपने सुझाव और विचार 27 फरवरी 2021 तक प्रस्तुत करने को कहा गया है। नीति दस्तावेज का उद्देश्य भारत के जीडीपी में नीली अर्थव्यवस्था के योगदान को बढ़ाना, तटीय समुदाय के लोगों की जिंदगी में सुधार लाना, समुद्री जैव विविधता को संरक्षित रखना तथा समुद्री क्षेत्रों, संसाधनों की राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना है। भारत की नीली अर्थव्यवस्था को उस राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के एक उपवर्ग के रूप में समझा गया है जिसमें संपूर्ण समुद्री संसाधन प्रणाली तथा मैरीटाइम आर्थिक संरचना और देश के विधिक क्षेत्राधिकार के अंतर्गत तटीय समुद्रीय जोन शामिल हैं। इससे वस्तु उत्पादन और सेवा में मदद मिलती है।
इन वस्तुओं और सेवाओं का आर्थिक वृद्धि, पर्यावरण स्थिरता तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ स्पष्ट संपर्क है। नीली अर्थव्यवस्था भारत जैसे तटीय देशों को सामाजिक लाभ जिम्मेदारी के लिए समुद्री संसाधनों को विशाल सामाजिक आर्थिक अवसर है। लगभग 7.5 हजार किलोमीटर की तटीय सीमा के साथ भारत की मैरीटाइम स्थिति विशिष्ट है। भारत की 29 में से 9 राज्य तटीय हैं और देश के भूगोल में 1,382 द्वीप समूह शामिल हैं। लगभग 199 बंदरगाह हैं जिनमें प्रत्येक वर्ष लगभग 1,400 मिलियन टन कार्गो, कार्य करने वाले 12 प्रमुख बंदरगाह हैं। 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर के विशेष आर्थिक क्षेत्र कच्चा तेल तथा प्राकृतिक गैस जैसे निकाले जाने वाले जीवित और गैर-जीवित संसाधनों की प्रचुरता है।
तटीय अर्थव्यस्था में 4 मिलियन से अधिक मछुआरे और तटीय समुदाय के लोग हैं। इस विशाल मैरीटाइम हितों के साथ नीली अर्थव्यवस्था भारत के आर्थिक विकास में क्षमतापूर्ण स्थान रखती है। स्थरिता तथा सामाजिक आर्थिक कल्याण को केंद्र में रखने से नीली अर्थव्यवस्था जीडीपी में अगली छलांग लगाने की क्षमता रखती है। इसलिए भारत की नीली अर्थव्यवस्था नीति का प्रारूप आर्थिक विकास और कल्याण के लिए देश की क्षमता को विस्तारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण रूपरेखा हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 2030 तक न्यू इंडिया के भारत सरकार क विजन के अनुरूप नीली अर्थव्यवस्था नीति तैयार की है।
न्यू इंडिया विजन में नीली अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय विकास के लिए 10 प्रमुख आयामों में माना गया है। प्रारूप नीति में भारत की अर्थव्यवस्था के समग्र विकास के लिए अनेक विभिन्न क्षेत्रों की नीतियों पर बल दिया गया है। प्रारूप दस्तावेज में सात निम्नलिखित विषय है- नीली अर्थव्यवस्था तथा समुद्री शासन संचालन के लिए राष्ट्रीय लेखा ढांचा तटीय समुद्री आकाशीय नियोजन तथा पर्यटन मरीन मछली पालन तथा मछली प्रसंस्करण मेन्यूफैक्चरिंग, उभरते उद्योग, व्यापार, टेक्नोलॉजी, सर्विसेज तथा कौशल विकास।
पार-लदान सहित अवसंरचना तथा शिपिंग तटीय तथा गहरे समुद्री खनन तथा अपतटीय ऊर्जा सुरक्षा, रणनीतिक आयाम तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा बनाया और वितरित किया गया प्रारूप नीली अर्थव्यवस्था नीति दस्तावेज (बायें) पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तथा इसके संस्थानों के सोशल मीडिया हैंडल पर व्यापक प्रसार कर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हितधारकों को प्रारूप नीली अर्थव्यवस्था दस्तावेज पर सार्वजनिक परामर्श आमंत्रित करता है (दायें) भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने 17 सतत विकास लक्ष्य को अपनाया जिसे वैश्विक लक्ष्य के रूप में जाना जाता है।
इसे 2030 तक गरीबी समाप्त करने, ग्रह को बचाने तथा सभी लोगों की शांति और समृद्धि का सार्वभौमिक आह्वान बताया जाता है। सत्त विकास 14 का उद्देश्य सत्त विकास के लिए महासागरों, सागरों तथा समुद्री संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग है। अनेक देशों ने अपनी नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के प्रयास किए हैं।
Created On :   18 Feb 2021 1:16 PM IST